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(ग) सुमंगला
षष्ठम विहरमान तीर्थंकर श्री स्वयंप्रभ स्वामी की जननी। (देखिए-स्वयंप्रभस्वामी) सुमणिभद्र छठे पट्टधर आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य।
-कल्पसूत्र स्थविरावली सुमतिचन्द्र
राजगृह के राजा पृथ्वीभूषण का बुद्धिशाली और चारित्र का धनी मंत्री। वह जटिल से जटिल समस्याओं को बातों ही बातों में हल कर देता था। उसकी बुद्धिमत्ता के कारण राजगृह की जनता सुखी और सम्पन्न थी।
अवन्ती नरेश पृथ्वीसेन ने भी सुमतिचन्द्र की बुद्धिमत्ता की प्रशस्तियां सुनी तो उसने अनेक कठिन प्रश्न सुमतिचन्द्र के समाधानार्थ भेजे। पृथ्वीसेन के प्रत्येक प्रश्न, प्रहेलिका और समस्या का समुचित समाधान सुमतिचन्द्र ने किया। पृथ्वीसेन राजगृह को जीतने की कल्पना अपने हृदय में संजोए बैठा था। मंत्री सुमतिचन्द्र की बुद्धिमत्ता को जान लेने के पश्चात् उसने राजगृह पर आक्रमण का विचार त्याग दिया। क्योंकि पृथ्वीसेन स्वयं एक बुद्धिमान राजा था और वह जानता था कि बुद्धिबल के समक्ष सैन्यबल शीघ्र ही परास्त हो जाता
है।
__एक बार राजगृह के राजोद्यान में एक मुनि पधारे। मुनि ने मंत्री सुमतिचन्द्र को लक्ष्य करके उपदेश दिया। मुनिश्री ने फरमाया, बुद्धि की उत्कृष्टता का लक्षण है कि उसे तत्वचिन्तन, आत्मकल्याण और परमार्थ में नियोजित किया जाए। मुनि के उपदेश से प्रबुद्ध बन कर सुमतिचन्द्र ने प्रव्रज्या धारण कर ली। महाराज पृथ्वीभूषण ने मंत्री का अनुगमन किया और उसने भी प्रव्रज्या धारण कर ली। तप-संयम का पालन कर दोनों देवलोक में गए।
कई भवों के बाद मंत्री सुमतिचन्द्र का जीव ही वर्तमान अवसर्पिणी काल के पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ के रूप में अवतरित हुआ। सुमतिनाथ (तीर्थंकर)
वर्तमान चौबीसी के पंचम तीर्थंकर । विनीता नगरी के विश्रुत महाराज मेघ सुमतिनाथ के पिता थे और महारानी सुमंगलादेवी उनकी माता थी। भगवान जब गर्भ में आए तो एक घटना घटी। एक दिन महाराज मेघ के दरबार में दो महिलाएं न्याय कराने आयीं। उनके साथ एक छोटा सा बालक था। वे दोनों महिलाएं उस बालक पर अपना-अपना अधिकार बता रही थीं। बालक इतना छोटा था कि वह ठीक से बोल नहीं सकता था। साथ ही उसे जन्म से ही उन दोनों महिलाओं का समान प्यार प्राप्त हुआ था। वस्तुतः वे दोनों महिलाएं एक सार्थवाह की पत्नियां थीं। सार्थवाह की मृत्यु के पश्चात् यह विवाद उठा। इसके पीछे का रहस्य यह था कि पुत्रवती माता ही पति के धन की स्वामिनी होने वाली थी। महाराज मेघ और उनके बुद्धिमान मंत्री इस विवाद का हल नहीं निकाल पाए। रानी सुमंगला को इस विवाद का पता चला तो उसने इस विवाद को चुटकियों में सुलझा दिया। उसने दोनों महिलाओं को अपने पास बुलाया और मातृहृदय को पहचानने के लिए विचित्र आदेश दिया कि पुत्र को दो हिस्सों में काटकर एक-एक हिस्सा दोनों को दे दिया जाए, इससे दोनों को पुत्र और पति का आधा-आधा धन मिल जाएगा। नकली मां ने महारानी के न्याय को तत्क्षण ...674
- जैन चरित्र कोश ...