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लकुच ___लकुच उज्जयिनी नरेश धनवर्म का इकलौता पुत्र था। वह पुरुष की बहत्तर कलाओं में निपुण, साहसी, धीर और वीर पुरुष था। एक बार उज्जयिनी की सीमाओं पर कालम्लेच्छ राजा ने धावा बोल दिया। कालम्लेच्छ उस यग का एक बलवान और कर राजा माना जाता था। उसका सैन्यबल सविशाल था और उज्जयिनी के सैन्यबल से इक्कीस था। राजा धनवर्म यद्धक्षेत्र में जाने लगा तो लकच ने उससे प्रार्थना की कि यद्धक्षेत्र में जाने की अनुमति उसे दी जाए। राजा ने पुत्र को अनेक तरह से समझाया-मनाया कि रणांगण क्रीडांगण नहीं है,वहां बल के साथ अनुभव की भी आवश्यकता है। पर राजा की उक्तियां और युक्तियां लकुच के उत्साह को शान्त नहीं कर पाई। आखिर राजा ने पुत्र को युद्ध में जाने की अनुमति दे दी। लकुच सिंह शिशु की भांति कालम्लेच्छ रूपी गजराज पर टूट पड़ा। भयंकर युद्ध हुआ और युद्ध में लकुच की विजय हुई। कालम्लेच्छ को बन्दी बनाकर लकुच ने उसे महाराज धनवर्म के चरणों में ला पटका। राजा अपने पुत्र के रण कौशल को देख-सुन कर प्रसन्नता से अभिभूत बन गया। उसने लकुच को मनोवाञ्छित वरदान मांगने को कहा। पर लकुच के पास सब कुछ था, ऐसा कुछ न था जो उसके पास नहीं था। परन्तु राजा ने उसे विवश किया और कहा, कुछ भी मांगो, पर मांगो अवश्य। कुछ देर तक सोचने के बाद लकुच ने कहा, पिता जी! देना ही चाहते हो तो मुझे ऐसा अधिकार प्रदान करो कि मुझ पर कोई भी राजनैतिक प्रतिबन्ध लागू न हो, जो मैं चाहूं सो करूं, मुझे कुछ न कहा जाए।
राजा ने पुत्र को वचन दे दिया कि उसे कुछ नहीं कहा जाएगा, वह जो चाहे करे। इस राजवचन को पाकर लकुच निरंकुश और स्वच्छंद बन गया। वह जो चाहता, वही करता। उसे रोकने वाला अथवा समझाने वाला कोई नहीं था। लकुच मर्यादाएं तोड़ता रहा, राजा और नागरिक देखकर भी आंखें मूंदे रहे।
उज्जयिनी में पंगुल नाम का एक सेठ रहता था। लकुच उसकी पत्नी नागवर्मा के रूप पर आसक्त हो गया और उसके साथ स्वच्छन्द तथा उन्मुक्त क्रीड़ाएं करने लगा। पंगुल बड़ा दुखी हुआ। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा तो गई ही, पत्नी भी गई। वह अहर्निश आत्मग्लानि की अग्नि में जलता रहता । वह चाह कर भी युवराज लकुच का कुछ भी अहित नहीं कर सकता था। ___ एक बार युवराज नागवर्मा के साथ उद्यान में भ्रमण कर रहा था। युवराज ने वहां पर एक मुनि को ध्यान मुद्रा में देखा। मुनि की शान्त-प्रशान्त ध्यान-मुद्रा देख युवराज बहुत प्रभावित हुआ। वह मुनि के निकट बैठ गया। ध्यान पूर्ण होने पर मुनि ने युवराज लकुच को उपदेश दिया। मुनि के सारगर्भित उपेदश को सुनकर लकुच उसी क्षण प्रव्रजित हो गया। राजा और नागरिक लकुच के इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देखकर हैरान रह गए।
नागवर्मा अपने पति पंगुल के पास चली गई। लकुच के साथ रहने को उसने अपनी विवशता और पराधीनता बताया। उसने मधुर-मिष्ठ वचनों से पति को संतुष्ट बना लिया। पंगुल के हृदय से पत्नी के प्रति ... 510 ..
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