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अथर्ववेद]
[अथर्ववेद
में 'अथर्ववेद' का ज्ञाता रहता है वह राष्ट्र उपद्रव-रहित होकर उन्नतिशील होता है। स्वरूप निरूपण-कलेवर-वृद्धि की दृष्टि से 'ऋग्वेद' के पश्चात् द्वितीय स्थान 'अथर्ववेद' का है। इसमें कुल बीस काण्ड हैं जिनमें ७३१ सूक्त तथा ५९८७ मन्त्रों का संग्रह है। इसमें लगभग १२ सौ मन्त्र 'ऋग्वेद' से लिये गए हैं। बीसवें काण्ड के १४३ सूक्तों में से १२ के अतिरिक्त शेष सभी सूक्त 'ऋग्वेद' ( दशम मण्डल ) से मिलते-जुलते हैं। इसके १५ एवं १६ काण्ड में २७ सूक्त हैं तथा तीस फुटकर सूक्त गद्यात्मक हैं । 'अथर्ववेद' के सूक्तों के संकलन में विशिष्ट उद्देश्य एवं क्रम का ध्यान रखा गया है। इसके प्रारम्भिक सात काण्डों में छोटे-छोटे सूक्त हैं। प्रथम काण्ड के सूक्त चार मन्त्रों के हैं, द्वितीय काण्ड में ५ मन्त्र, तृतीय काण्ड में ६ मन्त्र तथा चतुर्थ काण्ड में सात मन्त्रों के सूक्त हैं । पाँचवें काण्ड में आठ मन्त्र हैं और छठे काण्ड में १४२ सूक्त तथा प्रति सूक्त में तीन मन्त्र हैं। सप्तम काण्ड में सूक्तों की संख्या ११८ है जिनमें आधे सूक्त एक मन्त्र वाले हैं। आठ से बारह काण्डों में बड़े-बड़े सूक्त संगृहीत हैं, जिनमें विषयों की भिन्नता दिखाई पड़ती है। १३वे काण्ड से १८वें काण्ड तक विषय की एकता है। बारहवें काण्ड के प्रारम्भ में ६३ मन्त्र वाला पृथ्वीसूक्त है, जिसमें अनेक राजनैतिक तथा भौगोलिक सिद्धान्तों का विवेचन है। तेरहवें काण्ड में आध्यात्मिक विषयों की चर्चा है तथा चौदहवें काण्ड में केवल दो लम्बे सूक्त हैं, जिनमें वैवाहिक विषय का वर्णन है। इसमें मन्त्रों की संख्या १३९ है। १५वें काण्ड में प्रात्यों के यज्ञ-सम्पादन का आध्यात्मिक विवरण है । १६वें काण्ड में दुःस्वप्ननाशक मन्त्र १०३ हैं तथा १७वें काण्ड के एक ही सूक्त में ( ३० मन्त्र ) अभ्युदय के लिए प्रार्थना करने का वर्णन है। १८३ काण्ड को श्रद्धाकाण्ड कहते हैं, जिसमें पितृमेध-विषयक मन्त्रों का संग्रह है। अन्तिम दो काण्ड (१९-२० ) खिल काण्ड या परिशिष्ट कहे जाते हैं। १९वें काण्ड में ७२ सूक्त तथा ४५३ मन्त्र हैं, जिनका विषय है भैषज्य, राष्ट्रवृद्धि एवं अध्यात्म । २०वें काण्ड में लगभग ९८५ मन्त्र हैं जो, सोमयाग के लिए आवश्यक हैं तथा प्रधानतः ये 'ऋग्वेद' से ही संगृहीत किये गए हैं। कुल मिलाकर 'अथर्ववेद' का पंचम अंश 'ऋग्वेद' का ही है तथा ये मन्त्र विशेष रूप से प्रथम, अष्टम एवं दशम मण्डल से लिये गए हैं । अन्तिम काण्ड के 'कुन्तापसूक्त' वर्तमान 'ऋग्वेद' में प्राप्त नहीं होते, संभवतः वे 'ऋग्वेद' की किसी दूसरी शाखा के मन्त्र हैं। इन सूक्तों की संख्या दस है ( सूक्त १२७ से १३६ तक)। 'कौषीतकिब्राह्मण' में इन सूक्तों का (कुन्ताप) उल्लेख है। 'गोपथब्राह्मण' में कुन्ताप का अर्थ पाप कर्म को जलाने वाला मन्त्र कहा गया है । अथर्ववेद की शाखाएं-पतन्जलि कृत 'महाभाष्य' के पस्पशाह्निक में 'अथर्ववेद' की नौ शाखाओं का निर्देश है-'नवधाऽऽयर्वणो वेदः।' इसकी शाखाओं के नाम हैंपिप्पलाद, स्तौद, मौद, शौनकीय, जाजल, जलद, ब्रह्मवद, देवदर्श तथा चारणवैद्य । इस समय इस वेद की केवल दो ही शाखाएँ मिलती हैं-पिप्पलाद तथा शौनकीय । पिप्पलादशाखा-इसके रचयिता पिप्पलाद मुनि हैं। 'प्रपन्चहृदय' के अनुसार पिप्पलादशाखा की मन्त्र-संहिता बीस काण्डों की है। इसकी एकमात्र प्रति शारदालिपि में काश्मीर में प्राप्त हुई थी जिसे जर्मन विद्वान् रॉय ने सम्पादित किया है । शौनकशाखा