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________________ कुमारिल भट्ट] (१४३ ) [कुंतक है। इन्होंने अन्य तीन ग्रन्थों की भी रचना की है-स्मृतिसारसमुच्चय, स्मृतिसंग्रह एवं मुद्राराक्षस छाया । यह काव्य चार आश्वासों में विभक्त है और महाकवि कालिदास के कुमारसम्भव से प्रभाव ग्रहण कर इसकी रचना की गयी है। आलोक्यैनं गिरीशं हिमगिरितनया वेपमानांगयष्टिः । पादं सोत्क्षेप्तुकामा पथिगिरिरचितस्वोपरोधा नदीव ।। नो तस्थौ नो ययौ वा तदनु भगवता सोदिता ते तपोभिः । . क्रीतो दासोऽहमस्मीत्यथ नियममसावुत्ससर्जाप्तकामा ॥८॥३१ इसका प्रकाशन वाणी विलास प्रेस, श्रीरंगम् से १९३९ ई० में हो चुका है। आधारप्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी। कुमारिल भट्ट-मीमांसा-दर्शन के भाट्ट मत के प्रतिष्ठापक आचार्य कुमारिल भट्ट हैं। [दे० मीमांसा-दर्शन ] इनके जन्म-स्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है, पर अधिकांश विद्वान् इन्हें मैथिल मानते हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक मण्डन मिश्र कुमारिल भट्ट के प्रधान शिष्य थे । इनका समय ६०० ई० से ६५० ई. के मध्य है। कहा जाता है कि इन्होंने बीरधर्म का त्याग कर हिन्दूधर्म में प्रवेश किया था और बौद्धों के सिद्धान्त का खण्डन कर वैदिकधर्म एवं वेदों की प्रामाणिकता सिद्ध की थी। 'शाबरभाष्य' ( प्रसिद्ध मीमांसक आचार्य शबरस्वामी की कृति) के ऊपर कुमारिल ने तीन वृत्ति ग्रन्थों की रचना की है-'श्लोकवात्तिक', 'तन्त्रवात्तिक' तथा 'टुप्टीका'। 'श्लोकवात्तिक' कारिकाबद्ध रचना है जिसमें 'मीमांसाभाष्य' के प्रथम अध्याय के प्रथम पाद की व्याख्या की गयी है। इस पर उम्बेकभट्ट ने 'तात्पर्य टीका', पार्थ सारथि मिश्र ने "न्यायरत्नाकर' तथा सुचरित मिश्र ने 'काशिका' नामक टीकाएं लिखी हैं। 'तन्त्रपातिक' में 'मीमांसाभाष्य' के प्रथम अध्याय के द्वितीय पाद से तृतीय अध्याय तक की व्याख्या है । इस पर सोमेश्वर ने 'न्यायसुधा', कमलाकर भट्ट ने 'भावार्थ', गोपाल भट्ट ने 'मिताक्षरा', परितोषमिश्र ने 'अजिता', अन्नभट्ट ने 'राणकोजीवनी' तथा गंगाधर मिश्र ने न्यायपारायण' नामक टीकाएं लिखी हैं। टुप्टीका में 'शाबरभाष्य' के अन्तिम नौ अध्यायों पर संक्षिप्त टिप्पणी है। यह साधारण रचना है। इस पर पार्थसारथिमिश्र ने 'तन्त्ररत्न', वेंकटेश ने 'वात्तिकाभरण' तथा 'उत्तमश्लोकतीर्थ ने 'लघुन्यायसुधा' नामक टीकाएं लिखी हैं । 'बृहट्टीका' एवं 'मध्यटीका' नामक अन्य दो अन्य भी कुमारिल भट्ट की रचना माने जाते हैं, पर वे अनुपलब्ध हैं। आधारग्रन्थ-(क) इण्डियन फिलॉसफी भाग २-डॉ. राधाकृष्णन् । (ख) भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । (ग) मीमांसा-दर्शन-पं० मंडन मिश्र । कुंतक-बक्रोक्ति-सम्प्रदाय के प्रवर्तक (काव्यशास्त्र का एक सिद्धान्त दे० काव्यशास्त्र) कुंतक का दूसरा नाम कुंतल भी है। इन्होंने 'वक्रोक्तिजीवित' नामक सुप्रसिद्ध काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ का प्रणयन किया है जिसमें वक्रोक्ति को काव्य की यात्मा मान कर उसके मेदोपभेद का विस्तारपूर्वक विवेचन है। कुंतक ने अपने अन्य में 'ध्वन्यालोक' की मालोचना की है और ध्वनि के कई भेदों को वक्रोक्ति में अन्तर्मुक्त किया है। महिमभट्ट
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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