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________________ अर्थशास्त्र की प्रामाणिकता ] ( १५२ ) [ अर्थशास्त्र की प्रामाणिकता www आर० जी० भण्डारकर के अनुसार इसका रचनाकाल ईसा की प्रथम शताब्दी है । परन्तु डॉ० श्याम शास्त्री एवं डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ने अपनी स्थापनाओं के द्वारा यह सिद्ध किया है कि अर्थशास्त्र चन्द्रगुप्त के महामन्त्री की ही रचना है | अर्थशास्त्र एवं उसके प्रणेता के सम्बन्ध में पाश्चात्य तथा भारतीय विद्वानों ने जो तर्क दिये हैं। उनका सार यहाँ उपस्थित किया जाता है। पं० शामशास्त्री ने अर्थशास्त्र को कौटिल्य की कृति माना तथा बतलाया कि वह अपने मूलरूप में विद्यमान है। शास्त्री जी के इन दोनों कथनों का समर्थन हिलेब्रान्ट, हर्टल, याकोबी एवं स्मिथ ने किया । स्मिथ ने अपने प्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थ 'अर्ली हिस्ट्री' के तृतीय संस्करण ( सन् १९१४ ई० ) में शास्त्री जी के मत का समावेश कर उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि की। इसके ठीक आठ वर्षों के पश्चात् पाश्चात्य विद्वानों के एक दल ने इसे तीसरी शताब्दी की एक जाली रचना सिद्ध करने का असफल प्रयास किया। ओटो स्टाइन ने 'मेगस्थनीज़ ऐण्ड कौटिल्य' तथा डॉ० जॉली ने 'अर्थशास्त्र एण्ड कौटिल्य' ( सन् १९२३ ई० ) नामक ग्रन्थों में कौटिल्य को कल्पित व्यक्ति एवं अर्थशास्त्र को जॉली ग्रन्थ सिद्ध किया था । इन सभी विद्वानों के तर्कों का खण्डन कर डॉ० जायसवाल ने ( हिन्दूराजतन्त्र भाग १ ) कोटिल्य को सम्राट् चन्द्रगुप्त का मन्त्री एवं अर्थशास्त्र को ई० पू० ४०० वर्ष की रचना माना । श्रो चन्द्रगुप्त विद्यालंकार ने भी पाश्चात्य विद्वानों के मत का खण्डन कर अर्थशास्त्र को कौटिल्य की रचना माना है। इस प्रकार भारतीय विद्वानों के सुचितित मत के द्वारा पाश्चात्य विद्वानों की स्थापनाएँ खण्डित हो गयीं ओर अर्थशास्त्र तथा कौटिल्य दोनों का अस्तित्व स्वीकार किया गया । अर्थशास्त्र का वर्ण्यविषय - अर्थशास्त्र की रचना सूत्र और श्लोक दोनों में हुई है । इसके कुछ अंश गद्यबद्ध हैं तथा कुछ श्लोकबद्ध । इसमें १५ प्रकरण १५० अध्याय तथा छः सहस्र श्लोक हैं । अर्थशास्त्र में प्राचीन भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक जीवन का चित्र खींचा गया है । इसके वयविषयों की अधिकरणगत सूची इस प्रकार है --- प्रथम अधिकरण - प्रथम अधिकरण का नाम विनयाधिकारिक है । इसमें निम्नांकित विषयों का विवेचन है. - राजानुशासन, राजा द्वारा शास्त्राध्ययन, वृद्धजनों की संगति, काम-क्रोधादि छः शत्रुओं का परित्याग, राजा की जीवनचर्या, मन्त्रियों एवं पुरोहितों के गुण एवं कर्तव्य, गुप्त उपायों के द्वारा आमात्यों के आचरण की परीक्षा, गुप्तचरों की नियुक्ति, सभा बैठक, राजदूत, राजकुमार-रक्षण, अन्तःपुर की व्यवस्था, राजा की सुरक्षा, नजरबन्द राजकुमार तथा राजा का पारस्परिक व्यवहार, राजदूतों की नियुक्ति, राजभवन का निर्माण तथा राजा के कर्तव्य । द्वितीय अधिकरण- इसका नाम अध्यक्ष प्रचार है तथा वयं विषयों की सूची इस प्रकार है - जनपदों की स्थापना, ग्राम-निर्माण, दुर्गा का निर्माण, चारागाह, बन, सन्निधाता के कर्तव्य कोषबुद्ध का निर्माण, चारागाह, वन, सत्रिधाता के कर्तव्य, समाहर्ता का कर-संग्रह कार्य, भूमि, खानों, वनों मार्गों के करों के अधिकारी, आय-व्यय निरीक्षक का कार्यालय, जनता के धन का गबन, राजकीय स्वर्णकारों के कर्तव्य, पथ्य
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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