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अकालजलद ]
[अग्निपुराण
अकालजलद-ये महाराष्ट्रीय कविचूड़ामणि राजशेखर के प्रपितामह हैं। [दे० राजशेखरः] इनका समय ८०० ई० है। इनकी कोई रचना प्राप्त नहीं होती, पर 'शार्ङ्गधरपद्धति' प्रभृति सूक्तिसंग्रहों में इनका 'भेकैः कोटरशायिभिः' श्लोक उपलब्ध होता है। राजशेखर के नाटकों में इनका उल्लेख प्राप्त होता है तथा उनकी 'सूक्तिमुक्तावली' में इनकी (अकालजलद की) प्रशस्ति की गयी है, जो इस प्रकार हैअकालजलदेन्दोः सा हृद्या वचनचन्द्रिका । नित्यं कविचकोरर्या पीयते न च हीयते ॥
सूक्तिमुक्तावली ४।८३॥ आधार ग्रन्थ-संस्कृत सुकवि-समीक्षा-आ० बलदेव उपाध्याय ।
अग्निपुराण-यह क्रमानुसार आठवाँ पुराण है । 'अग्निपुराण' भारतीय विद्या का महाकोश है जिसमें शताब्दियों से प्रवाहित भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान का सार संगृहीत किया गया है। डॉ० विन्टरनित्स इसे भारतीय वाङ्मय में व्याप्त अनेक विषयों का विश्वकोश मानते हैं, जिसमें व्याकरण, सुश्रुत का औषधज्ञान, शब्दकोश, काव्यशास्त्र एवं ज्योतिष आदि विषयों का समावेश किया गया है। 'अग्निपुराण' के रचनाकाल के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने नाना प्रकार के मत प्रकट किये हैं। पर, अधिकांश विद्वान सप्तम से नवम शती के मध्य इसका रचनाकाल मानने के पक्ष में हैं। डॉ० हाजरा और पाजिटर के अनुसार इसका समय नवम शती का परवर्ती है। इस पुराण में ३८३ अध्याय एवं ११, ४५७ श्लोक हैं। इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है-मंगलाचरण, ग्रन्थप्रणयन का उद्देश्य, मत्स्य, कूर्म, वाराहादि अवतारों का वर्णन, रामायण की कथा, कृष्णकथा, महाभारतविषयक आख्यान, बुद्ध तथा कल्कि अवतार का वर्णन, सृष्टि की उत्पत्ति, स्वयंभुवमनु, काश्यपवंशवर्णन तथा विष्णु आदि देवताओं की पूजा का विधान । कर्मकाण्ड के विविध-विधान, देवालयों के निर्माण का फल, मन्दिर, सरोवर, कूपादि के निर्माण का फल तथा प्रतिमास्थापन-विधि । विभिन्न पर्वतों, जम्बूद्वीप, गंगा, काशी और गया का माहात्म्य । श्राद्ध का विधान, भारतवर्ष