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मार्ग राजा को बताया। उन्होंने कहा, छह मास की आयु में ही कुमार का वैवाहिक सम्बन्ध किया जाए और बीस वर्ष की अवस्था तक उसका लालन-पालन भूमिगृह में किया जाए तो दुष्ट ग्रहों का प्रकोप कुछ न्यून हो सकता है और एक निश्चित कालावधि के पश्चात् कुमार कुल के गौरव को बढ़ाने वाला सिद्ध हो सकता है।
महाराज जितशत्रु ने छह मास की अवस्था में ही अपने पुत्र रसालकुमार का वैवाहिक सम्बन्ध नन्दनपुर नरेश सिंहदत्त की पुत्री शीलवती के साथ कर दिया। तदनन्तर पुत्र को राजोद्यान के तलघर में रखा गया। वहीं पर उसकी समुचित शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध भी कर दिया गया। भूमिगृह में रहकर ही कुमार युवा हुआ। क्रमशः वह सभी कलाओं में दक्ष बन गया। ___उधर रसालकुमार की भावी पत्नी (वाग्दत्ता) शीलवती भी युवती हो गई। उसके मन में अपने पति को देखने के भाव बलवान बनने लगे। एकदा उसने अपने माता-पिता से तीर्थाटन का बहाना कर आज्ञा प्राप्त की और वह आनन्दपुर के राजोद्यान में पहुंच गई। द्वार-रक्षकों को किसी तरह संतुष्ट कर वह रसालकुमार से मिलने में सफल हो गई। दोनों के मध्य प्रेमालाप चला। शीलवती के मन में यह क्षोभ था कि उसके पति को भूमिगृह में रखा जा रहा है। भूमिगृह में चुपचाप पड़े रहने से रसालकुमार पर भी वह नाराज थी। क्षोभ में उसने राजकुमार को 'मूर्ख' कह दिया। इससे रसालकुमार क्रोधित हो गया। उसने मन ही मन शीलवती को उसके कटु शब्द का दण्ड देने का संकल्प कर लिया। शीलवती को भी अपनी भूल अनुभव हो गई अ राजकुमार की आंखों में तैरता कोप भी उससे छिपा नहीं रह सका। उसने राजकुमार से पुनः-पुनः क्षमा मांगी, पर राजकुमार के हृदय में शूल चुभ चुका था। शीलवती विदा हो गई।
बीस वर्ष की अवस्था में रसालकुमार को भूमिगृह से बाहर निकाला गया। महाराज जितशत्रु ने अपूर्व उत्सव आयोजित किए। कालक्रम से राजकुमार के विवाह की तिथि सुनिश्चित की गई। सुनिश्चित समय पर बारात नन्दनपुर पहुंची। विवाह मण्डप सजा। रस्मानुसार वर-वधू अग्नि की प्रदक्षिणा करने लगे। पर रसालकुमार के हृदय में तो कोप सुलग रहा था। तीन प्रदक्षिणा लेने पर वह उदरशूल का बहाना कर मण्डप से उठ गया। उसने शगुन के प्रतीक कंगण को तोड़ डाला और एक दिशा में चल दिया। इस पर उसके पिता जितशत्रु को अपने पुत्र पर बड़ा क्रोध आया। उसे विश्वास हो गया कि उसका पुत्र उसके कुल के लिए कलंक ही सिद्ध हुआ है। उसने कठोर वचनों से पुत्र की भर्त्सना कर डाली। शीलवती ने रसालकुमार का मार्ग रोककर उससे क्षमा मांगी। पर भवितव्यता वश कुमार ने शीलवती की कोई बात न सुनी। वह घोड़े पर चढ़कर चला गया।
रसालकुमार कई वर्षों तक देश-विदेशों में घूमता रहा। एक मालिन के उपदेश से उसने परस्त्री-सेवन का त्याग किया। यात्रा के दौरान दो राजकुमारियों से उसने पाणिग्रहण किया, पर परिणीताओं के दुश्चरित्र को देखकर उसका हृदय आहत हो उठा। उसी क्रम में शीलवती के प्रति उसके हृदय में अनुराग का अंकुर उत्पन्न हुआ। बारह वर्षों के पश्चात् वह शीलवती के पास लौटा। एक ढूंठ को फलवान बनाकर शीलवती ने अपने अखण्ड शील की परीक्षा दी। शीलवती जैसी सुशील पत्नी को पाकर रसालकुमार अपने आपको भाग्यशाली मानने लगा।
पिता और श्वसुर ने भी रसालकुमार को क्षमा कर दिया। पिता और श्वसुर अपने-अपने राज्य रसालकुमार को सौंपकर दीक्षित हो गए। रसालकुमार ने अनेक वर्षों तक राज्य किया। अंतिम वय में उसने अपनी रानी शीलवती के साथ प्रव्रज्या धारण की। दोनों ने विशुद्ध संयम का पालन कर मोक्ष प्राप्त किया। ...488 ...
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