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(च) शंख (राजा)
शंखपुर देश का राजा जिससे कलावती का पाणिग्रहण हुआ था। (देखिए-कलावती) शकटकुमार
साहजनी नगरी निवासी एक धनपति श्रेष्ठी सुभद्र और उसकी अर्धांगिनी भद्रा का पुत्र । शकटकुमार जुआरी और व्यभिचारी युवक था। भगवान महावीर ने गौतम स्वामी के पूछने पर स्वयं अपने श्रीमुख से उसका पूर्वभव कहा था, जो इस प्रकार है-पूर्वभव में शकट छगलपुर नगर का छणिक नाम का एक बहुत बड़ा मांस विक्रेता था। गाय, भैंस, भेड़, बकरे, मोर आदि हजारों की संख्या में पशु और पक्षी उसके यहां मांस के लिए बाड़ों में बंद रखे जाते थे, वह मांस का एक प्रसिद्ध क्रेता और विक्रेता था। वह स्वयं भी मांस भक्षण करता था। पशुओं के प्रति तनिक भी करुणा का विचार उसके मन में नहीं था। सात सौ वर्ष की आयु भोगकर वह चतुर्थ नरक में गया। वहां से निकलकर सुभद्र सेठ के घर पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ।
बचपन में ही शकट के माता-पिता का देहान्त हो गया। धीरे-धीरे उसके जीवन में सातों ही कुव्यसन प्रविष्ट हो गए। नगर की प्रसिद्ध गणिका सुदर्शना का वह दीवाना बन गया। महामात्य सुषेण को इस बात का पता लगा तो उसने शकट को मार-पीटकर भगा दिया और गणिका को अपने प्रासाद में रख लिया। पर कामी को चैन कहां ? एक दिन अवसर साधकर शकट कुमार महामात्य के प्रासाद में घुस गया। महामात्य ने उसे देख लिया और राजपुरुषों द्वारा उसे बन्दी बनवा दिया गया। साथ ही शकट के प्रति आसक्त सुदर्शना को भी बन्दिनी बना लिया गया। राजाज्ञा से उन दोनों के अंग भंग कराके शूली पर लटका दिया गया। शकटकुमार के जीव के सम्बन्ध में जो एक ज्ञातव्य तथ्य है वह यह है कि असंख्यात काल तक संसार में भटकते हुए उसे कभी धर्म का आधार प्राप्त होगा और वह चारित्र की आराधना करके मोक्ष में जाएगा।
-विपाक सूत्र, 4 शकडाल महामंत्री
पाटलिपुत्र नरेश धननन्द के महामंत्री और आस्थाशील जैन श्रावक । वररुचि नामक एक ब्राह्मण राजा को प्रतिदिन नवीन श्लोक सुनाकर खजाने से बहुत सा धन ले जाता था। महामंत्री इसमें जनता के धन का अपव्यय देखता था। उसने अपनी पुत्रियों की सहायता से यह सिद्ध कर दिया कि वररुचि नए नहीं बल्कि पुराने श्लोक सुनाकर राजा को धोखा देता है। राजा ने वररुचि को अपमानित कर नगर से निकाल दिया। वररुचि ने एक अन्य चाल चली जिसे शकडाल ने निरस्त कर दिया। इससे वररुचि प्रतिशोध की ज्वालाओं में जल उठा और उसने शकडाल के पुत्र श्रीयंक के विवाह के प्रसंग पर राजा को भड़का कर शकडाल के प्रति उसे अविश्वास से भर दिया। आखिर स्वामिभक्ति का परिचय देने के लिए शकडाल को अपने ही पुत्र के हाथों मृत्यु स्वीकार करनी पड़ी। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका बड़ा पुत्र स्थूलभद्र साधु बन गया और छोटा पुत्र श्रीयंक महामंत्री बना। शक क्षत्रप षोडास __ ई. पूर्व प्रथम सदी का मथुरा का राजा जो जाति और कुल से अनार्य होते हुए भी जैन धर्म के प्रति आस्थावान था। उसके शासन काल में मथुरा नगरी में जैन संघ ने काफी उत्थान किया था। मथुरा से प्राप्त क्षत्रपकालीन शिलालेखों में जैन धर्म के शिलालेखों की संख्या सर्वाधिक है। कई जैन श्रावकों और श्राविकाओं द्वारा जिनालयों की विभिन्न रूपों में स्थापना आदि के कई उल्लेख प्राप्त हुए हैं जो शक-क्षत्रप राज्यकाल को 0576
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