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शरद पूर्णिमा की रात में कौमुदी महोत्सव के अवसर पर उपरोक्त घोषणा राजा ने नगर में कराई। अर्हद्दास अपनी आठों पत्नियों के साथ अष्टमी से पूर्णिमा तक अष्ट दिवसीय उपवास कर रहा था। उसने अपनी धर्म बाध्यता के प्रश्न पर राजा से पहले ही अनुमति प्राप्त कर ली थी कि उसकी पत्नियां अष्ट दिवस की पौषधोपवासिनी होने के कारण नगर से बाहर नहीं जा पाएंगी।
रात्रि में समस्त नारियां नगर के बाहर प्रमदवन में जाकर आमोद-प्रमोद में तल्लीन बन गईं। राजरानियां भी उस महोत्सव में सम्मिलित थीं। राजा ने अकेलापन अनुभव किया। वह अपने मंत्री के साथ नगर-भ्रमण के लिए निकला। घूमते-घूमते राजा और मंत्री के कदम अर्हद्दास की पौषधशाला के बाहर ठिठक गए। उसी समय स्वर्णखुर नामक चोर भी उधर से अदृश्य होकर गुजर रहा था। उसके कदम भी पौषधशाला के निकट ठिठक गए। वह एक वृक्ष पर चढ़कर पौषधशाला के भीतर चल रहे संवाद को सुनने लगा। राजा और मंत्री भी एक दीवार की आड़ लेकर भीतर का संवाद सुनने लगे। ____ अर्हद्दास ने पत्नियों से कहा, आज हमारे पौषधव्रत की अंतिम रात्रि है। इस रात्रि को हमें धर्म-जागरिका के साथ व्यतीत करना चाहिए। इसके लिए उपयुक्त यह रहेगा कि हम सब अपनी-अपनी उन घटनाओं को नाएं जिनसे हमें सम्यक्त्वरत्न की प्राप्ति हई। यह निर्णय हआ। सेठ अर्हास और उसकी सातों पत्नियों ने अपनी-अपनी सम्यक्त्व प्राप्ति की घटनाएं क्रमशः सुनाईं। वे घटनाएं इतनी वैराग्योत्पादक थीं कि वैराग्य रस का समुद्र प्रवाहित हो गया। बाहर बैठे राजा और मंत्री सहित वृक्ष पर बैठे स्वर्णखुर चोर का हृदय भी वैराग्य से भर गया।
आठवीं पत्नी की बारी आई तो उसने कहा, तुम्हारी कहानियां तो मात्र कहानियां ही प्रतीत होती हैं। मेरी कहानी अद्भुत है।
इससे पूर्व कि आठवीं पत्नी कुन्दलता अपनी कहानी शुरू करती, प्रभात खिल गया। मन न होते हुए भी राजा, मंत्री और स्वर्णखुर को अपने-अपने स्थानों पर लौटना पड़ा। पर वे तीनों आठवीं पत्नी की कहानी सुनने को व्यग्र थे। तीनों ही स्नानादि से निवृत्त होकर सेठ के घर पहुंचे। सेठ अपनी आठों पत्नियों के साथ अठाईं का पारणा लेने को बैठ ही रहे थे कि राजा, मंत्री और स्वर्णखुर को अपने द्वार पर देखकर परम हर्षित हुए। सेठ ने तीनों का स्वागत किया और अकस्मात् आगमन का कारण पूछा। राजा ने रात्रि में कथा-श्रवण की बात बताई और कहा कि हम आपकी आठवीं पत्नी कुन्दलता की कहानी नहीं सुन सके। उसे ही सुनने के लिए आए हैं।
कुन्दलता बोली, महाराज! मेरे पति और मेरी बहनों की कहानी को मैंने इसलिए 'कहानी मात्र' कहा कि ऐसी अद्भुत घटनाओं को जीकर भी वे संसार से कैसे चिपकी हैं। मेरी सम्यक्त्व प्राप्ति की कहानी तो मात्र इतनी ही है कि इन सभी की कहानियां सुनकर मुझे सम्यक्त्व की प्राप्ति हो गई है, और मेरा सम्यक्त्व मुझे पल भर का भी प्रमाद किए बिना संयम की दीक्षा लेने को प्रेरित कर रहा है। मैंने निश्चय किया है कि आज ही मैं दीक्षा धारण कर आत्मसाधना में तल्लीन बन जाऊंगी।
कुन्दलता की कहानी ने सभी को वैराग्य में डुबो दिया और सभी एक साथ संयम धारण करने के सम्यक् संकल्प में बंध गए। फलतः सेठ अर्हद्दास, उसकी आठों पत्नियों, राजा, मंत्री और स्वर्णखुर ने उसी दिन दीक्षा धारण कर ली। उत्कृष्ट संयम साधना से सभी ने मोक्ष प्राप्त किया। -सम्यक्त्व कौमुदी कथा (ख) अर्हदास कच्छ देश का एक श्रेष्ठी। (देखिए-विजय-विजया) ।
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