SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रमहीपति.] (१७२ ) [चन्द्रशेखर चम्पू वर्णित है । तृतीय से अष्टम तरंग तक प्रत्येक मत का अनुयायी अपने मत का प्रतिपादन कर पर पक्ष का खण्डन करता है। अन्तिक तरंग में समन्वयवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया गया है। इसमें पद्य का बाहुल्य एवं गद्य की अल्पता है, पर गद्य अत्यन्त चुभने वाले एवं छोटे-छोटे वाक्यों वाले हैं । उपसंहार में समन्वयवादी विचार है शिवे तु भक्तिः प्रचुरा यदि स्याद् भजेच्छिवत्वेन हरि तथापि । हरौ तु भक्तिः प्रचुरा यदि स्याद् भजेद्धरित्वेन शिवं तथापि ॥ ८॥१३३ इस चम्पू में कवि का पाण्डित्य एवं दार्शनिक पक्ष प्रस्तुत किया गया है । 'माधव चम्पू' में पांच उच्छवास हैं जिसमें कवि ने माधव एवं कलावती की प्रणय-गाथा का वर्णन किया है। यह काव्य शृङ्गार प्रधान है जिसमें प्रणय की समग्र दशायें तथा शृङ्गार के सम्पूर्ण साधन वणित हैं। यहाँ माधव काल्पनिक व्यक्ति न होकर श्रीकृष्ण ही हैं। श्रीमाधवाख्यो वसुदेवसूनुर्वृन्दावने किंच कृताधिवासः। समागतोऽयं मृगया विधानश्रान्तोऽत्र विश्रान्तिकृते चिराय ॥ आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी। चन्द्रमहीपति-यह बीसवीं शताब्दी का सुप्रसिद्ध संस्कृत उपन्यास है जिसकी रचना 'कादम्बरी' की शैली में हुई है। इसके रचयिता राजस्थान निवासी कविराज श्री निवास शास्त्री हैं। ग्रन्थ का निर्माणकाल १९९१ विक्रम संवत् एवं प्रकाशन काल सं० २०१६ है। लेखक ने स्वयं इसकी 'पार्वती विवृति' लिखी है। इस कथाकृति में राजा चन्द्रमहीपति के चरित्र का वर्णन है जो प्रजा के कल्याण के लिए अपनी समस्त सम्पत्ति का त्याग कर देता है। लेखक ने सर्वाभ्युदय की स्थापना को ध्यान में रख कर ही नायक के चरित्र का निर्माण किया है। पुस्तक में नो अध्याय (निश्वास ) एवं २९६ पृष्ठ हैं । गद्य के बीच-बीच में श्लोक भी पिरोये गए हैं। इसकी भाषा सरस, सरल एवं साहित्यिक गरिमा से पूर्ण है । चन्द्रशेखर चम्पू-इस चम्पू-काव्य के रचयिता रामनाथ कवि हैं। इनके पिता का नाम रघुनाथ देव था। कवि की मृत्यु-तिथि १९१५ ई. है। यह काव्य पूर्वाद एवं उत्तरादं दो भागों में विभक्त है। पूर्वाद में पांच उल्लास हैं। इसमें ब्रह्मावत्तंनरेश पोष्य के जीवन वृत्त विशेषतः-पुत्रोत्सव, मृगया, आदि का वर्णन है। उत्तराद्ध अपूर्ण रूप में प्राप्त होता है। पूर्वाद का प्रकाशन कलकत्ता और वाराणसी से हो चुका है। इस काव्य के प्रारम्भ में शिव-पार्वती की स्तुति की गयी है। मौलिं वीक्ष्य पुरद्विषः सुरधुनी कृच्छ्राद् गतां कृष्णता क्वापि प्रेयसि रागतः कमलजाकारं वहन्त्यः क्वचित् । प्राप्ताः क्वापि न तत्प्रसादविशदीभावाच्छिवाकारता पार्वत्यास्त्रिगुणोद्भवा इव दृशां भासो भवन्तु श्रिये ॥ १।२ आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्यों का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डा0 छविनाथ त्रिपाठी।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy