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________________ कादम्बरी ] ( ११० ) [ कादम्बरी ww पर चन्द्रमा ने भी क्रुद्ध होकर उसे अपने सटैंश दुःख का भागी बनने का शाप दे दिया था, पर महाश्वेता की स्थिति को ध्यान में रख कर शाप की अवधि पर्यन्त उसके ( पुण्डरीक ) शरीर को सुरक्षित रखने के लिए चन्द्रलोक ले गया। तत्पश्चात् कपिंजल को, एक वैमानिक ने अपना मार्ग लांघ देने के कारण मृत्युलोक में, घोड़ा बन जाने का शाप दे दिया । कपिंजल के विनय करने पर उसने शाप में छूट दी कि अश्वरूप में रहने का उसका शाप तब समाप्त होगा जब कि वह अपने स्वामी की मृत्यु के पश्चात् जल में स्नान करेगा ( इन्द्रायुध चन्द्रापीड़ का अश्व था ) वैमानिक ने दिव्य दृष्टि के द्वारा कपिंजल को बता दिया कि चन्द्रमा उज्जयिनी नरेश तारापीड़ के पुत्र, पुण्डरीक अमात्य शुकनास के पुत्र एवं कपिंजल चन्द्रापीड़ के वाहन के रूप में अवतरित होंगे । पत्रलेखा के सम्बन्ध में कपिंजल ने कुछ भी नहीं बताया कि आगामी जन्म में वह क्या होगी। इतनी कथा कहने के पश्चात् कपिंजल महर्षि श्वेतकेतु के पास सारा वृतान्त सुनाने के लिए जाता है। कादम्बरी तथा महाश्वेता कुमार चन्द्रपीड़ के शव की यत्न के साथ रक्षा करती हैं। जाबालि ऋषि ने अपनी कथा समाप्त करते हुए बताया कि यह शुक प्रथम जन्म में कामासक्त होने के कारण दिव्यलोक से मृत्युलोक में वैशम्पायन के रूप में आया और पुनः अपनी धृष्टता के कारण इसे शुक-योनि प्राप्त हुई है। तदनन्तर शुक अपने जन्मान्तर के सम्बन्ध में तथा चन्द्रापीड़ के सम्बन्ध में ऋषि जाबालि से सूचना प्राप्त करना चाहता है पर जाबालि उसे डांट कर बतलाते हैं कि इस कार्य में वह शीघ्रता न कर अपने पंख उगने तक आश्रम में रुके। पर, शुक अपनी प्रेमिका महाश्वेता से मिलने को आतुर होकर उड़ जाता है और मार्ग में एक चाण्डाल द्वारा पकड़ लिया जाता है। वह उसे अपनी पुत्री को दे देता है और चाण्डालपुत्री उसे पिंजड़े में बन्दकर राजा के पास ले आती है। राजा शुद्रक के समक्ष कही गयी ( शुक द्वारा ) कथा की यहीं समाप्ति हो जाती है। चाण्डाल राजा को बता देता है कि यह चाण्डाल-कन्या न होकर वैशम्पायन की जननी लक्ष्मी है । चाण्डाल-कन्या ने बताया कि वह छाया की भाँति इसके साथ रहती है। अब इसके समाप्त हो चुकी है और मैं तुम दोनों को सुखी बनाने के लिए इसे आई हूँ। अब तुम दोनों ही अपने शरीर का त्याग कर प्रियजनों के साथ सुख प्राप्त करो। शुद्रक पूर्वजन्म का चन्द्रापीड था । उसे अपना वृत्तान्त याद हो गया। दोनों के शरीर नष्ट हो जाते हैं और चन्द्रापीड़ अपना शरीर धारण कर लेता है। पुण्डरीक भी आकाश मार्ग से उतरता है और दोनों अपनी प्रेमिकाओं- कादम्बरी एवं महाश्वेताको सुखी बनाने के लिए चल पड़ते हैं । पत्रलेखा के सम्बन्ध में ज्ञात होता है कि वह चन्द्रमा की पत्नी रोहिणी के रूप में चन्द्रलोक में स्थित रहती है । शाप की अवधि तुम्हारे निकट ले ''कादम्बरी' की कथा कल्पित एवं निजंधरी है। इसके घटनाचक्र में एक व्यक्ति के तीन-तीन जीवन का वृत्तान्त है। मगध का राजा शुद्रक प्रथम जन्म में चन्द्रमा, द्वितीय जन्म में चन्द्रापीड़ एवं तृतीय जन्म में शूद्रक था इसी प्रकार वैशम्पायन पहले श्वेतकेतु का पुत्र पुण्डरीक, द्वितीय जन्म वैशम्पायन एवं तृतीय जन्म में तोता में
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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