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काल होगी। सुनकर जीवयशा का नशा उतर गया। मुनि को मार्ग मिल गया। वे अपने स्थान पर चले गए। ____ अपने स्थान पर पहुंचकर अतिमुक्त मुनि ने वचन दोष का प्रायश्चित्त किया। उग्रसाधना से केवलज्ञान प्राप्त कर वे मोक्ष पधारे। अतिवीर
महावीर का ही एक नाम। इस नाम के प्रचलित होने के पीछे एक घटना है जो इस प्रकार है
एक बार राज्य का प्रधानहस्ती मत्त बन गया और बन्धन तोड़कर तथा महावतों को रौंदकर भाग छूटा। संभावित महाविनाश से आशंकित नगरजन त्राहिमाम्-त्राहिमाम् करने लगे। हाथी को वश करने के समस्त उपाय व्यर्थ सिद्ध हो गए। तब वर्धमान ने निर्भय और निर्द्वन्द्व मन से आगे बढ़कर उस मत्त हस्ती को सहज भाव से वश में कर लिया। उससे नगरजनों ने वर्धमान को 'अतिवीर' कहकर पुकारा और इस नाम से वे विख्यात हो गए। अतूंकारी भट्टा
अवन्ती नगरी के श्रेष्ठी धन की पुत्री जो आठ भाइयों की इकलौती और सबसे छोटी बहन थी। उसकी माता का नाम कमलश्री था। पिता और भाइयों का उस पर अनन्य अनुराग था और पिता का आदेश था कि उसे कोई 'तू' कहकर न बुलाए। अपूर्व लाड़-प्यार ने अतूंकारी को अभिमानिनी बना दिया। युवा होते-होते उसका अहंकार भी युवा हो गया। उसने अपने माता-पिता से स्पष्ट कह दिया कि वह उसी पुरुष से विवाह करेगी जो उसकी आज्ञा मानेगा। फलतः वह काफी वर्षों तक कुंवारी ही रही। सब ओर चर्चा फैली। उत्सुक हो राजा के मंत्री जितशत्रु ने उससे विवाह कर लिया और उसके आदेशानुसार चलने लगा। अतूंकारी ने पति से कहा कि वह जल्दी घर आया करे। पर वह ठहरा मंत्री। एक बार राजकार्यवश घर आने में उसे विलंब हो गया तो क्रोधित होकर अतूंकारी घर से निकल गई। मार्ग में उसे चोरों ने पकड़ लिया। चोरों के स्वामी पल्लीपति ने उसे अपनी पत्नी बनाना चाहा। पर अतूंकारी पतिव्रता थी। उसने पल्लीपति की पत्नी बनने के स्थान पर आत्महत्या की चेतावनी दी। इससे पल्लीपति ने उसे एक रक्तव्यापारी को बेच दिया। रक्तव्यापारी उसका रक्त निकाल कर बेचने लगा। किसी समय रक्तव्यापारी उसे लेकर अवन्ती नगरी गया। वहां अतूंकारी भट्टा के भाई ने बहन को पहचान लिया और उसे उसके पति के घर पहुंचाया।
अहंकार और क्रोध का फल अतूंकारी देख ही चुकी थी। सो उसने समता का संकल्प लेकर जीवन यापन शुरू किया। क्रोध और अहंकार को वह मानो बिल्कुल ही भूल गई। कहते हैं कि उसके जीवन में इतना महान परिवर्तन घटित हुआ कि इन्द्र ने भी उसकी समता की प्रशंसा देवसभा में की। एक देव मुनि का रूप धारण कर उसकी समता की परीक्षा लेने आया। मुनि ने उससे लक्षपाक तैल की याचना की। उसने दासी को लक्षपाक तैल का घड़ा लाने को कहा, पर देव ने माया से दासी के हाथ से एक-एक करके तीन घड़े गिरवा दिए। लाखों के नुकसान पर भी अतूंकारी को क्रोध नहीं आया। देव ने उसकी समता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। समता की साधना से जीवन पूर्ण कर अतूंकारी स्वर्ग में गई। -उपदेशमाला (धर्मदासगणि) अदीनशत्रु ____ हस्तिनापुर का राजा और पूर्वजन्म का प्रभु मल्लि का अभिन्न मित्र। एक बार उसके राज्य में एक चित्रकार आया और उसने राजा के समक्ष मल्लि भगवती के रूप की भूरि-भूरि प्रशंसा की। मल्लि के प्रति राजा के हृदय में गहनतम अनुराग का भाव उमड़ आया। उसने महाराज कुंभ के पास अपना दूत भेजा और ... जैन चरित्र कोश ..
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