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मित्र के राजमहल में पधारे। राजा मित्र ने उत्कृष्ट भावों से मुनि को शुद्ध आहार का दान देकर महान् पुण्य का अर्जन किया। मित्र राजा कालक्रम से कालधर्म को प्राप्त होकर कनकपुर नगर में राजपुत्र के रूप में जन्मे जहां उनका नाम धनपति कुमार रखा गया। राजकुमार धनपति कुमार ने भगवान महावीर के चरणों में प्रव्रज्या अंगीकार कर मोक्ष पद प्राप्त किया। (देखिए धनपति कुमार ) - विपाकसूत्र, द्वि श्रु, अ. 6
मित्रश्री
आमलकल्पा नगर निवासी एक अनन्य श्रमणोपासक जो अत्यन्त प्रज्ञावान भी था । (देखिए - तिष्यगुप्त ) मित्रसेन राजा
षष्ठम विहरमान तीर्थंकर श्री स्वयंप्रभ स्वामी के जनक । (देखिए - स्वयंप्रभ स्वामी)
मित्राचार्य
एक प्रभावक धर्माचार्य। अरणिक मुनि के दीक्षा गुरु । (देखिए -अरणिक)
मीनलदेवी
गुजरात प्रान्त की एक आदर्श श्राविका । वह चालुक्य नरेश सिद्धराज जयसिंह की माता तथा महाराज कर्ण की रानी थी। इन्होंने महामंत्री मुंजाल मेहता के मार्गदर्शन में जैन धर्म की प्रभावना के कई कार्य किए। इन्हीं के संस्कार इनके पुत्र सिद्धराज जयसिंह में भी प्रगट हुए । सिद्धराज जयसिंह भी जिनशासन का बहु सम्मान करते थे और आचार्य हेमचन्द्र से बहुत प्रभावित थे । सिद्धराज की प्रार्थना पर ही आचार्य हेमचन्द्र व्याकरण ग्रन्थ 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' की रचना की थी ।
गुजरात राज्य में जैन धर्म के विस्तार में मीनलदेवी की महत्वपूर्ण भूमिका रही ।
मुग्धभट्ट
शालीग्राम का रहने वाला एक ब्राह्मण। उसकी पत्नी का नाम सुलक्षणा था। माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् मुग्धभट्ट विपन्न हो गया। अन्न के एक-एक कण के उसे लाले पड़ गए। उसके पास कोई साधन न था। वह निराश होकर प्रदेश चला गया। उसे आशा थी कि प्रदेश में वह कुछ अर्जन कर सकेगा। पर बारह वर्ष दर-बदर भटकने पर भी वह कुछ अर्जन न कर सका। घर लौटा तो देखा कि उसकी पत्नी का निर्वाह संतोषपूर्वक चल रहा है। पत्नी ने उसका स्वागत किया। मुग्धभट्ट ने पूछा, तुम संतुष्ट और सुप्रसन्न हो, उसका क्या कारण है? सुलक्षणा ने बताया, मुझे विमला नामक जैन साध्वी से तत्वज्ञान की प्राप्ति हो गई है । उसी से मैं सन्तुष्ट और सुप्रसन्न हूं। सुलक्षणा ने मुग्धभट्ट को भी तत्व का बोध कराया। मुग्धभट्ट सरल परिणामी था। उसने शीघ्र ही तत्वज्ञान हृदयंगम कर लिया। उसके हृदय में सम्यक्त्व का बीजवपन हुआ । उसने ब्राह्मण-परम्परा के क्रियाकाण्डों का परित्याग कर दिया। पति-पत्नी एकनिष्ठ चित्त से धर्माराधना करते हुए जीवन यापन करने लगे। इससे मुग्धभट्ट के जीवन में कई सुपरिणाम आए। प्रथम तो यह कि अल्प प्रयास से ही उसकी आजीविका चलने लगी। दूसरा यह कि कण और मण दोनों अवस्थाओं में वह सन्तुष्ट रहता । तृतीय यह कि उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई ।
मुग्धभट्ट सुदृढ़ सम्यक्त्वी बन गया । शाली ग्राम में ब्राह्मणों का बाहुल्य था । मुग्धभट्ट द्वारा जिनधर्म स्वीकार कर लिए जाने पर ब्राह्मणों ने उसे विधर्मी घोषित कर दिया। अघोषित रूप से उसे जाति से कृत मान लिया गया। एक बार जब सर्दी का मौसम था तो कुछ ब्राह्मण एक स्थान पर बैठकर अग्नि ••• जैन चरित्र कोश •
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