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________________ द्विसन्धान काव्य] (२२४) [द्रोपदी परिणय चम्पू 'स्वराज्यविजय' महाकाव्य की रचना १९६० ई० में हुई है। इसमें १८ सर्ग हैं तथा भारत की पूर्व समृदिशालिता के वर्णन से विदेशियों के आक्रमण, कांग्रेस का जन्म, तिलक, सुभाष, पटेल, गान्धी आदि महान् राष्ट्रीय उन्नायकों के कर्तृत्व का वर्णन, क्रान्तिकारियों तथा आतंकवादियों के पराक्रम का उल्लेख किया गया है। भारतीय राष्ट्रीयता एवं युगजीवन की भावनाओं को स्वर देनेवाला यह ग्रन्थ बीसवीं शताब्दी की महत्त्वपूर्ण संस्कृत-रचना है। द्विसन्धान काव्य-इसके रचयिता का नाम धनंजय है। यह पर्थी काव्यों में सर्वथा प्राचीन है। भोजकृत 'सरस्वतीकण्ठाभरण' में महाकवि दण्डी तथा धनंजय के 'द्विसन्धान काव्य' का उल्लेख है। दण्डी की इस नाम की कोई रचना प्राप्त नहीं होती पर धनंजय की कृति अत्यन्त प्रख्यात है, जो प्रकाशित हो चुकी है। इसका दूसरा नाम 'राघवपाण्डवीय' भी है । इस पर विनयचन्द्र के शिष्य नेमिचन्द्र ने विस्तृत टीका लिखी थी जिसका सार-संग्रह कर जयपुर के बदरीनाथ दाधीच ने 'सुधा' नाम से प्रकाशित किया है। [काव्यमाला, बम्बई से १८९५ ई० में प्रकाशित ] इसके प्रत्येक सर्ग के अन्त में धनंजा का नाम लिखा हुआ है । 'सूक्तिमुक्तावली' में राजशेखर ने इसकी प्रशस्ति की है द्विसंधाने निपुणतां सतां चक्रे धनन्जयः । यथा जातं फलं तस्य सतां चक्रे धनन्जयः ।। धनंजय का समय दशमी शती के पूर्वाद से पूर्व है । इन्होंने 'नाममाला' नामक कोश की रचना की थी जिससे इन्हें नेषण्टुक धनंजय भी कहा गया है। द्विसन्धान में १८ सग हैं तथा श्लेषपद्धति से इसमें 'रामायण' एवं 'महाभारत' की कथा कही गयी है। देशोपदेश-यह क्षेमेन्द्र रचित हास्योपदेश काव्य ( सटायर या व्यंग्यकाव्य ) है। [दे० क्षेमेन्द्र ] इसमें कवि ने काश्मीरी समाज तथा शासक वर्ग का रंगीला एवं प्रभाव. शाली व्यंग्य चित्र प्रस्तुत किया है [ इसका प्रकाशन १९२४ ई० में काश्मीर संस्कृत सीरीज संख्या ४० से श्रीनगर से १९२४ ई० में हो चुका है ] 'देशोपदेश' में आठ उपदेश हैं। प्रथम में दुर्जन एवं द्वितीय में कदयं या कृपण का तथ्यपूर्ण वर्णन है। तृतीय परिच्छेद में वेश्या के विचित्र चरित्र का वर्णन तथा चतुर्थ में कुट्टनी की काली करतूतों की चर्चा की गयी है । पंचम में विट एवं षष्ठ में गोडदेशीय छात्रों का भण्डाफोड़ किया गया है। सप्तम उपदेश में किसी वृद्ध सेठ की नवीन वयवाली स्त्री का वर्णन कर मनोरंजन के साधन जुटाये गए हैं। अन्तिम उपदेश में वैद्य, भट्ट, कवि, बनिया, गुरु, कायस्थ आदि पात्रों का व्यंग्यचित्र उपस्थित किया गया है। [हिन्दी अनुवाद सहित चौखम्बा प्रकाशन से प्रकाशित ] द्रौपदी परिणय चम्पू-इस चम्पू काव्य के प्रणेता चक्र कवि हैं। इनके पिता का नाम लोकनाथ एवं माता का नाम अम्बा था। ये पाण्ड्य तथा चेर नरेश के सभाकवि थे। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है। इनकी अन्य रचनाएं भी है-रुक्मिणीपरिणय, जानकीपरिणय, पार्वतीपरिणय एवं चित्ररत्नाकर। इनमें
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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