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भोजकवृष्णि
एक हरिवंशीय राजा। (देखिए-अंधकवृष्णि) .(क) भोज राजा
ई. की ग्यारहवीं सदी का धारानगरी नरेश भोज जन्मना जैन तो नहीं था, परन्तु जैन संतों, जैन आचार्यों और जैन धर्म का बड़ा आदर करता था। अपने राजदरबार में उसने कई जैन आचार्यों को उच्चासन प्रदान किया था और कई जैनाचार्यों ने राज्याश्रय प्राप्त कर कई उत्कृष्ट ग्रन्थों की भी रचना की थी। आचार्य अमितगति, माणिक्यनंदी, नयनन्दि, प्रभाचन्द्र आदि का उसने बहुत सम्मान किया था। जैनकवि धनपाल भी भोज का बाल-सखा था और राजपद प्राप्त कर लेने के बाद भी भोज उसका सदा सम्मान करते रहे। राजा भोज का सेनापति कुलचन्द्र भी जैन था।
राजा भोज के पूर्वजों में सीयक राजा का नाम प्रमुख है, जिसने अपने जीवन के संध्याकाल में अपने पोषित पुत्र मुंज को राजपद देकर जैन दीक्षा धारण कर ली थी। मुंज भी जैन मुनियों का आदर करता था।
राजा भोज का उत्तराधिकारी जयसिंह प्रथम भी जैन धर्म से प्रभावित था और उसने कई जैन आचार्यों को आश्रय दिया था। (ख) भोज राजा
कान्यकुब्ज का राजा । आचार्य बप्पभट्टि और उनके शिष्यों का राजा भोज पर विशेष प्रभाव था। भोज ने जिन धर्म के प्रचार-प्रसार और प्रभावना के कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए। (देखिए-बप्पभट्टि आचार्य) भ्रमरकेतु
लंकाधिपति, एक राक्षसवंशीय क्रूर राजा। (देखिए-उत्तम कुमार)
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