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तो उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि उसका पति बन्दी बना लिया गया है। अनोखी ने एक योजनानुसार कार्यक्रम सुनिश्चित किया। सास-श्वसुर की आज्ञा प्राप्त कर वह अपने पितृ-गृह चली गई। वहां पिता को अपनी योजना से अवगत कराया और पुरुषवेश धारण कर, वह बीसाबोली के देश में पहुंची। उसने बीसाबोली के बीसों प्रश्नों का सटीक उत्तर दिया। फलतः बीसाबोली ने उसे पति रूप में चन लिया. साथ ही उ साम्राज्य भी मिला। अनोखी ने कर्णसिंह के अतिरिक्त समस्त राजाओं और राजकुमारों को ससम्मान स्वतंत्र कर दिया। कर्णसिंह ने पुरुषवेशी अनोखी से प्रार्थना की कि उसे भी स्वतंत्र कर दिया जाए। अनोखी ने कहा, तुम हमें अपनी सेवा से संतुष्ट करो तो तुम्हें भी स्वतंत्र कर दिया जाएगा। स्वतंत्रता प्राप्ति की उमंग में कर्णसिंह अनोखी की सेवा में तन-मन-प्राण से जुट गया। उसी अवधि में अनोखी ने कर्णसिंह से जूते भी पहने, पैर भी दबवाए और चरणोदक भी पिलाया। फिर राजदरबार में अनोखी ने घोषणा की कि मैं बीसाबोली
और प्राप्त साम्राज्य का दान अपने मित्र कर्णसिंह को करता हूं, क्योंकि कर्णसिंह इस सब के लिए सर्वभांति सुयोग्य युवक है।
कर्णसिंह को अकल्पनीय पुरस्कार प्रदान कर अनोखी अपने नगर में आ गई और राजमहल में पहुंच गई। उधर कर्णसिंह भी बीसाबोली के साथ अपने नगर में पहुंचा। शीघ्र ही समय निकालकर वह अनोखी के कक्ष में पहुंचा और जता लेकर उसकी ओर बढा। अनोखी के कक्ष के कोने में उसका परुषवेश टंगा देखकर कर्णसिंह के पांवों के तले की धरा खिसक गई। उसके हाथ का जूता गिर गया। अनोखी ने पति के चरण स्पर्श कर कहा, महाराज! आपकी जिद्द के कारण मुझे यह सब करना पड़ा, मेरे किए पर मुझे क्षमा कर अपनी उदारता का परिचय दीजिए। ___ युवराज ने अनोखी को कण्ठ से लगाते हुए कहा, तुम जैसी अपठित विदुषी पत्नी को पाकर मैं धन्य हो गया हूं।
बुद्धिमती अनोखी ने जीवन के उत्तरार्ध में संयमपथ की आराधिका बन सद्गति प्राप्त की। अन्निकापुत्र (आचार्य) .. एक अति प्राचीन जैनाचार्य जिनके उपदेश को सुनकर पुष्पचूला विरक्तमती बनी थी। (देखिए-पुष्पचूला) अपराजित
सिंहपुर नगर के राजा हरीनन्दी का पुत्र, एक सुयोग्य और साहसी राजकुमार। योग्य वय में अपराजित बहत्तर कलाओं में निपुण बन गया। रूप, गुण और बल का अपूर्व संगम अपराजित में हुआ था। उसका एक मित्र था, जिसका नाम विमलबोध था। दोनों मित्र आमोद-प्रमोद पूर्वक जीवन यापन कर रहे थे। ___ एक बार दोनों कुमार अश्वारूढ़ होकर वन विहार को गए। अश्व वक्रशिक्षित थे। लगाम खींचते ही हवा से बातें करने लगे। सूदूर पर्वतों से घिरे वन में पहुंचकर जब दैवयोग से वल्गा ढीली हुई तो अश्व स्वतः ही रुक गए। दोनों मित्रों ने विचार किया, हम नगर से बहुत दूर आ गए हैं, अब नगर में लौटने के बजाय हमें देशाटन करना चाहिए। इस विचार के साथ दोनों मित्र आगे चल दिए। यात्रापथ पर अपराजित के बल
और बुद्धि की अनेक परीक्षाएं हुईं। उसने अपने पराक्रम और परोपकारिता से कई लोगों के प्राणों की रक्षा की। उस यात्रा में राजकुमार ने कई राजपुत्रियों से पाणिग्रहण भी किया। कई अवसरों पर उसे युद्ध भी लड़ने पड़े। पुण्य-पराक्रम के कारण राजकुमार को सर्वत्र सफलता प्राप्त हुई। ___ राजा जितशत्रु की पुत्री का नाम प्रीतिमति था। राजकुमारी रूप और गुणों से सम्पन्न थी। राजा ने ...20 .
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