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सम्बन्धियों और पूज्यजनों को मारकर प्राप्त होने वाला साम्राज्य व्यर्थ है। अर्जुन के इस चिन्तन को श्रीकृष्ण ने मोड़ दिया और उसे सत्य को समझाने वाला उपदेश दिया। तदनन्तर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हुआ। युद्ध में उसने अद्वितीय शौर्य का प्रदर्शन किया। वासुदेव श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर उसके गौरव को सदा-सदा के लिए शाश्वत बना दिया। भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे दुर्जेय योद्धाओं को अर्जुन ने युद्ध में परास्त किया।
अर्जुन ने अपने जीवनकाल में अनेक विवाह किए। द्रौपदी उसकी प्रथम पत्नी थी, जिसे उसने मत्स्य वेध कर जीता था। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा भी अर्जुन की पत्नी थी। सुभद्रा से ही अभिमन्यु का जन्म हुआ था। अर्जुन की जीवन गाथा अत्यन्त विशाल, गहन और प्रलम्ब है। उसका मधुरतम परिचय यही है कि वह श्रीकृष्ण का अनन्य अनुरागी था। युद्ध शुरू होने से पहले जब अर्जुन और दुर्योधन श्रीकृष्ण से युद्ध-सहायता मांगने के लिए पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने कहा, एक पक्ष में मेरी सकल सेना रहेगी और द्वितीय पक्ष में मैं निहत्था रहूंगा। अर्जुन ने निहत्थे कृष्ण को मांग कर अपनी कृष्णभक्ति का परिचय दिया।
__ अंत में अपने भाइयों के साथ प्रव्रजित बनकर अर्जुन ने भी सुगति प्राप्त की। अर्जुन माली ___राजगृह नगर का रहने वाला एक माली, जिसकी अपनी एक पुष्पवाटिका थी। उसकी पत्नी का नाम बन्धुमती था। अर्जुन अपनी पुष्पवाटिका में विभिन्न प्रकार के फूल उगाता था। राजगृह नगर में फूल विक्रय कर वह अपनी आजीविका चलाता था। अर्जुन की पुष्पवाटिका में मुद्गरपाणि नामक यक्ष का पुश्तैनी यक्षायतन था। प्रतिदिन अर्जुन माली अपनी पत्नी के साथ मिलकर वाटिका से फूल चुनता, चुने हुए फूलों में से कुछ श्रेष्ठ फूल वह यक्ष प्रतिमा पर चढ़ा कर उसकी पूजा करता, तदनन्तर वह फूल बेचने के लिए नगर में जाता। उसका यही दैनिक कार्यक्रम था।
एक दिन एक घटना ने अर्जुन माली के सरल और शान्त जीवन की दशा और दिशा बदल डाली। उस दिन अर्जुन ने फूल चुनने के बाद कुछ फूल यक्ष प्रतिमा पर अर्पित किए और यक्ष को वन्दन करने के लिए झुका। उधर छह युवक जिन्हें ललित-गोष्ठी के नाम से जाना जाता था, बन्धुमती के रूप पर आसक्त बनकर और पूरे षड्यन्त्र के साथ पहले ही यक्षायतन में कपाटों के पीछे छिपे थे। उन्होंने एकाएक धावा बोलकर झुके हुए अर्जुन को दबोच लिया और रस्सियों से बांध डाला। उसके बाद उसके ही समक्ष उन्होंने उसकी पत्नी को अपमानित और पतित किया। यह सब देख अर्जुन के क्रोध का आर-पार न रहा। उसका क्रोध ऐसे में यक्ष पर उतरा। उसने यक्ष को धिक्कारा-रे यक्ष! तू काष्ठनिर्मित ही नहीं है, तेरा हृदय भी काष्ठ है ! व्यर्थ पूजा करता रहा हूं तुम्हारी आज तक! तुम्हारे ही मंदिर में तुम्हारी प्रतिमा के समक्ष मैं बन्धन ग्रस्त बना पड़ा हूं और वे दुष्ट मेरी पत्नी को पतिता बना रहे हैं! धिक्कार है तुझे! धिक्कार सुनकर यक्ष अर्जुन के शरीर में प्रविष्ट हो गया। फिर क्या था। यक्ष की शक्ति से आवेष्टित अर्जुन की देह में अपरिमित बल उत्पन्न हो गया। सूत के कच्चे धागों की तरह उसने अपने बन्धनों को तोड़ डाला और यक्ष प्रतिमा के हाथ से मुद्गर लेकर देखते-ही-देखते उन छहों उद्दण्ड यवकों और अपनी पत्नी को मार डाला। इससे भी अर्जन का क्रोध शांत नहीं हुआ। वह उसी अवस्था में राजमार्ग पर उतर आया और सामने आने वाले स्त्री-पुरुषों का वध करने लगा। राजगृह नगरी में अर्जुन का आतंक फैल गया। उसे बन्दी बनाने के समस्त राज-प्रयास विफल बन गए। राजा श्रेणिक समझ गया कि अर्जुन यक्ष से संक्रान्त है। ऐसे में उसे वश नहीं किया जा सकता है। प्रजा की सुरक्षा के लिए उसने नगर-द्वार बन्द करवा दिए। ... 40 ...
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