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विभीषण
लंकापति प्रतिवासुदेव रावण का अनुज । विभीषण के पिता का नाम रत्नश्रवा और माता का नाम केकसी था। रावण के साथ ही विभीषण ने भी विद्याओं की साधना की थी और वह कई विद्याओं का स्वामी बन गया था।
एक बार एक ज्योतिषी ने रावण को बताया कि उसकी मृत्यु अयोध्यापति दशरथ के पुत्रों-राम और लक्ष्मण के हाथों से होगी और उसका कारण होगी मिथिलापति जनक की पुत्री सीता। अग्रज की मृत्यु के निमित्तों के बारे में सुनकर विभीषण कुपित हो गया। उसने प्रतिज्ञा की कि इससे पहले कि राम और सीता का जन्म हो वह उनके जन्मदाताओं का ही वध कर देगा। क्रोध की आग में जलता हुआ विभीषण दशरथ के वध के लिए अयोध्या की दिशा में चल दिया।
नारद जी ने पहले ही यह सूचना दशरथ के पास पहुंचा दी कि विभीषण उनके वध के लिए आ रहा है। कुशल मंत्रियों ने एक गुप्त योजना निर्मित की। योजनानुसार महाराज दशरथ वेश परिवर्तन करके प्रदेश रवाना हो गए और उनके स्थान पर उनके जैसी ही एक कृत्रिम आकृति निर्मित करके उनकी शय्या पर लेटा दी गई। साथ ही यह प्रचारित कर दिया कि दशरथ बीमार हैं।
विभीषण को अपनी ताकत पर घमण्ड था। अयोध्या में किसी प्रकार का अवरोध न पाकर वह सीधा राजमहल में पहुंचा। शय्या पर लेटाई गई आकृति को ही दशरथ समझकर उसने तलवार का प्रहार किया। कुशल मंत्रियों की योजनानुसार छिपे हुए व्यक्ति ने चीत्कार किया। कृत्रिम रक्त से भीगी तलवार को देखकर विभीषण को विश्वास हो गया कि उसके भाई के शत्रु का जन्मदाता मर चुका है।
__ अयोध्या से लौटते हुए विभीषण ने विचार किया-राम का जन्म ही अब संभव नहीं रहा तो सीता के लग्न की राम से कल्पना उपहास्य है। इस प्रकार जनक के वध का विचार त्याग कर वह अपने देश को चला गया। कालान्तर में शनैः-शनैः विभीषण में वैचारिक परिवर्तन होता गया। विशेष रूप से जब वृद्धावस्था में रावण ने सीता का अनीति पूर्वक तथा छल-बल से हरण किया तो यह विभीषण को पसन्द न आया। उसने रावण को कई बार समझाया कि वह राम को उसकी पत्नी लौटा दे। पर उसकी नेक शिक्षाओं को रावण ने स्वीकार नहीं किया तथा उसका उपहास भी उड़ाया। अन्ततः निराश विभीषण ने रावण को छोड़ दिया और वह श्री राम की शरण में चला गया।
युद्ध में रावण की मृत्यु के पश्चात् श्री राम ने वहां का शासन सूत्र विभीषण को प्रदान किया। विभीषण ने न्याय-नीति पूर्वक राज्य का संलाचन किया। साहित्य में विभीषण को एक धर्मात्मा पुरुष के रूप में सम्मानित स्थान प्राप्त है।
-जैन रामायण (क) विमल
अपने नाम के अनुरूप विमल मन और विमल बुद्धि सम्पन्न एक युवक । वह कुशस्थल नगर के श्रेष्ठी कुवलयचन्द्र का पुत्र था। उसका एक सहोदर अनुज था जिसका नाम सहदेव था। विमल सात्विक वृत्ति का तथा सहदेव राजसी वृत्ति का युवक था। किसी समय दोनों भाइयों को मुनि-दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। " मुनि की धर्म देशना से दोनों के हृदय में धर्मानुराग जागृत हुआ। दोनों ने श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। दोनों श्रावक-व्रतों का पालन करने लगे। पर विमल जिस एकनिष्ठ भाव से व्रतों का पालन करता था, वैसी निष्ठा सहदेव में नहीं थी। ... जैन चरित्र कोश ...
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