________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
२१२आ। देवकिल्बिषभावनाजनितो दैवकिल्बिषः। देवज्जय-देवार्यः। आव. १९११ स्था० २६४।
देवड-जुगुप्सणीयः। व्यव० ४१९ आ। देवडिङ्गरः। व्यव० देवकी-वसुदेवपत्नी। सूत्र० ३०८। कृष्णमाता। प्रश्न०७३। । २३४ । परग्रामदूतीत्वदोषविवरणे धनदत्तहिता। पिण्ड. १२७ | देवतमिस्से-देवतमिश्र-अन्धकारम्, तमस्कायस्याष्टमं देवकुंडि- देवकुलिका। आव० ४३२॥
नाम। भग० २७०। देवकुरा-दक्षिणेन देवकुरवः। स्था०६९। देवकुरवो नाम | देवती- देवकी-वसुदेवराज्ञी। अन्त०५ कुरवः। जम्बू० ३५४। उत्तरपूर्वरतिकरपर्वतस्योत्तरस्या- | देवदत्त-धायाः-परावर्तितदद्वारे निलयश्रेष्ठितः। पिण्ड. मीशानदेवेन्द्रस्य रामरक्षिताया अग्रमहिष्या राजधानी। | १०० अपध्यानाचरिते श्रावकोदाहरणम्। आव० ८३० जीवा० ३६५ स्था० २३१। मेरोर्जम्बूदवीपगतः दक्षिणतः देवदत्ता-रोहितनगरे दत्तसार्थवाहस्य दुहिता। स्था० देवकुरु-नामा विदेहः। जम्बू० ३१०
५०८ रोहीतकनगरे दत्तगाथापतिसता। विपा० ८२ देवकुरु– वापीनाम। जम्बू. ३७०| देवकुरं-देवकुरुन्। चम्पानगर्यां गणिका। ज्ञाता० ९२। गृहपतिसुता,
जम्बू. ३०८1 देवकुरुः द्रहनाम। जम्बू० ३५५। देवकुरुकूटं अन्तकुद्दशास् दुःख-विपाकानां नवममध्ययनम। विपा. सौमनसवक्षस्कारपर्वते चतुर्थं कूटनाम। जम्बू. ३५३) ३५। उदायनदेवीप्रभाव-तीसत्का दासी देवकुरुविद्युत्प्रभवक्षस्कारपर्वते तृतीय कूटः। जम्बू० सुवर्णलिकाऽपरनामा। प्रश्न. ८९। उज्ज-यिन्यां ३५५। देवकुरुः द्रहनाम। जम्बू. ३०८। नमिजिनस्य गणिका। उत्त० २१८ वीतभये प्रभावत्या दासी। उत्त. दीक्षाशिबिका। सम० १५१। देवकुरुः-कर्मभूमिविशेषः। ९६। देवदत्ता-पुरुषदवेषिणी गणिकाविशेषः। दशवै. प्रज्ञा०५०
१०८१ देवकुरुकूडे-देवकुरूनाम्ना कूटं विद्युत्प्रभवक्षस्कारपर्वते देवदारे-सिद्धायतनस्य प्रथमं दवारनाम। स्था० २३० तृतीयं कूटनाम। जम्बू. ३५५५
देवदालि- फलविशेषः। भग०८०३। देवकुरुदहे- देवकुरौ द्वितीयो महद्हः । स्था० ३२६। देवदाली-वल्लीविशेषः। प्रज्ञा० ३२ वृक्षविशेषः। प्रज्ञा देवकुलं-देवकुलं-दवालयः। आव० ५८१। देवकुलं
३। रोहिणी। प्रज्ञा० ३६४१ वनगयारम्। ओघ० ५३। देवक्लं-सशिखरदेवप्रासादः। | देवदालीपुप्फं- देवदालीपुष्प-रोहिणीपुष्पम्। प्रज्ञा० ३६४१ प्रश्न प्रज्ञा० २७
देवदिन्न-धनसार्थवाहपुत्रः। ज्ञाता० ८३। देवकूलिया- देवानां वातस्येवोत्कलिका देवोत्कलिका। | देवदिन्ना-देवेन-दत्ताः-सुलसापुत्राः-देवदत्ताः। आव० जीवा० २४८५
६७६| देवकूपः- अमरकूपसदृशमतीवोंडं कूपम्। व्यव० २२४ अ। | | देवदीवो-देवद्वीपः-द्वीपविशेषः। जीवा० ३२११ देवगुत्ते- देवगुप्तः-परिव्राजकविशेषः। औप० ९१। | देवदुंदुहिसणाहो- देवदुन्दुभिसनाथः-दिव्यः शब्दविशेषः। देवच्छंदए-देवच्छन्दको देवोपवेशस्थानम्। जम्बू०७९| आव० ४८८ देवच्छन्दकः। जीवा. २३४
देवदुहुदुदुकं- देवानुकरणवचनम्। जीवा० २४८१ देवजण्णगो- देवयज्ञः। आव० ६७५
देवदूसजुयलं- देवदुष्ययुगलं-देववस्त्रयुग्मम्। जीवा० देवजसे- अन्तकृदृशानां तृतीयवर्गस्य पञ्चममध्ययनम्। २५३। जम्बू० ४२० अन्त०३
देवदेव-देवदेवः। आव. २२११ शक्रादिः। आव०७९०, २२११ देवजाणरहो- देवयानरथः। आव० ७४०।
देवपडिक्खोभे-देवप्रतिक्षोभः, परिक्षोभहेत्त्वात् देवजुती- देवानां-सुराणां द्युतिः-दीप्तिः
तमकायस्य द्वादशमं नाम। भग० २७१। शरीराभरणादिस-म्भवा। युतिर्वा
देवपलिक्खोभेति-कृष्णराजेरष्टमं नाम। स्था० ४३२१ यक्तिरिष्टपरिवारादिसंयोगलक्षणा। स्था० १४२ | देवपलिहे- कृष्णराजेः सप्तमं नाम। स्था० ४३२ देवज्जगो-देवार्यकः। आव. २००
| देवपव्वते- चतुर्थो वक्षस्कारपर्वतः। स्था० ३२६।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[88]
"आगम-सागर-कोषः" [३]