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नगर को जनशून्य बना दिया था। राक्षस उस नगर के राजा को जैसे ही मारने वाला था, वैसे ही भीमकुमार वहां पहुंचा। उसने राक्षस को ललकारा और राजा को उसके पंजे से मुक्त कराया। राक्षस संक्षिप्त मुठभेड़ के पश्चात् भीमकुमार का मित्र बन गया। भीमकुमार ने उसे दया का पाठ पढ़ाया, जिसे पढ़कर उसने उस उजड़े हुए नगर को पुनः आबाद कर दिया। राजा की प्रार्थना पर भीमकुमार ने उसकी पुत्री मदालसा से पाणिग्रहण किया और वहां सुखपूर्वक रहने लगा।
एक बार राजकुमार भीमकुमार और मंत्रीपुत्र मतिसागर को अपने माता-पिता और परिजनों की याद सताने लगी तो कालीदेवीप्रदत्त आकाशगामिनी विद्या से सभी कमलपुर पहुंचे। राजकुमार और मंत्रीपुत्र के लौटने से नगर में हर्ष की लहर दौड़ गई। कुछ दिन बाद शुभ मुहूर्त देखकर राजा ने भीमकुमार को राजगद्दी पर बैठा दिया और स्वयं संयम धारकर आत्मकल्याण किया। भीमकुमार ने भी लम्बे समय तक शासन किया और सुराज्य की स्थापना की। अंतिम वय में भीमकुमार ने चारित्र की आराधना कर मोक्ष गति प्राप्त की।
-पार्श्वनाथ चरित्र भीमसेन
कच्छ देश की राजधानी भुजनगर के राजा हरिसेन का पुत्र, जो परम उदार और धार्मिक प्रकृति का यवक था। वह उदारतापर्वक दान करता था। किसी भी याचक को रिक्त नहीं लौटने देता था। उसकी इसी उदारता से उसके पिता उस से रुष्ट हो गए और उसे अपने राज्य से निकाल दिया। भीमसेन ने पिता की नाराजगी को अपने लिए सुअवसर माना। उसने सोचा, इस बहाने से देश-विदेश में घूमने का अवसर मिलेगा और सहज ही भाग्य परीक्षा भी होगी। भीमसेन की परिणीता द्युतिप्रभा ने भी पति से आग्रह किया कि वह भी उनके साथ चलेगी। भीमसेन सहमत हो गया। उसने पत्नी को भी पुरुषवेश पहनाया और दोनों घोड़ों पर सवार होकर चल दिए। कई दिनों की यात्रा के पश्चात् दोनों कांगरू देश पहुंचे। वहां पर एक भव्य भवन खरीदकर दोनों रहने लगे। इस नगर में एक दिन भीमसेन घूमने के लिए निकला तो एक मंत्र-तंत्र जानने वाली महिला ने उसे मंत्र विद्या से मेष बना दिया। मेष को उसने अपने घर में बन्द कर लिया और उससे प्रणय-प्रार्थना करने लगी। परन्तु भीमसेन ने उसे मातृपद देकर उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस विचार के साथ कि कभी तो वह उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर ही लेगा, महिला ने उसे अपने घर में ही बन्दी बनाकर रख लिया।
___ द्युतिप्रभा पति के न लौटने से चिन्तित हुई। उसने पुरुषवेश धारण कर पति को खोजने का निश्चय किया। एक बार पुरुषवेशी द्युतिप्रभा, जिसने अपना नाम द्युतिसेन रख लिया था, की भेंट राजा से हुई। वह राजा की प्रियपात्र बन गई। राजा के विशेष आग्रह पर द्युतिसेन को उसकी पुत्री से पाणिग्रहण करना पड़ा। आखिर द्युतिसेन मंत्रवादिनी महिला के पाश से अपने पति को मुक्त कराने में सफल हो गई। मुक्त होते ही भीमसेन को राजपुत्री के रूप में एक अन्य पत्नी भी प्राप्त हुई। कुछ काल उस देश में रहने के पश्चात् भीमसेन अपनी दोनों पत्नियों के साथ सिद्धपुर नगर पहुंचा। वहां पर उसने राजपुत्री सहित चार कन्याओं से विवाह किया। वहां से वह अपनी छह पत्नियों के साथ आगे बढ़ा। उसने समुद्री यात्रा का निश्चय किया। जहाज के स्वामी ने कपट से भीमसेन को समुद्र में धक्का दे दिया। अपने वाग्चातुर्य से छहों स्त्रियों ने जहाज के स्वामी से अपने शील का रक्षण किया। जहाज भड़ौच नगर के बन्दरगाह पर रुका। छहों स्त्रियां जहाज के स्वामी की दृष्टि बचाकर जहाज से निकल गईं और नगर के बाह्य भाग में स्थित यक्षायतन में मौन जप में लीन हो गईं। ...392 .
- जैन चरित्र कोश ....