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गया था। मंत्रिमण्डल ने पट्टहस्तिनी की सूण्ड में पुष्पाहार देकर नए राजा के चयन का दायित्व उसे सौंपा था। पट्टहस्तिनी ने भीमसेन के गले में पुष्पहार डालकर उसे नए राजा के रूप में चुना। भीमसेन राजा बन गया। राजा बनते ही उसने अपने सैनिकों को क्षितिप्रतिष्ठित नगर में भेजा और अपनी पत्नी और पुत्रों की खोज कराई। पर उसे सफलता नहीं मिली।
सुशीला एक बंजारे के जाल में फंसकर उसकी बन्दिनी बन गई थी। पर बंजारे की पत्नी ने सुशीला के शील की रक्षा में उसका सहयोग किया। उधर उसके दोनों पुत्र-देवसेन और केतुसेन एक वृद्धा के संरक्षण में बड़े हुए और चम्पानगरी के आरक्षीदल में नौकरी पा गए। एक बार वही बंजारा चम्पानगरी पहुंचा। उसने राजा को भेंट दी और अपने लश्कर के लिए आरक्षियों की याचना की। राजा के आदेश पर नगररक्षक ने जिन दो आरक्षियों को बंजारे के लश्कर की सुरक्षा का दायित्व प्रदान किया, वे संयोग से देवसेन और केतुसेन ही • थे। रात्रि में जब दोनों सहोदर पहरे पर थे तो दोनों, नींद न आ जाए इसलिए आपबीती पर, चर्चा करने . लगे। लश्कर के भीतर सुशीला उनकी चर्चा को सुनकर जान गई कि वे दोनों उसी के पुत्र हैं। वह दौड़कर बाहर आई और पुत्रों से लिपट गई। माता और पुत्रों का मिलन हुआ।
बंजारे ने इस मिलन को देखा तो वह सशंकित बन गया कि माता और पुत्र मिलकर उसे राजा से दण्ड दिलाएंगे। उसने उनसे पहले ही राजा भीमसेन के पास पहुंचकर उसके कान भर दिए कि उनके दोनों आरक्षियों ने उसकी बंजारन से बलात्कार किया है। राजा ने क्रोध में भरकर दोनों आरक्षियों के लिए शूली का आदेश दे दिया। देवसेन-केतुसेन की प्रार्थना पर उन्हें राजा के समक्ष लाया गया। सुशीला को भी बुलाया गया। कुमारों ने वस्तुस्थिति स्पष्ट की तो भीमसेन पत्नी और पुत्रों को पहचानकर उनसे लिपट गया। ___सैनिकों ने बंजारे को बन्दी बना लिया। बजारिन की प्रार्थना पर सुशीला ने उसे अपनी उपकारिणी मानते हुए बंजारे को क्षमा दिलवा दी।
कालान्तर में भीमसेन-हरिसेन का मिलन हुआ। हरिसेन ने अपनी दुर्बुद्धि के लिए अग्रज से क्षमा मांगी और उज्जयिनी के सिंहासन पर पुनः उन्हें आसीन कर स्वयं प्रव्रजित हो गया। काफी समय तक भीमसेन ने राज्य किया। बाद में पुत्र को राजपद देकर वह भी प्रव्रजित हो गया। भीमसेन, हरिसेन दोनों भाइयों ने उत्कृष्ट चारित्र का पालन किया और कैवल्य को साधकर निर्वाण पद प्राप्त किया। भुजंग स्वामी (विहरमान तीर्थंकर) ___चौदहवें विहरमान तीर्थंकर । अर्धपुष्कर द्वीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र की वपु विजय में प्रभु वर्तमान में धर्मोद्योत करते हुए विचरण कर रहे हैं। वपु विजय की विजयापुरी नगरी में प्रभु का जन्म हुआ। महाराज महाबल प्रभु के पिता और महारानी सुसीमा प्रभु की माता हैं। पद्म प्रभु का चिह्न है। राजकुमारी गंधसेना से यौवनवय में प्रभु का पाणिग्रहण हुआ। तिरासी लाख पूर्व तक प्रभु गृहवास में रहे। उसके बाद प्रव्रजित बनकर केवलज्ञान प्राप्त किया और धर्मतीर्थ की संस्थापना कर प्रभु तीर्थंकर हुए। चौरासी लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर प्रभु परम पद प्राप्त करेंगे। भुजगवती (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 26 ... 394 ..
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