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के पास पहुंचा और मंत्र बल से उसने आम की शाखा झुका कर इच्छित फल प्राप्त कर लिए। मातंग की पत्नी ने इच्छित फल खाकर तृप्ति अनुभव की। फिर वह प्रतिदिन अपने पति से आम मंगवा कर खाने लगी। वृक्ष से आम गायब देखकर माली ने राजा से शिकायत की। राजा ने चोर पकड़ने का कार्य अभयकुमार को सौंपा। आखिर अभयकुमार ने मातंग को पकड़ लिया। राजा ने उसे मृत्युदण्ड दिया। सैनिक मातंग को फांसी पर चढ़ाने के लिए ले जाने लगे तो अभयकुमार ने उनको रोका और राजा से कहा, महाराज! मातंग की मृत्यु के साथ ही उसकी विद्या समाप्त हो जाएगी। उसे फांसी देने से पूर्व उसकी विद्या आप सीख लेंगे तो विद्या बच जाएगी।
राजा को बात जंच गई। उसने मातंग से विद्या सिखाने के लिए कहा। मातंग राजा को विद्या सिखाने लगा। पर बहुत प्रयत्न करने पर भी राजा को विद्या स्मरण न हुई। अभयकुमार ने कहा, महाराज! सिखाने वाला गुरु पद का अधिकारी होता है। आप सिंहासन से नीचे उतरिए और मातंग को सिंहासन पर बैठाइए। ऐसा करके ही आप विद्या सीख सकते हैं। राजा को अभयकुमार की बात युक्तियुक्त लगी। उन्होंने वैसा ही किया और उन्हें तत्क्षण विद्या स्मरण हो गई। सैनिक जब मातंग को वधभूमि ले जाने लगे तो अभयकुमार ने 'मुरु अवध्य होता है' दलील देकर उसे महाराज से जीवनदान दिलवा दिया। मातंग (यमपाश)
___ चाण्डाल कुलोत्पन्न नगर रक्षक। किसी समय वह पूर्वजन्मों के पापकर्म के उदय से अपने परिवार सहित किसी असाध्य रोग से ग्रसित हो गया। यथासंभव उपचार कराए पर उसको और उसके परिवार को व्याधि से मुक्ति नहीं मिली। एक दिन यमपाश का पुत्र श्मशान में गया। वहां उसने देवदन्त नामक ध्यानमुद्रालीन एक अणगार के दर्शन हुए। मुनिदर्शन करते ही वह व्याधिमुक्त हो गया। हर्ष से उछलता हुआ वह अपने घर पहुंचा और अपनी व्याधिमुक्ति का कारण पारिवारिक जनों को बताया। इससे उत्साहित होकर यमपाश अपने पूरे परिवार को साथ लेकर मुनिदर्शन के लिए श्मशान में गया। पूरे परिवार ने मुनि को भाव सहित वन्दन किया। सभी सदस्य व्याधिमुक्त हो गए। इस घटना से यमपाश के हृदय में धर्मश्रद्धा का आविर्भाव हुआ। उसने मुनि से धर्मश्रवण किया और श्रावक के बारह व्रत अंगीकार कर लिए।
एक बार नगर नरेश ने एक अपराधी को मृत्युदण्ड दिया और यमपाश को आदेश दिया कि वह उक्त अपराधी का वध कर दे। उस समय यमपाश ने राजा से प्रार्थना की कि वह हिंसा का त्याग कर चुका है। हिंसा-त्याग और श्रावक-धर्म अंगीकार का प्रकरण यमपाश ने राजा के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे सुनकर राजा अत्यन्त प्रभावित हुआ। राजा ने यमपाश को वैसे हिंसामय कार्यों / दायित्वों से मुक्त कर दिया।
चाण्डाल कुल में जन्म लेकर भी यमपाश ने श्रेष्ठ धर्म का आचरण किया और सद्गति का अधिकार
पाया।
माथुर वणिक
दक्षिण मथुरा में एक समृद्ध श्रेष्ठी रहता था। एक बार उत्तर-मथुरा का एक व्यापारी दक्षिण मथुरा व्यापारार्थ आया और वहां एक व्यापारी के घर ठहरा। दोनों व्यापारी परस्पर मैत्री बंधन में बंध गए। दोनों ने निर्णय किया कि वे उनके घरों में होने वाली संतानों का विवाह कर मैत्री को सम्बन्धों में बदलेंगे। कालान्तर में दक्षिण मथुरा निवासी सेठ के घर पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम माथुर रखा गया। और उत्तर मथुरा निवासी के घर एक पुत्री का जन्म हुआ। शैशवावस्था में ही दोनों का लगन कर दिया गया। ..440 .
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