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श्रेष्ठी के घर में दास का कार्य प्राप्त हुआ। एक बार एक ज्योतिषी सेठ का मेहमान बना। अरिदमन की हस्तरेखाओं पर उसकी दृष्टि पड़ी। उसने घोषणा की-यह बालक ही इस घर का स्वामी होगा। ___ ज्योतिषी की बात सुनकर सेठ चिंतित हो गया। उसने एक चाण्डाल को पर्याप्त धन देकर अरिदमन की हत्या करने को कहा। चाण्डाल अरिदमन को जंगल में ले गया। आखिर चाण्डाल भी एक मानव ही था। निर्दोष और सुकुमार अरिदमन का वध करते हुए उसका हृदय कांप उठा। उसने अरिदमन को पूरी बात बता दी और उसकी अंगुली काट कर उसे किसी दूसरे नगर में भाग जाने के लिए कहा। चाण्डाल ने सेठ को हत्या के प्रमाण के रूप में अरिदमन की अंगुली प्रस्तुत कर संतुष्ट कर दिया। ____ अरिदमन भटकता हुआ एक अन्य नगर में पहुंच गया। वहां एक श्रीसंपन्न श्रेष्ठी के घर में उसे कार्य मिल गया। वह कालक्रम से युवा हो गया। वसंतपुर के श्रेष्ठी का उक्त श्रेष्ठी से लेन-देन चलता था। उसी कार्यवश वसंतपुर निवासी सेठ उस से मिलने आया। उसने वहां अरिदमन को देखा और पहचान लिया। अरिदमन की कटी हुई अंगुली को देखकर उसका विश्वास सुदृढ़ बन गया। उसने मित्र सेठ से कहा-आवश्यक कार्यवश मुझे एक पत्र अपने पुत्र के लिए प्रेषित करना है। सेठ ने कहा-मेरे सेवक को आप पत्र दे दीजिए। यह आपका कार्य संपन्न कर देगा।
सेठ ने अपने पुत्र के लिए एक गुप्त पत्र लिखा। पत्र में लिखा 'पत्रवाहक को विष दे दिया जाए।' पत्र लेकर अरिदमन वसंतपुर के लिए रवाना हुआ। वसंतपुर पहुंचकर वह नगर के बाह्य भाग में स्थित उद्यान में विश्राम करने लगा। वहां उसी सेठ की पुत्री-विषा देवपूजन के लिए आई थी। वह अरिदमन के रूप पर मोहित हो गई। वार्तालाप में संदर्भ खुल गए। विषा ने पिता का पत्र पढ़ा तो वह सहम गई। उसने कुशलतापूर्वक पिता द्वारा लिखे गए विष शब्द के समक्ष आकार लगा दिया। . अरिदमन ने श्रेष्ठी के घर पहुंचकर उसके पुत्र को पत्र प्रदान किया। पत्र पढ़कर श्रेष्ठी-पुत्र अत्यंत प्रसन्न हुआ। अरिदमन के साथ उसने अपनी बहन का विवाह संपन्न कर दिया। अरिदमन उसी घर में गृहदामाद बनकर रहने लगा।
यथासमय सेठ अपने नगर में लौटा। अरिदमन को गृह-दामाद के रूप में देखकर उसका मस्तक चकरा गया। उसने पुनः एक षड्यंत्र रचकर अरिदमन की हत्या का प्रयास किया, पर दैववश उस षड्यंत्र में सेट को अपना ही पुत्र खोना पड़ा।
पुत्र-मृत्यु से सेठ को तीव्र आघात लगा और उसका भी निधन हो गया। इस प्रकार ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुरूप अरिदमन उस घर का स्वामी बन गया। आंशिक अहिंसा व्रत के पालन से अरिदमन के जीवन की दिशा बदल गई।
कालांतर में एक मुनि ने अरिदमन को उसके पूर्वजन्म की कथा सुनाई। उसे सुनकर अरिदमन के हृदय में सम्यक्त्व का बीज सुदृढ़ बन गया। उसने श्रावक धर्म ग्रहण किया। आदर्श धर्ममय जीवन का पालन कर वह सद्गति का अधिकारी बना।
-पौराणिक जैन कथा के आधार पर
अरिष्ट
पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ के तेंतालीस गणधरों में से प्रथम गणधर । (देखिए-धर्मनाथ तीर्थंकर) अरिष्टनेमि (तीर्थंकर)
जैन धर्म परम्परा के बाइसवें तीर्थंकर, सोरियपुर नरेश महाराज समुद्रविजय की रानी शिवादेवी के अंगजात ... जैन चरित्र कोश --
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