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अंततः समुद्र पर सेतु बांधकर श्रीराम और लक्ष्मण ने सुग्रीव, हनुमान तथा उनकी सेना के साथ लंका में प्रवेश किया। दूत भेजकर श्रीराम ने पुनः युद्ध से बचने का मार्ग तलाशा। पर रावण झुकने को तत्पर न था। परिणामतः भयानक युद्ध हुआ।
उस युद्ध में रावण कुल सहित विनाश को प्राप्त हो गया। रावण का अनुज विभीषण युद्ध शुरू होने से पहले ही श्रीराम की शरण में पहुंच गया था, फलतः वह बच गया। उसे ही लंका की राजगद्दी सौंपकर श्रीराम ने अपनी निस्पृहता का परिचय दिया। यह वह क्षण था जब चौदह वर्ष का वनवास काल पूर्ण हो चुका था। श्रीराम लक्ष्मण, सीता, हनुमान, सुग्रीव आदि के साथ अयोध्या लौटे। वैदिक परम्परा के अनुसार श्रीराम का राजतिलक हुआ। जैन परम्परानुसार श्रीराम राजपद से निर्लेप ही रहे और भरत ने भी राजमुकुट लेने से इन्कार कर दिया तो लक्ष्मण अयोध्या के राजा बने। तीन खण्ड को साधकर लक्ष्मण ने वासुदेव का पद पाया। श्रीराम बलदेव बने।
सुदीर्घ काल तक राजसुख भोगकर लक्ष्मण का देहान्त हो गया। इससे श्रीराम के शोक का पारावार न रहा। विरक्त होकर उन्होंने संयम धारण कर लिया और निरतिचार चारित्र की आराधना करके वे मोक्षधाम में जा विराजे।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 7 रामकृष्णा
साध्वी रामकृष्णा ने भद्रोत्तर प्रतिमा की आराधना की। इस तप विधि की चार परिपाटियां हैं तथा प्रत्येक परिपाटी में पांच लताएं हैं। इस तप की चारों परिपाटियों में दो वर्ष, दो मास और बीस दिन लगते हैं। इनका शेष परिचय 'काली' के समान है। (देखिए-काली) रामचन्द्र (आचार्य)
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के सुयोग्य शिष्य एवं प्रकृष्ट प्रतिभा के धनी एक जैन आचार्य। आचार्य हेमचन्द्र ने मुनिवर रामचन्द्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। मुनि रामचन्द्र अपनी अगाध प्रज्ञाशीलता के कारण इसके अधिकारी भी थे। अपने समय के वे ख्यातिलब्ध विद्वान और उत्कृष्ट साहित्य के रचनाकार थे। उन्होंने कई श्रेष्ठ ग्रन्थों की रचना की। नाट्य विधा पर साहित्य रचना में उनका असाधारण अधिकार था। ___ आचार्य रामचन्द्र की विद्वत्ता और प्रत्युत्पन्नमति प्रतिभा पर तत्कालीन नरेशों से लेकर प्रतिद्वन्द्वी विद्वानों तक चमत्कृत थे। उनकी प्रतिभा से उपजे एक श्लोक पर अभिभूत होते हुए तत्कालीन गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह ने उनको ‘कविकटार मल्ल' की उपाधि से अलंकृत किया था। ___ आचार्य रामचन्द्र जी ने उत्कृष्ट साहित्य की रचनाओं द्वारा पर्याप्त सुयश अर्जित किया। उन द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों में नाट्यदर्पण और द्रव्यालंकार वृत्ति विशेष ख्याति प्राप्त ग्रन्थ हैं। ___ आचार्य हेमचन्द्र के स्वर्गारोहण के पश्चात् मुनि रामचन्द्र आचार्य पाट पर विराजमान हुए। परन्तु उनका शासन काल एक वर्ष का ही रहा। इतिहास की एक क्रूर घटना ने आचार्य रामचन्द्र जैसे प्रतिभापुरुष को जैन जगत से छीन लिया। घटना के बिन्दु इस प्रकार हैं___आचार्य हेमचन्द्र ने आचार्य रामचन्द्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। इससे मुनि रामचन्द्र के गुरु बन्धु बालचन्द्र मुनि का हृदय ईदिग्ध बन गया। उधर संयोग से आचार्य हेमचन्द्र के स्वर्गवास के 32 दिन पश्चात् ही नरेश कुमारपाल का निधन हो गया। कुमारपाल का भतीजा शासनारूढ़ हुआ। उसका ... जैन चरित्र कोश ...
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