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मर गया। मरकर वह सुनन्दा के उदर में उत्पन्न हुआ। धीरे-धीरे गर्भ के लक्षण प्रगट होने लगे तो सुनन्दा ने अपनी विश्वस्त परिचारिकाओं के सहयोग से गर्भ गिरवा दिया। रूपसेन का जीव गर्भ से मरकर एक सर्प बना। उधर सुनन्दा का विवाह क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा के साथ कर दिया गया। पूर्व जन्म के प्रेम-संयोग के कारण सर्प सुनन्दा के निकट पहुंचा और उसे देखकर झूमने लगा। राजा ने सर्प को मार डाला। सर्प मरकर कौवा बना। वह कौवा भी राजा द्वारा मार दिया गया। फिर वह हंस बना और राजा द्वारा मार दिए जाने पर हरिण बना। हरिण भी वन-विहार को आई सुनन्दा को देखकर मोहित हो गया। राजा ने उसे भी मार दिया और अपने पाचक को आदेश दिया कि वह हरिण का मांस पकाकर उन्हें परोसे। हरिण का मांस भक्षण करते हुए राजा और सुनन्दा परस्पर वार्तालाप कर रहे थे कि उन्होंने वैसा मधुर मांस पहले कभी नहीं खाया है।
उधर से दो अतिशय ज्ञानी मुनि गुजर रहे थे। राजा और सुनन्दा का वार्तालाप सुनकर दोनों मुनियों ने जीव और संसार की विचित्रता पर गर्दन हिलाकर आश्चर्य प्रगट किया। सुनन्दा बुद्धिमती थी। वह समझ गई कि मुनि उन्हें देखकर ही गर्दन हिला रहे हैं। वह खाना ज्यों का त्यों छोड़कर अपने पति को साथ लेकर मुनियों के पास आई और विनम्रता पूर्वक उनके गर्दन हिलाने का कारण पूछा। मुनि मौन रहे। पर सुनन्दा के पुनः-पुनः किए गए आग्रह पर मुनियों ने उसके जीवन का आद्योपान्त कथानक सुनाते हुए कहा, जिस गर्भस्थ शिशु को तुमने गिराया वह रूपसेन का ही जीव था, वह सर्प, वह कौवा, वह हंस और वह हरिण भी रूपसेन का ही जीव था। हमारे गर्दन हिलाने के पीछे उस आश्चर्य का भाव था कि रूपसेन मात्र विषय के चिन्तन से ही जन्म-मरण की दुर्लध्य अटवी में घिर गया है, फिर जो लोग दिन-रात भोगों में लिप्त रहते हैं, उनकी कैसी गति होगी। __सुनन्दा मुनि की बातों से ऐसी प्रभावित हुई कि उसने दीक्षा धारण कर ली। राजा ने भी उसका अनुगमन किया। आखिर सुनन्दा के उपदेश से ही रूपसेन का जीव जो हाथी की योनी में था प्रबुद्ध हुआ। उसे जीवन की सम्यक दिशा मिली। वह वहां से देवलोक में गया। भविष्य में वह मोक्ष जाएगा। सुनन्दा उग्र तप से समस्त कर्मराशि को अशेष कर सिद्ध हुई।
-धन्यचरित्र (ख) सुनन्दा ___ भगवान ऋषभदेव की द्वितीय पत्नी, बाहुबली तथा सुन्दरी की माता। (देखिए-ऋषभदेव तीर्थंकर) (ग) सुनन्दा
सावत्थी नरेश कनककेतु की पुत्री, स्कन्दक कुमार की सहोदरा और कुन्तीनगर के राजा पुरुषसिंह की रानी। (दखिए-स्कन्दक मुनि) (घ) सुनन्दा
चतुर्थ विहरमान तीर्थंकर श्री सुबाहु स्वामी की जननी। (देखिए-सुबाहु स्वामी) (ङ) सुनन्दा प्रभु पार्श्वनाथ की प्रमुख श्राविकाओं में एक।
-समवायांग (च) सुनन्दा
धनगिरि की अर्धांगिनी और जैन धर्म के महान प्रभावशाली आचार्य वज्रस्वामी की माता। सुनन्दा ... जैन चरित्र कोश ...
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