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लाने के
पट का स्पर्श कर उसने जल हाथ में लिया और बोली-यदि मैंने मन-वचन-काय से शील का पालन किया है तो नगर जल के उपसर्ग से मुक्त हो जाए।
सती रोहिणी के उक्त कथन से देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में पानी उतर गया। आकाश से सती पर दिव्य पुष्पों की वर्षा हुई। रोहिणी के जयनादों से नभ मण्डल गूंज उठा। धनावह को अपने पर महान ग्लानि हुई। उसने अपनी पत्नी से क्षमा मांगी और बताया कि वह उसके प्रति दुराशंका से ग्रस्त बन गया था। रोहिणी पति का पनम पाकर गदगद हो गई। उसने अपने पति को बताया कि राजा को समार्ग पर लिए ही उसने उसे आमंत्रित किया था और वह अपने प्रयत्न में सफल रही थी। पूरी बात सुनकर धनावह अपनी पत्नी की सुबुद्धि का भी दीवाना बन गया। रोहिणी अपने धर्म पर सुदृढ़ रहकर सद्गति की अधिकारिणी बनी।
-उपदेश सप्तति (क्षेमराज मुनि)/-भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति (शुभशीलगणि)/-उपदेश प्रासाद (ख) रोहिणी
तीर्थंकर श्री वासुपूज्य के पुत्र चम्पाधिपति महाराज मघवा की पुत्री, एक अपरिमित पुण्यशालिनी कन्या। रोहिणी ने अपने जीवन में यह तक नहीं जाना था कि रोना क्या होता है, दुख की अनुभूति कैसी होती है। वह ऐसे वातावरण में पल-बढ़कर बड़ी हुई कि उसने किसी को रोते हुए भी नहीं देखा था। महाराज मघवा ने पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की समायोजना की। नागपुर नरेश महाराज अशोकचन्द्र के कण्ठ में रोहिणी ने वरमाला डाली। अशोकचन्द्र रोहिणी को लेकर अपने नगर आ गया। उसने एक पत्नीव्रत धारण किया था, फलतः रानी भी रोहिणी ही थी और पटरानी भी वही थी। रोहिणी ने कालक्रम से बारह संतानों को जन्म दिया जिनमें आठ पुत्र और चार पुत्रियां थीं। सुख और समृद्धि के झूले में झूलते हुए रोहिणी और अशोकचन्द्र जीवन-यापन कर रहे थे।
__ एक बार रोहिणी अपने सबसे छोटे पुत्र को गोद में लिए गवाक्ष में बैठी थी। अशोकचन्द्र भी उसके पास बैठा था। राजमार्ग पर एक महिला विलाप करती हुई चल रही थी। वह सिर पटक-पटक कर रो रही थी। उसके रोदन से सहज ही प्रकट हो रहा था कि उसका इकलौता पुत्र मर गया है। उसकी दशा देखकर राजा अशोकचन्द्र का हृदय करुणा-विगलित बन गया। वह उस महिला के दुख से अनुकम्पित बन गया। रोहिणी उस स्त्री को देखकर हंसने लगी। उसने पति से पूछा, महाराज। ऐसे गीत तो मैंने जीवन में प्रथम बार सुने हैं। देखिए-उसका नृत्य भी कितना अजीब है। राजा रोहिणी की असामयिक मुस्कान और वार्ता सुनकर वितृष्णा से भर गया। बोला, तुम दुखी महिला का उपहास उड़ा रही हो। प्रतीत होता है तुम्हें अपने पुण्य-गौरव पर घमण्ड हो गया है, तभी तुम ऐसी बातें कर रही हो।
रोहिणी ने मुस्कराते हुए ही पूछा, आप नाहक नाराज हो रहे हैं। मैंने तो उस स्त्री के नृत्य का नाम ही पूछा है। मैंने अनेक नृत्य सीखे हैं। पर ऐसा नृत्य भी होता है किसी ने मुझे सिखाया ही नहीं । रोहिणी की बात सुनकर राजा अपना विवेक खो बैठा। बोला, वैसा नृत्य अब तुम भी करो। कहकर राजा ने उसकी गोद से उसका पुत्र छीनकर महल से नीचे फेंक दिया। तब भी रोहिणी हंसती रही। विषाद की रेखा भी उसके चेहरे पर नहीं उभरी। कुलदेवी ने रोहिणी के पुत्र को नीचे गिरने से पहले ही लपक लिया और लाकर राजा की गोद में रख दिया।
राजा अशोकचन्द्र सामान्य हो गया। उसे समझ में आ गया कि उसकी रानी इतनी पुण्यशालिनी है कि उसे दुख की अनुभूतियों के सच का ज्ञान ही नहीं है। ... जैन चरित्र कोश.
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