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________________ दशकुमारचरित ] से दिया । इसी बीच पता चला कि साथ कराना चाहता है । विश्रुत ने कर स्वयं प्रचण्डवर्मा को मार डाला हत्या करा दी । तत्पश्चात् विश्रुत भास्करवर्मा के साथ युक्ति से प्रकट हुआ और उसने मंजुवादिनी के साथ व्याह कर लिया बध कराकर विदर्भ के राज्य पर पुनः भास्करवर्मा को अधिष्ठित किया । वह स्वयं भास्करवर्मा का सचिव हुआ और चम्पा आने पर उसकी राजवाहन से भेंट हुई । अन्त में दसों राजकुमारों को एक दूत के द्वारा राजा राजहंस का सन्देश प्राप्त हुआ और वे पुष्पपुर आये । वहां उन्होंने अपने शत्रु मालवेश मानसार को मार कर सुखपूर्वक राज्य किया । । ( २१६ ) [ दशरूपक मित्रवर्मा मंजुवादिनी का विवाह प्रचण्डवर्मा के भास्करवर्मा की मृत्यु का झूठा समाचार प्रसारित और एक विषयुक्त हार के द्वारा मित्रवर्मा की भी एक मन्दिर की मूर्ति उसने वसन्तवर्मा का उपर्युक्त कथा में दण्डी ने कई अन्य कथाओं का भी गुंफन किया है जैसे, अपहारवर्मा की कथा में तपस्वी मरीचि एवं काममंजरी की कथा तथा मित्रगुप्त की कथा में धूमिनी, गोमिनी, निम्बवती एवं नितम्बवती की कथाएँ | इसमें 'पंचतन्त्र' की भांति (दे० पंचतन्त्र ) एक कथा में दूसरी कथा को जोड़ने वाली परिपाटी अपनाई गयी है और उसे अन्ततः मूल कथा के साथ सम्बद्ध कर दिया गया है। इन सभी कहानियों के द्वारा दण्डी ने यह विचार व्यक्त किया है कि चातुयं के द्वारा ही व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। इन कहानियों का उद्देश्य 'पंचतन्त्र' आदि की तरह कथा के माध्यम से नीतिशास्त्र की शिक्षा देना न होकर दण्डी का एकमात्र लक्ष्य है सहृदयों का अनुरंजन करना, और इस उद्देश्य में वे पूर्णतया सफल रहे हैं । 'दशकुमारचरित' के कई हिन्दी अनुवाद प्राप्त होते हैं । यहाँ 'चौखम्बा प्रकाशन' की ( हिन्दी टीका सहित ) पुस्तक का उपयोग किया गया है । । रचना 'नाट्यशास्त्र' के दशरूपक — नाव्यशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ इसके रचयिता धनन्जय हैं। [ दे० धनजय ] इस ग्रन्थ की आधार पर हुई है ओर नाटकविषयक तथ्यों को सरस ढंग से प्रस्तुत किया गया है। 'दशरूपक' पर अनेक टीका ग्रन्थ लिखे गए हैं जिनमें धनिक ( धनजय के भ्राता) की 'अवलोक' नामक व्याख्या अत्यधिक प्रसिद्ध है । इसके अन्य टीकाकारों के नाम हैं—बहुरूपभट्ट, नृसिंह भट्ट, देवपाणि, लोणीधरमिश्र तथा कूरवीराम । 'दशरूपक' की रचना कारिका में हुई जिनकी संख्या तीन सो है । यह ग्रन्थ चार प्रकाशों में विभक्त है । प्रथम प्रकाश में रूपक के लक्षण, भेद, अर्थप्रकृतियाँ, अवस्थाएं, सन्धियां, अर्थोपक्षेक, विष्कम्भक, चूलिका, अंकास्य प्रवेशक एवं अंकावतार तथा वस्तु के सर्वश्राम, अश्राव्य और नियत श्राव्य नामक भेद वर्णित हैं। इस प्रकाश में ६५ नायक-नायिका के आरभटी तथा नाव्य नायक-नायिका भेद, कैशिकी, सारस्वती, कारिकायें ( श्लोक ) हैं । द्वितीय प्रकाश में सहायक, नायिकाओं के बीस अलंकार, वृत्ति पात्रों की भाषा का वजंग है । इस प्रकाश पूर्वरङ्ग अंकविधान तथा रूपक के दस भेद में ७२ कारिकायें हैं। वर्णित हैं । इसमें ७६ तृतीय प्रकाश में कारिकायें हैं ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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