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________________ कात्यायन ] ( १०६१) [ कात्यायन इस ग्रन्थ का प्रकाशन यूनिवर्सिटी मैन्यूस्क्रिप्ट लाइब्रेरी, त्रिवेन्द्रम, नं० ४ में १९४७ हो चुका है। आधारग्रन्थ - चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छबिनाथ त्रिपाठी । कात्यायन — 'अष्टाध्यायी' पर वार्तिक लिखने वाले प्रसिद्ध वैयाकरण, जिन्हें वार्तिककार कात्यायन के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है । 'महाभाष्य' में इनका उल्लेख वार्तिककार के ही नाम से किया गया है। इनका स्थितिकाल वि० पू० २७०० वर्ष है । [ श्री युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार ] 'न स्म पुरानद्यतन इति ब्रुवता कात्यायनेनेह । स्यादिविधिः पुरान्तो यद्यविशेषेण भवति, किं वार्तिककारः प्रतिषेधेन करोति — न स्म पुरानद्यतन इति' महाभाष्य ३।२।११८ । संस्कृत व्याकरण के मुनिश्रय में पाणिनि, कात्यायन एवं पतञ्जलि का नाम आता है । पाणिनीय व्याकरण को पूर्ण बनाने के लिए ही कत्यायन ने अपने वार्तिकों की रचना की थी जिनमें अष्टाध्यायी के सूत्रों की भांति ही प्रोढ़ता एवं मौलिकता के दर्शन होते हैं। इनके वार्तिक पाणिनीय व्याकरण के महत्त्वपूर्ण अंग हैं जिनके बिना वह अपूर्ण लगता है । प्राचीन वाङ्मय में कात्यायन के लिए कई नाम आते हैंकात्य, कात्यायन, पुनर्वसु, मेधाजित तथा वररुचि तथा कई कत्यायनों का उल्लेख प्राप्त होता है - कात्यायन कौशिक, आङ्गिरस, भार्गव एवं कात्यायन द्वद्यामुष्यायण । 'स्कन्दपुराण' के अनुसार कात्यायन के पितामह का नाम याज्ञवल्क्य, पिता का नाम कात्यायन एवं इनका पूरा नाम वररुचिकात्यायन है । मीमांसक जी ने इसे प्रसिद्ध वार्तिककार कात्यायन का ही विवरण स्वीकार किया है । कात्यायनसुतं प्राप्य वेदसूत्रस्य कारकम् । कात्यायनाभिधं चैव यज्ञविद्याविचक्षणम् ॥ पुत्रो वररुचियस्य बभूव गुणसागरः ॥ स्कन्दपुराण १३११४८, ४९ । कात्यायन बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे । इन्होंने व्याकरण के अतिरिक्त काव्य, नाटक, धर्मशास्त्र तथा अन्य अनेक विषयों पर स्फुट रूप से लिखा है । इनके ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है --- स्वर्गारोहण काव्य - इसका उल्लेख 'महाभाष्य' ( ४ | ३ | ११० ) में 'वाररुच' काव्य के रूप में प्राप्त होता है तथा समुद्रगुप्त के 'कृष्णचरित' में भी इसका निर्देश है— यः स्वर्गारोहणं कृत्वा स्वर्गमानीतवान् भुवि । काव्येन रुचिरेणैव ख्यातो वररुचिः कविः ॥ इसके अनेक पद्य 'शार्ङ्गधरपद्धति', 'सदुक्तिकर्णामृत' तथा 'सूक्तिमुक्तावली' में प्राप्त होते हैं । इन्होंने कोई काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ भी लिखा था जो सम्प्रति अनुपलब्ध है. किन्तु इसका विवरण 'अभिनवभारती' एवं 'शृङ्गारप्रकाश' में है । यथोक्तं कात्यायनेन - वीरस्य भुजदण्डानां वर्णने स्रग्धरा भवेत् । नायिका वर्णनं कार्यं वसन्ततिलकादिकम् ।। शार्दूललीला प्राच्येषु मन्दाक्रान्ता च दक्षिणे ॥ अभिनवभारती भाग २, पृ० २४५-४६ |
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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