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हुआ। तीनों बिछुड़े मित्र पुनः मिल गए। पुण्यपाल भी भटकता हुआ वहीं आ पहुंचा। उसके अपराध को भुलाकर तीनों मित्रों ने उसे गले लगा लिया।
यशपाल की प्रार्थना पर सभी मित्र अपनी-अपनी पत्नियों के साथ महेन्द्रपुर आए। यशपाल ने एक ऐसा राजसिंहासन बनवाया जिस पर चार राजा एक साथ बैठ सकते थे। यशपाल के विशेष आग्रह पर तीनों ने भी राजपद स्वीकार किया। महेन्द्रपुर चार राजाओं का नगर कहा जाने लगा। ___ चारों मित्रों को पृथ्वीपुर से प्रस्थान किए बारह वर्ष बीत चुके थे। उन्हें माता-पिता की स्मृति सताने लगी तो चारों मित्र विशाल सेना सजाकर अपनी पत्नियों के साथ पृथ्वीपुर पहुंचे। पृथ्वीपुर का कण-कण हर्षाभिभूत हो उठा। चारों के माता-पिता पुत्रों और पुत्रवधुओं को पाकर अति प्रसन्न हुए।
सुदीर्घ काल तक ये चारों मित्र राजधर्म का पालन करते हुए गृहस्थ में रहे। जीवन के उत्तरपक्ष में चारों ने दीक्षा धारण कर मोक्ष पद प्राप्त किया। महीधर
क्षितिप्रतिष्ठ नगर का युवराज जो अपनी मित्रमंडली के साथ मिलकर लोकमंगल के कार्यों में रुचिशील था। महान पुण्य संचित करके यह भवान्तर में चक्रवर्ती भरत के रूप में उत्पन्न हुआ जिनके नाम से इस देश का नाम भारत प्रचलित हुआ। महीसेन ____ मेवाड़ देश की राजधानी चित्रकूट नगर का राजा। (देखिए-उत्तम कुमार) (क) महेन्द्र
अयोध्यापति इक्ष्वाकुवंशी महाराज सुरपति का पुत्र, एक रूप-गुण सम्पन्न राजकुमार । मंत्रिपुत्र गुणसुन्दर उसका बाल-सखा था। दोनों मित्रों ने साथ-साथ शिक्षा-दीक्षा पूर्ण की। यौवनावस्था में दोनों मित्रों ने विदेश भ्रमण का निश्चय किया। अनेकों देशों-प्रदेशों में दोनों मित्रों ने भ्रमण किया। उस यात्रा में राजकुमार महेन्द्र के रूप-गुणों पर पांच कन्याएं मंत्र-मोहित बनीं। उन पांचों से राजकुमार ने पाणिग्रहण किया। कालक्रम से एक सौ तीन अन्य कुमारियों से उसने विवाह किया। पिता के प्रव्रजित हो जाने पर वह अयोध्या के राजसिंहासन पर बैठा। गुणसुन्दर को उसने अपना मंत्री नियुक्त किया। ___महाराज महेन्द्र ने सुदीर्घ काल तक शासन किया। उनके शासनकाल में प्रजा सुखी और सर्वविध सम्पन्न हुई। एक बार भुवनभानू केवली अयोध्या के बाह्य भाग में स्थित उद्यान में पधारे। महाराज महेन्द्र मुनि की देशना सुनने गए। केवली मुनि ने 'अप्रमाद' पर उपदेश दिया। उपदेश सुनकर महाराज महेन्द्र प्रबुद्ध बन गए
और अपने ज्येष्ठ पुत्र को राजपद सौंपकर प्रवजित हो गए। निरतिचार संयम की आराधना से उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। वे निर्वाण को उपलब्ध हुए। -जैन कथा रत्नकोष, भाग 6, / गौतम कुलक, बालावबोध-कथा 11 (ख) महेन्द्र
(देखिए-अरविन्द राजा) महेन्द्र सूरि (आचार्य)
वी.नि. की दसवीं-ग्यारहवीं सदी के एक प्रभावक जैन आचार्य । (देखिए-शोभनाचार्य) ... जैन चरित्र कोश ...
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