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(ख) ललितांग
आनन्दपुर नगर के महाराज रिपुमर्दन का इकलौता पुत्र, वचन का धनी राजकुमार। (देखिए-रत्नवती) (ग) ललितांग
ललितांग कुमार वसंतपुर नगर के समुद्रप्रिय नामक सार्थवाह का पुत्र था। वह युवा और सुन्दर था। एक बार वह नगर में घूमने को निकला। जब वह राजमहल के निकट से गुजर रहा था तो नगरनरेश शतायुध की रानी ललिता ने उसको देखा। ललिता रानी ललितांग के रूप और यौवन पर मुग्ध बन गई। उसने अपनी चतुर और विश्वस्त दासी को भेजकर ललितांग को महल में बुला लिया और स्वागत व सुमधुर संभाषण से उसे अपने वश में कर लिया। ललितांग ललिता रानी के साथ भोग भोगते हुए वहीं रहने लगा। . एक दिन अकस्मात् राजा शतायुध ललिता रानी के महल में आया। ललिता और ललितांग सावधान हो गए। चतुर दासी ने अपनी स्वामिनी की रक्षा के लिए शीघ्र ही एक उपक्रम किया। उसने पाखाने के अन्धकूप में ललितांग को उतार दिया। पूरे राजमहल की गंदगी बहकर उस अंधकूप में आती थी। ललितांग उस अंधकूप में पड़ा हुआ महान कष्ट भोगने लगा। कहते हैं कि वह कई मास तक उस कूप में पड़ा नारकीय दशा को भोगता रहा।
पुण्ययोग से वर्षा ऋतु में वह अन्धकूप जल से भर गया। जल निस्तारण के लिए कूप के कपाट हटाए गए तो जल के तीव्र वेग के साथ ललितांग भी बहकर दूर जा गिरा। महीनों तक अन्धकूप के महा दुर्गन्धमय स्थान पर रहने के कारण वह स्वच्छ हवा को सहन नहीं कर पाया और अचेत हो गया। शनैः-शनै उसकी चेतना लौटी तो वह अपनी दशा पर महान पश्चात्ताप करने लगा। किसी तरह उसने स्वयं को स्वच्छ किया और अपने घर पहुंच गया। ललितांग के लौट आने पर उसके परिजन बहुत खुश हुए।
कुछ ही दिनों में ललितांग स्वस्थ हो गया। एक बार फिर वह नगरभ्रमण करते हुए राजमहल के निकट पहुंचा। रानी ने उसे देखा और अपने पास बुलाया। पर बुद्धिमान ललितांग ने उसका प्रस्ताव तो क्या स्वीकार करना था. उसने आंख तक उठा कर रानी की ओर नहीं देखा।
कथासार इतना ही है कि जो भोगों की ओर आकर्षित होते हैं उन्हें अन्धकूप के समान गर्भ जून में गिरना पड़ता है। जो विवेकयुक्त व्यक्ति भोगों से सावधान रहते हैं वे सदैव सुखी रहते हैं।
लव
श्रीराम और सीता का पुत्र तथा कुश का सहोदर। लव धीर-वीर और तेजस्वी किशोर था। उसने किशोरावस्था में ही अपने सहोदर कुश को साथ लेकर त्रिखण्डजयी अयोध्या की सेना का मानमर्दन कर दिया था। (देखिए-सीता) लव जी ऋषि (आचार्य)
श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा के क्रियोद्धारक आचार्यों में प्रमुख । लवजी ऋषि का जन्म गुजरात प्रदेश के सूरत शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम फूलाबाई था। उनके पिता का स्वर्गवास उनके बाल्यकाल में ही हो गया था। उनका पालन-पोषण उनके नाना वीर जी बोरा ने किया जो सूरत के समृद्ध श्रेष्ठी थे। ___लव जी बाल्यकाल से ही आत्मोन्मुखी थे। उन्होंने बजरंग जी यति के पास शास्त्राध्ययन किया और विरक्त होकर वे यति जी के शिष्य बन गए। परन्तु यति संघ की आचार-शिथिलता को देखकर लव जी
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