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लोगों से उसका कारण पूछता तो उसे उत्तर मिलता-हम साधुओं को वन्दन करते हैं, दण्ड कमण्डलधारी गृहस्थ को नहीं। इससे सोमदेव ने दण्ड-कमण्डल का परित्याग कर दिया, परन्तु उसने धोती का त्याग नहीं किया। ___आर्य रक्षित अपने ज्ञान में देख रहे थे कि उनके पिता भद्रिक परिणामी हैं। लज्जा उनके दीक्षित होने में बाधा है। आचार्य श्री ने एक उपक्रम किया। श्रावकों के कुछ नन्हे बालकों को समझाकर उन्होंने सोमदेव की धोती छीन लेने के लिए कहा। बालकों ने वैसा ही किया। हैरान होकर सोमदेव ठिठक गया। आचार्य श्री द्वारा प्रेरित एक श्रावक ने तत्काल सोमदेव को चोलपट्ट प्रदान किया। सोमदेव ने चोलपट्ट धारण कर लिया
और आचार्य श्री के पास उपस्थित होकर नटखट बच्चों की शिकायत की। तभी एक श्रावक ने कहा, महाशय! आप चाहें तो आपके लिए धोती की व्यवस्था करूं?
सोमदेव ने कहा, अब चोलपट्ट धारण कर ही लिया है तो इसका त्याग नहीं करूंगा। फिर सोमदेव की प्रार्थना पर आचार्य श्री ने उसे प्रव्रज्या का दान दिया। शुद्ध साध्वाचार का पालन कर आर्य सोमदेव देवलोक के अधिकारी बने। (ख) सोमदेव (आचार्य)
दिगम्बर जैन परम्परा के एक समर्थ विद्वान, साहित्य-स्रष्टा और वादकुशल आचार्य। आचार्य सोमदेव देव संघ के थे और उनके गुरु का नाम नेमिदेव था जो यशोदेव के शिष्य थे।
___ आचार्य सोमदेव अपने समय के यशस्वी और वादी मुनि थे। उनकी वादकुशलता के समक्ष तत्कालीन विद्वान नतमस्तक थे। आचार्य श्री ने कई शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त की थी।
आचार्य सोमदेव उद्भट विद्वान थे। यशस्तिलक चम्पू काव्य उनकी एक श्रेष्ठ रचना है। उन्होंने अन्य कई ग्रन्थों की रचना भी की। उपरोक्त ग्रन्थ के अतिरिक्त उनके दो अन्य ग्रन्थ नीतिवाक्यामृत और अध्यात्म तरंगिणी वर्तमान में उपलब्ध हैं। उन द्वारा रचित तीन अन्य ग्रन्थों की नामावली भी प्राप्त होती है।
आचार्य सोमदेव ने लुप्त प्राय अर्थ बहुल शब्दों का अपने साहित्य में पूर्ण अधिकार के साथ सुन्दर प्रयोग किया है जो उनकी विद्वत्ता को सहज ही सिद्ध करता है। उनका समय वी.नि. की 15वीं शती माना जाता है। (क) सोमप्रभ (आचार्य)
श्वेताम्बर मंदिरमार्गी परम्परा के एक विश्रुत आचार्य। बड़गच्छ के विजयसिंह सूरि उनके गुरु थे। आचार्य सोमप्रभ पोरवाल वंशज थे। उनके दादा का नाम जिनदेव और पिता का नाम सर्वदेव था। उनके दादा मंत्री पद पर प्रतिष्ठित थे। सोमप्रभ दीक्षा धारण कर अध्ययनशील मनि बने। विविध भाषाओं और दर्शनों के वे अधिकारी विद्वान थे। उन द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थों की नामावली इस प्रकार है-सुमतिनाह चरिय, कुमारपाल पड़िबोहो, शृंगार-वैराग्य तरंगिनी, सिन्दूर प्रकर, शतार्थकाव्य आदि।
आचार्य सोमप्रभ ने 'कुमारपाल पड़िबोहो' ग्रन्थ की रचना वी.नि. 1711 में की थी। इस उल्लेखानुसार आचार्य सोमप्रभ वी.नि. की 18वीं सदी के पूर्वार्द्ध के आचार्य सिद्ध होते हैं। (ख) सोमप्रभ (आचार्य)
तपागच्छ के एक प्रभावक जैन आचार्य। धर्मघोषसूरि उनके गुरु थे। आचार्य सोमप्रभ का जन्म वी. नि. 1780 में हुआ था। मात्र 11 वर्ष की अवस्था में ही वे प्रव्रजित हुए। अध्ययन रुचि और श्रेष्ठ मेधा के ... 696
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