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यवराजर्षि
एक प्राचीनकालीन मुनि जो अपने जीवन के पूर्व भाग में यवपुर नगर के राजा थे। गर्दभल्ल नाम का उनका एक पुत्र और अणुल्लिया नाम की एक पुत्री थी। उनके मंत्री का नाम दीर्घपृष्ठ था। गर्दभिल्ल तब बालक ही था जब यव दीक्षित हुए। दीर्घपृष्ठ पर राज्य संचालन का दायित्व था । दीर्घपृष्ठ के मन में कालान्तर में मैल आ गया। उसने राजकुमारी से विवाह कर राज्य हथियाने का षड्यन्त्र रचा। यवराजर्षि यवपुर नगर में पधारे तो मंत्री ने पुत्र के हाथों पिता के वध का भी प्रबन्ध पक्का कर दिया। यवराजर्षि को तीन गाथाएं स्मरण थीं, रात्रि में वे उन्हें दोहरा रहे थे । उन गाथाओं से अर्थ ग्रहण कर गर्दभिल्ल न केवल पितृहत्या के दोष से बच गया बल्कि दीर्घपृष्ठ के षड्यंत्र का भंडाफोड़ भी उसने कर दिया। इस घटना से पहले यवराजर्षि ज्ञान की महत्वता को कम आंकते थे । उन गाथाओं के पाठ से उनका ज्ञान और स्वाध्याय का पक्ष अत्यन्त सुदृढ़ बन गया । निरतिचार संयम पालकर मुनि सद्गति के अधिकारी बने ।
यशा
भृगु पुरोहित की पत्नी । (देखिए - इक्षुकार राजा)
(क) यशोदा
महाराजा समरवीर की पुत्री और वर्धमान महावीर की अर्द्धांगिनी । यशोदा पतिव्रता, विनम्र और आदर्श सन्नारी थी। उसने वर्धमान के तप-त्याग और वैराग्य प्रधान स्वभाव- पथ पर अपनी इच्छाओं को कभी बाधा के रूप में उपस्थित नहीं होने दिया था। एक मान्यता के आधार पर वर्धमान की प्रव्रज्या से पूर्व ही यशोदा का स्वर्गवास हो गया था। कुछेक इतिहासवेत्ताओं का मानना है कि प्रभु की प्रव्रज्या के समय यशोदा जीवित थी। सत्य केवलिगम्य है। यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया था जिसका नाम प्रियदर्शना था ।
(ख) यशोदा
गोकुलवासी नन्द की पत्नी और श्रीकृष्ण की पालक माता । वैदिक परम्परा में श्रीकृष्ण को यशोदानन्दन भी कहा जाता है ।
(क) यशोधर
कुण्डपुर का एक व्यापारी । (देखिए - केशव)
(ख) यशोधर
उज्जयिनी नगरी का एक नीतिनिपुण और पुत्रवत् प्रजा - पालन करने वाला राजा । राजमाता का नाम चन्द्रमती था। नयनावली यशोधर की पट्टमहिषी थी । राजा का एक पुत्र था गुणधर । यशोधर करुणावान था और अहिंसा भगवती का आराधक था। एक बार उसे एक दुःस्वप्न दिखाई दिया। उसने अपनी माता को अपना स्वप्न सुनाया । राजमाता के अपने विश्वास थे और उनके अनुरूप उसने निश्चय किया कि देवी को पशुबलि देकर संभावित अनिष्ट की आशंका को दूर किया जाएगा। यह प्रस्ताव यशोधर के समक्ष आया - तो उसने पशुबलि का विरोध किया। माता और पुत्र के मध्य लम्बा वाद-विवाद चला, पर यशोधर ने पशुबलि के स्थान पर आत्मबलिदान का प्रस्ताव प्रस्तुत करके माता के हठाग्रह को तोड़ दिया । आखिर माता यशोधर को आटे से बने मुर्गे की बलि देने के लिए मना लिया । यशोधर ने दुखी चित्त से आटे के मुर्गे की । यशोधर विरक्त हो चुके थे। उन्होंने पुत्र को राजगद्दी पर बैठाकर दीक्षित होने का निश्चय किया । • जैन चरित्र कोश -
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