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मरीचि में कुल और गोत्र का मद आ गया। वही मरीचि कालान्तर में तीर्थंकर महावीर हुआ। महावीर के सत्तावीस भवों में यह तृतीय भव था। मरुता
महाराज श्रेणिक की रानी। परिचय नन्दावत्। (देखिए-नन्दा) -अन्तगडसूत्र वर्ग 7, अध्ययन 5 मरुदेवा
महाराज श्रेणिक की रानी। परिचय नन्दावत् । (देखिए-नन्दा) -अन्तगडसूत्र वर्ग 7, अध्ययन 8 मरुदेवी माता
भगवान श्री ऋषभदेव की माता। ऋषभदेव के प्रवर्जित हो जाने के बाद वह पुत्र-दर्शन के लिए अत्यन्त व्याकुल रहती थी। वह सोचती थी कि उसका पुत्र न जाने किन कष्टों को भोग रहा होगा। भगवान को केवलज्ञान हुआ। देवताओं ने दिव्य समवशरण की रचना की । मरुदेवी हाथी पर बैठकर पुत्र दर्शन के लिए गई। भगवान की दिव्य ऋद्धि देखकर वह दंग रह गई। वह अनिमेष नेत्रों से भगवान को देखती रही। उसे आशा थी कि उसे देखते ही उसका पुत्र दौड़ा आएगा और उससे लिपट कर उसकी कुशल क्षेम पूछेगा। पर ऐसा न हुआ। प्रभु ऋषभ ने तो एक आंख तक उठाकर माता को नहीं देखा। एक क्षण के लिए मरुदेवी का मन विषाद से भर गया। पर दूसरे ही क्षण उसके भाव बदल गए-कौन पुत्र? कौन माता? ये तो बाह्य सम्बन्ध हैं। वस्तुतः आत्मा ही माता है। वही पुत्र है। सर्वस्व वही है।
मरुदेवी के भाव शुद्ध से शुद्धतर बनते चले गए। हाथी के होने पर बैठे-बैठे ही उसे केवलज्ञान हो गया। अगले ही क्षण वह सिद्ध हो गई। भगवान ऋषभदेव ने घोषणा की-मरुदेवा भवइ सिद्धा।
वर्तमान अवसर्पिणी काल की इस भरत क्षेत्र से सिद्ध होने वाली वह प्रथम आत्मा थी। मरुभूति
पोतनपुर नगर के पुरोहित विश्वभूति का पुत्र । मरुभूति का एक अग्रज था जिसका नाम कमठ था। कमठ की पत्नी का नाम वरुणा और मरुभूति की पत्नी का नाम वसुन्धरा था। पूरे परिवार में पर्याप्त पारस्परिक प्रेम भाव था। पुत्रों को योग्य देखकर विश्वभूति ने प्रव्रज्या धारण कर ली। कमठ को पुरोहित पद प्राप्त हुआ। कमठ और मरुभूति के मध्य पूर्ण प्रेमभाव था। पर दोनों के स्वभाव विपरीत थे। मरुभूति धर्मरुचि सम्पन्न और आत्मोन्मुखी था तो कमठ भोगप्रिय था। मरुभूति घर में रहकर ही आत्मसाधना में लीन रहता था। अपने स्वभाव के वश कमठ ने मरुभूति की पत्नी को अपने वश कर लिया। मरुभूति को इस पापलीला का पता चला तो उसने नगर नरेश महाराज अरविन्द से अग्रज कमठ की शिकायत कर दी। राजा ने कमठ को पदच्युत कर दिया और अपमानित करके अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। मरुभूति के प्रति प्रतिशोध को हृदय में लिए कमठ तापस बन गया और अज्ञान तप करने लगा। ___मरुभूति का क्रोध शान्त हुआ तो वह भाई से क्षमापना करने के लिए उसके पास पहुंचा। पर कमठ तो ' प्रतिशोध की आग में जल रहा था। उसने अपने पैरों पर झुके हुए मरुभूति के सिर पर पत्थर से प्रहार कर दिया। पत्थर के प्रहार से मरुभूति का देहान्त हो गया और वह मरकर विन्ध्याचल पर्वत पर हाथी बना। एक मुनि के सत्संग से हाथी को अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई और हाथी के भव में रहकर ही उसने तप त्याग पूर्वक जीवन यापन शुरू कर दिया। तप से हाथी की देह कृश हो गई। एक बार वह कीचड़ भरे तालाब में ... जैन चरित्र कोश ...
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