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संयम की साधना उत्कृष्ट थी। आपकी प्रेरणा से कई शिक्षा संस्थानों की स्थापना हुई जिसमें पाथर्डी बोर्ड अहमदनगर प्रमुख है।
आपका काफी साहित्य भी प्रकाश में आया है। 'आनन्द प्रवचन' नाम से आपके प्रवचनों के कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं। सन् 1992 में अहमदनगर में समाधि भाव से आपका स्वर्गवास हुआ। आम (राजा)
वी.नि. की 13वीं शताब्दी का एक जैन राजा। वह कान्यकुब्ज नगर का राजा था। उसने आचार्य बप्पभट्टि से जैनधर्म की शिक्षा प्राप्त की थी। अन्तिम अवस्था में उसने जैन दीक्षा भी धारण की। वी.नि. 1360 में उसका निधन हुआ। (देखिए-बप्पभट्टि आचार्य) आम्रभट्ट
गुजरात नरेश महाराज कुमारपाल के यशस्वी मंत्री उदयन का पुत्र, जो अपने पिता के पश्चात् गुजरात का महामंत्री बना। आम्रभट्ट परम जिनभक्त और शूरवीर था। उसने अनेक युद्धों में गुजरात की सेना का सफल संचालन किया था और विजय प्राप्त की थी। गुजरात नरेश कुमारपाल उसका बड़ा सम्मान करते थे। प्रजा में भी उसके प्रति भारी सम्मान और प्रेम था। ____ कुमारपाल की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अजपाल सिंहासन पर बैठा। अजपाल अदूरदर्शी और दुष्ट स्वभाव का था। उसे चाटुकारों की चाटूक्तियों में रस था। चाटुकारों ने एक बार उसके कान भर दिए कि आम्रभट्ट उन्हें नमस्कार नहीं करता है। संयोग से उसी समय आम्रभट्ट ने सभा में प्रवेश किया। चाटुकारों ने आम्रभट्ट से कहा, मन्त्रिवर! महाराज अजपाल को वन्दन करो! इस पर आम्रभट्ट ने कहा, मेरा सिर देवरूप में जिनेश्वर प्रभु के समक्ष, गुरुरूप में आचार्य हेमचंद्र के समक्ष और स्वामीरूप में महाराज कुमारपाल के समक्ष ही झुकता है, अन्य किसी के समक्ष नहीं।
आम्रभट्ट की इस उक्ति से अजपाल भड़क उठा। उसने आम्रभट्ट को ललकारा। आम्रभट्ट सावधान था। वह तत्क्षण अपने घर लौट गया। जिनेश्वर प्रभु को प्रणाम कर उसने आमरण अनशन कर लिया। अजपाल के चाटुकार सैनिकों ने उस पर आक्रमण कर दिया। आम्रभट्ट ने शौर्य से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। आरामशोभा
आरामशोभा एक विपन्न कुल में जन्म लेकर पाटलिपुत्र नरेश की पटरानी बनी। यह पुण्य का प्रभाव तो था ही, उसके भीतर प्रवाहित परोपकार का साक्षात् चमत्कार भी था। आरामशोभा कुसट्ट देश के बलासा ग्रामवासी अग्निशर्मा ब्राह्मण और उसकी अर्धांगिनी अग्निशिखा की अंगजात थी। उसका जन्मना नाम विद्युत्प्रभा था। विद्युत्प्रभा पांच वर्ष की हुई तो उसकी माता का देहान्त हो गया। पुत्री की समुचित देखभाल को सुनिश्चित करने के लिए अग्निशर्मा ने पुनर्विवाह कर लिया। सौतेली मां को विद्युत्प्रभा फूटी आंख न सुहाई। घर का समस्त कार्यभार उसने नन्ही विद्युत्प्रभा पर डाल दिया। एक ही वर्ष में उसने एक पुत्री को जन्म दे दिया जिससे विद्युत्प्रभा पर काम का दबाव दोगुणा हो गया। दोपहर तक वह गृहकार्य करती, बाद में गाएं चराने जंगल में जाती।
एक दोपहर में जब विद्युत्प्रभा गाएं चरा रही थी तो उसने अपनी ओर आते एक सर्प को देखा। वह डर गई। सर्प मानव-वाणी में बोला कि वह उससे भयभीत न बने, इस क्षण वह स्वयं भयभीत है। कुछ गारुड़ि उसके पीछे पड़े हैं। उनसे वह उसकी रक्षा करे। विद्युत्प्रभा ने परोपकार की भावना से सर्प को अपनी गोद में ... जैन चरित्र कोश ...
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