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घटनाएं उसकी विरक्ति को और अधिक सम्बल प्रदान करतीं । उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की सम्यक् आराधना की । देह दुर्बल हो गई। उसने आमरण अनशन ग्रहण कर लिया। साधना की विशुद्धता से उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गई।
पौषधशाला में अन्तिम साधनारत महाशतक के पास रेक्ती आई और कुचेष्टाएं करने लगी | मझ पर भी न समझने पर महाशतक को क्रोध आ गया। उसने भर्त्सना भरे शब्दों में उससे कहा कि वह सात दिन बाद मर जाएगी और प्रथम नरक में चौरासी हजार वर्षों का कष्टपूर्ण जीवन जीएगी। पति की बात को श्राप मानकर रेवती का नशा उतर गया और वह आर्त्तध्यान करती हुई अपने स्थान पर चली गई। सातवें दिन उसकी मृत्यु हो गई और वह प्रथम नरक में गई ।
संयोगवश उन्हीं दिनों भगवान महावीर राजगृह नगरी में पधारे। उन्होंने पूरी बात गौतम स्वामी को बताते हुए कहा कि वे महाशतक के पास जाएं और उसे समझाएं कि उसे अपनी पत्नी के प्रति अनशन अवस्था में जिन शब्दों का प्रयोग किया है वह अनुचित है। उसे प्रायश्चित्त लेकर विशुद्ध होना चाहिए ।
गौतम स्वामी महाशतक के पास पहुंचे और उसे भगवान महावीर का संदेश कहा। सुनकर महाशतक कृतकृत्य हो गया। उसने प्रायश्चित्त किया और भगवान महावीर और गौतम स्वामी का आभार माना । प्रायश्वित्त और तप से अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाकर महाशतक देह तज कर प्रथम देवलोक में गया। वहां से महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष में जाएगा।
महाशाल
पृष्ठचम्पा नगरी के राजा शाल का अनुज और युवराज । भगवान महावीर से प्रव्रजित बन उसने मोक्षपद प्राप्त किया। (देखिए - शाल)
महाशिरा
दक्षिण भरतक्षेत्र के नगर चक्रपुर के एक परम प्रतापी सम्राट जो भगवान अरनाथ के शासन काल में हुए आनन्द बलदेव और पुरुषपुण्डरीक वासुदेव के जनक थे ।
- त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र
महासुव्रता
अरिहंत अरिष्टनेमि की प्रमुख श्राविका ।
महासेन
तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के जनक ।
महासेनकृष्णा
महाराज श्रेणिक की रानी और महासेनकृष्ण कुमार की माता । युद्ध में पुत्र की मृत्यु से वह विरक्त बन गई और दीक्षित होकर उसने क्लिष्टतम तपाराधना की। उन्होंने वर्द्धमान आयम्बिल तप किया। इस तप की कालावधि चौदह वर्ष तीन मास और बीस अहोरात्र की है। उनका शेष परिचय काली के समान I (देखिए -काली) - अन्तगड सूत्र वर्ग 8, अध्ययन 10
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महाहरि
कपिलपुर नरेश । (देखिए - हरिसेन चक्रवर्ती)
- कल्पसूत्र
••• जैन चरित्र कोश
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