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ले। पुत्रमुनि ने कहा, यह साध्वाचार के सर्वथा प्रतिकूल है, मैं ऐसा नहीं करूंगा। देव ने विकुर्वित श्रावक समुदाय उपस्थित कर मुनि से भिक्षा की प्रार्थना कराई। मुनि ने देवपिण्ड कहकर आहार अस्वीकार कर दिया। पुत्र मुनि की इस दृढ़धर्मिता से देव गद्गद हो गया। वह दिव्य बल के द्वारा मुनि श्री को आचार्य श्री के पास ले गया और मुनि के परीक्षा में उत्तीर्ण होने की पूरी बात आचार्य श्री से कही। आचार्य श्री ने कण्ठ से लगाकर शिष्य का स्वागत किया। उत्कृष्ट चारित्र-धर्म की आराधना द्वारा मुनि ने आत्मकल्याण किया।
-उत्तराध्ययन वृत्ति हारिल (आचार्य)
वी.नि. की ग्यारहवीं सदी के एक प्रभावक युगप्रधान आचार्य । संभवतः उनका जन्म गुप्तवंश के राजकुल में हुआ था। राज्य का परित्याग कर वैराग्य भाव से उन्होंने श्रमण दीक्षा अंगीकार की। बाद में वे युगप्रधानाचार्य पद पर संघ द्वारा आसीन किए गए।
आचार्य हारिल एक तेजस्वी मुनि थे। उनकी वाणी में ओज था। उनके युग में भारत हूण आक्रान्ताओं से आतंकित था। हूण नरेश तोरमाण ने भारत की जनता पर घोर अत्याचार किए थे। गांव और नगरों को लूटने के पश्चात् वह उन्हें आग लगा देता था। आचार्य हारिल ने हूण नरेश को प्रतिबोध देने का निश्चय किया और वे उसकी राजधानी पव्वइया (पर्वतिका) पधारे। उन्होंने अपने आचार, विचार और उपदेश से हूण नरेश के हिंसक मानस पर अपूर्व प्रभाव छोड़ा। हूण नरेश ने हिंसा का त्याग कर दिया और आचार्य हारिल को अपना गुरु मान लिया।
आचार्य हारिल 'हरिगुप्त' और 'हरिभद्र' इन दो नामों से भी विश्रुत हैं। हालिक मुनि
एक हल चलाने वाला किसान जो गौतम स्वामी के उपदेश से मुनि बन गया। हालिक को मुनिव्रत देकर गौतम स्वामी चलने लगे। हालिक मुनि ने पूछा, भगवन् ! हम कहां जा रहे हैं ? गौतम स्वामी ने कहा, हम हमारे गुरु के पास जा रहे हैं। हालिक मुनि ने पूछा, भगवन् ! आपसे बढ़कर भी कोई गुरु हो सकता है क्या? गौतम स्वामी ने कहा, मुने ! मेरे गुरु के समक्ष मैं तो कुछ भी नहीं हूँ। मेरे गुरु भगवान महावीर मुनष्यों, नरेन्द्रों, देवों और देवेन्द्रों से वन्दित और पूजित हैं। उनकी महिमा अपरम्पार है। ____ सुनकर हालिक मुनि गद्गद बन गया। मन ही मन अपने गुरु के गुरु की महिमा गाता हुआ और गौतम स्वामी का अनुगमन करता हुआ भगवान के पास पहुंचा। परन्तु भगवान को देखते ही हालिक मुनि सहम गया और मुनिवेश फेंककर भाग गया। ___ यह सब कुछ देखकर गौतम स्वामी के आश्चर्य का आर-पार न रहा। उन्होंने भगवान से पूछा, भंते! यह हालिक आपको देखते ही डरकर क्यों भाग गया? भगवान ने कहा, गौतम ! यह हालिक उस सिंह का जीव है जिसका वध त्रिपृष्ठ के भव में मैंने किया था। मुझे देखते ही इसके भय के संस्कार जाग गए और यह भाग गया। त्रिपृष्ठ के भव में तुम मेरे सारथि थे और उस समय मरणासन्न सिंह को तुमने मधु-मिष्ठ वचनों से सान्त्वना दी थी। उसी के फलस्वरूप वह तुम्हारे प्रति प्रेम भाव से भर गया था। ___गौतम स्वामी ने हालिक का भविष्य पूछा तो प्रभु ने फरमाया, हालिक ने सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया है। उसकी आत्मा अनादिकालीन मिथ्यात्व से एक बार मुक्त बन गई है। अब उचित समय पर उसे पुनः सम्यग्दर्शन का सुयोग प्राप्त होगा और चारित्र की आराधना करके वह सिद्ध पद का अधिकारी बनेगा। ... जैन चरित्र कोश ...
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