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________________ नीतिविषयक उपदेशात्मक काव्य] ( २४६ ) [नीतिविषयक उपदेशात्मक काव्य सायणाचार्य के निरुक्त की व्याख्या करते हुए बताया है कि अर्थावबोध के लिए स्वतन्त्र रूप से पदों का संग्रह ही निरुक्त है। निरुक्तकार ने शब्दों की व्युत्पत्ति प्रदर्शित करते हुए धातु के साथ विभिन्न प्रत्ययों का भी निर्देश किया है। यास्क समस्त नामों को धातुज मानते हैं। इसमें आधुनिक भाषाशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों का पूर्वरूप प्राप्त होता है। निरुक्त में वैदिक शब्दों की व्याख्या के अतिरिक्त व्याकरण, भाषाविज्ञान, साहित्य, समाजशास्त्र एवं इतिहास प्रभृति विषयों का भी प्रसंगवश विवेचन है। यास्क ने वैदिक देवताओं के तीन विभाग किये हैं-पृथ्वीस्थान ( अग्नि ), अन्तरिक्षस्थान (वायु और इन्द्र ) तथा स्वगंस्थान (सूर्य)। ___ निरुक्त के भाष्यकार-इसके अनेक टीकाकार हो चुके हैं, किन्तु सभी टीकाएं उपलब्ध नहीं होतीं। एकमात्र प्राचीन टीका दुर्गादास की ही प्राप्त होती है जिसमें उनके पूर्ववर्ती टीकाकारों के मत दिये गये हैं। सबसे प्राचीन टीकाकार हैं स्कन्दस्वामी। उन्होंने सरल शब्दों में निरुक्त' के बारह अध्यायों की टीका लिखी थी। डॉ. लक्ष्मण सरूप के अनुसार उनका समय ५०० ई० है। देवराज यज्वा-इन्होंने 'निघण्टु' की भी टीका लिखी है। (दे० निघण्ट ) इनका समय १३०० ई० है। दुर्गाचार्य-इनकी टीका सर्वोत्तम मानी जाती है । इनका समय १३००-१३५० ई० है । महेश्वर-इनका समय १५०० ई० है । इनकी टीका खण्डशः प्राप्त होती है जिसे डॉ. लक्ष्मणसरूप ने तीन खण्डों में प्रकाशित किया है । आधुनिक युग में निरक्त के अंगरेजी एवं हिन्दी में कई अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। आधारग्रन्थ-१. इस्ट्रोडक्शन टू निरुक्त-डॉ. लक्ष्मण सरूप २. ( उक्त अन्य का हिन्दी अनुवाद)-मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली (प्रकाशक) ३. यास्काज निरुक्त एण्ड द साइंस ऑफ एटीमोलॉजी-श्री विष्णुपद भट्टाचार्य ४. निरुक्त-दुर्गाचार्य टीका एवं मुकुन्द झा वक्शी कृत संस्कृत टीका ५. हिन्दी निरुक्त-पं० उमाशंकर 'ऋषि' ६. निरुक्त-(हिन्दी अनुवाद) चन्द्रमणि विद्यालंकार ( अधुना अनुपलब्ध ) ७. निरुक्त ( हिन्दी अनुवाद )-पं० सीताराम शास्त्री (सम्प्रति अप्राप्य ) ८. निरुक्तशास्त्रम् ( हिन्दी अनुवाद)-पं० भगवदत्त ९. निरुक्तम् ( हिन्दी अनुवाद)-आ. विश्वेश्वर १०. निरुक्त ( आंग्लानुवाद एवं भूमिका)-श्रीराजवाडे ११. एटीमोलोजी ऑफ यास्क-डॉ. सिद्धेश्वर वर्मा। नीतिविषयक उपदेशात्मक काव्य-संस्कृत में कुछ ऐसे काव्य मिलते हैं जिनमें नीतिसम्बन्धी सूक्तियों की प्रधानता है तथा उनमें उपदेशात्मक तत्व भी गौणरूप से विद्यमान रहते हैं। इसी प्रकार कतिपय ऐसी भी रचनाएँ हैं जिनमें उपदेश के तत्व प्रधान होते हैं और नीतिविषयक सूक्तियां गौण होती हैं। इस प्रकार के काव्यों में नीति और उपदेश के तत्वों का मिश्रण होता है। नीतिविषयक सूक्तियों में आचार की प्रधानता के कारण धर्म और दर्शन दोनों का ही प्रभाव दिखाई पड़ता है। इन काव्यों में सूक्तिकारों ने सुख-दुःख का विवेचन करते हुए इनका सम्बन्ध जीवन के साथ स्थापित किया है तथा जीवन की उन्नति को ध्यान में रखते हुए कुमागं तथा सुमार्ग
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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