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________________ काव्य-मीमांसा] ( १२५ ) [काव्य-मीमांसा अनु० डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी) तथा आधुनिक युग की 'नागेश्वरी टीका' ( चौखम्बा प्रकाशन )। माणिक्यचन्द्र से लेकर वामनाचायं तक के ५०० वर्षों में काव्यप्रकाश पर लगभग ५० टीकाएँ लिखी गयी हैं। अंगरेजी में 'काव्यप्रकाश' के अनेक अनुवाद हुए हैं जिनमें डॉ० गंगानाथ झा, सुखथंकर एवं डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी के अनुवाद अधिक प्रसिद्ध हैं : हिन्दी में 'काव्यप्रकाश' की तीन व्याख्याएँ एवं एक अनुवाद है। इसका सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद पं० हरिमंगल मिश्र ने किया था, जो हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से प्रकाशित है ( सम्प्रति अप्राप्य )। पुनः इसका माण्य डॉ. सत्यव्रत सिंह ( चौखम्बा प्रकाशन ), डॉ० हरदत्तशास्त्री एवं आचार्य विश्वेश्वर (ज्ञानमण्डल, वाराणसी) ने किया। इसके अन्य भाष्य सी प्रकाशनाधीन हैं। 'रीतिकाल' में काव्य. प्रकाश के अनेक हिन्दी पाद्यानुवाद हुए हैं एवं इसके आधार पर कई आचार्यों ने रीतिग्रन्थों की रचना की है। 'काव्यप्रकाश' के प्रति पण्डितों का प्रेम अभी भी बना हुआ है और आशा है भविष्य में भी इसके सुन्दर हिन्दी भाष्य प्रस्तुत होंगे। आधारग्रन्थ-क काव्यप्रकाश-हिन्दी भाष्य आ० विश्वेश्वर । ख. वामनाचार्यकृत 'सुबोधिनी' व्याख्या। काव्य-मीमांसा-यह संस्कृत का कवि-शिक्षा-विषयक अत्यन्त प्रसिद्ध ग्रन्थ है जिसके प्रणेता आचार्य राजशेखर हैं । [ दे० राजशेखर ] सम्प्रति यह ग्रन्थ अपूर्ण रूप में ही प्राप्त है जिसमें १८ अध्याय हैं। इसके प्रथम अध्याय में काव्यशास्त्र के उद्भव की कथा दी गयी है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार काव्य-पुरुष ने अष्टादश अधिकरणवाली काव्यविद्या का उपदेश अपने शिष्यों को दिया था। अट्ठारह विद्वानों के अष्टादश ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है-कविरहस्य-सहस्राक्ष, उक्ति-उक्तिगर्भ, रीतिनिर्णय-सुवर्णनाभ, यमक-यम, अनुप्रास-प्रचेता, चित्रकाव्य-चित्राङ्गद, शब्दश्लेषशेष, स्वाभावोक्ति-पुलस्त्य, उपमा-औपकायन, अतिशयोक्ति-पराशर, अर्थश्लेष-उतथ्य, उभयालंकार-कुबेर, हास्य-कामदेव, रूपक-भरत, रस-नन्दिकेश्वर, दोष-धिषण, गुणउपमन्यु, औपनिषदिक विषय-कुचमार । द्वितीय अध्याय में शास्त्र निर्देश है जिसमें वाङ्मय के दो प्रकार किये गए हैं-काव्य और शास्त्र । इसी अध्याय में साहित्य को पांचवीं विद्या का स्थान दिया गया है। तृतीय अध्याय में काव्यपुरुष की उत्पत्ति का वर्णन है। चतुर्थ अध्याय का विवेच्य है पदवाक्य का विवेक । इसमें कवियों के प्रकार तथा प्रतिभा का विवेचन है। प्रतिभा के दो प्रकार कहे गए हैं-कारयित्री एवं भावयित्री। कारयित्री प्रतिभा कवि की उपकारिका है जिसके तीन प्रकार हैंसहजा, आहार्या एवं औपदेशिकी। भावयित्री प्रतिभा आलोचक की उपकारिका होती है। इस अध्याय में आलोचकों के कई प्रकार वणित हैं। पंचम अध्याय में व्युत्पत्ति एवं काव्यपाक का वर्णन है। इसमें कवि के तीन प्रकार कथित हैं-शास्त्रकवि, काव्यकवि एवं उभयकवि । पुनः शास्त्रकवि के तीन प्रकार, एवं काव्यकवि के आठ प्रकार बताये गए हैं। अन्त में काव्यपाक के नौ भेद वर्णित हैं। षष्ठ अध्याय में पद का तथा सप्तम अध्याय में वाक्य का विश्लेषण है। सप्तम अध्याय में काक का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है । अष्टम अध्याय में काव्याथ के स्रोत का वर्णन
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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