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________________ tatafe उपनिषद् ] ( १५४ ) [ कौषीतकि उपनिषद् समराङ्गण, पदाति, अश्वसेना तथा हस्तिसेना के कार्य, पक्ष, कक्ष तथा उरस्य आदि विशेष व्यूहों का सेना के परिमाण के अनुसार दो विभाग, सार तथा फल्गु बलों का विभाग और चतुरङ्ग सेना का युद्ध, प्रकृतिव्यूह, विकृतिव्यूह और प्रतिब्यूह की रचना । एकादश अधिकरण — इसका नाम वृत्तसंध है । इसमें भेदक प्रयोग और उपांशुदण्ड का वर्णन है । द्वादश अधिकरण - इसका नाम आवलीयस है । इसमें वर्णित विषय हैं—दूतकर्म, मन्त्रयुद्ध, सेनापतियों का वध तथा राजमण्डल की सहायता, शस्त्र, अग्नि तथा रसों का गूढ़ प्रयोग और विविध आसार तथा प्रसार का नाश, दण्डप्रयोग के द्वारा तथा आक्रमण के द्वारा विजय की प्राप्ति । त्रयोदश अधिकरण - इसका नाम दुर्गंलम्भोपाय है। इसमें दुर्गं का जीतना, फूट और कपट के द्वारा राजा को लुभाना, गुप्तचरों का शत्रुदेश में निवास, शत्रु के दुगं को घेर कर अपने अधिकार में करना, विजित देश में शान्तिस्थापन | चतुर्दश अधिकरण- इस अधिकरण का नाम औपनिषदिक है । इसके वर्णित विषय हैं- गुप्तसाधन, शत्रुवध के प्रयोग, प्रलम्भन योग में अद्भुत उत्पादन, प्रलम्भनयोग में ओषधि तथा मन्त्र का प्रयोग, शत्रु द्वारा किये गए घातक प्रयोगों का प्रतीकार । पन्चदश अधिकरण- इसका नाम तन्त्रयुक्ति है । इसमें अर्थशास्त्र की युक्तियाँ तथा चाणक्य सूत्र हैं । आधार ग्रन्थ - अर्थशास्त्र की दो प्राचीन टीकाएँ हैं भट्टस्वामीकृत 'प्रतिपदपंचिका' तथा माधव यज्वा कृत 'नयचन्द्रिका', पर दोनों ही अपूर्ण हैं । १ - स्टडीज इन ऐश्येष्ट इण्डियन पालिटी — श्रीनरेन्द्र नाथ ला २- हिस्ट्री ऑफ हिन्दू पोलिटिकल थ्योरीज- डॉ० घोषाल ३- हिन्दू पोलिटी — डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ४ – पोलिटिकल इन्स्टीट्यूशंस एण्ड थ्योरीज ऑफ द हिन्दूज - श्री विनयकुमार सरकार ५ – हिन्दूराजशास्त्र ( दो भागों में ) ( हिन्दी अनुवाद ) - डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ६ - प्राचीन भारतीय राज्यशास्त्र और शासन - डॉ० सत्यकेतु विद्यालंकार ७ – भारतीय राजशास्त्र प्रणेता - डॉ श्यामलाल पाण्डेय ८- प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ — डी० परमात्माशरण ९ – धर्मशास्त्र का इतिहासभाग - १ डॉ० पी० वी० काणे ( हिन्दी अनुवाद ) १० – हिन्दू पोलिटी एण्ड इट्स मेटाफिजिकल फाउन्डेसन्स - डॉ० विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ११ - अर्थशास्त्र - (हिन्दी अनुवाद ) श्री वाचस्पतिशास्त्री गैरोला १२ - अर्थशास्त्र ( अंगरेजी अनुवाद ) - डाँ० श्याम शास्त्री १३ - अर्थशास्त्र [ संस्कृत टीका ] श्रीमूल-म० म० गणपति शास्त्री । -- कौषीतकि उपनिषद् - यह ऋग्वेदीय उपनिषद् है । इसमें चार अध्याय हैं । प्रथम अध्याय में देवयान या पितृयान का वर्णन है जिसमें मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा का पुनर्जन्म ग्रहण कर दो मार्गों से प्रयाण करने का वर्णन है । द्वितीय अध्याय में आत्मा के प्रतीक प्राण का स्वरूप विवेचन है। तृतीय अध्याय में प्रतर्दन का इन्द्र द्वारा ब्रह्मविद्या सीखने का उल्लेख है तथा प्राणतत्व का विस्तारपूर्वक वर्णन है । अन्तिम दो अध्यायों में ब्रह्मवाद का विवेचन करते हुए मुक्ति के साधन तथा ज्ञान की
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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