________________
है कि आप जैसे प्रबुद्ध पुरुष भी वमन के आकांक्षी बन जाते हैं। जिस नागला को आप छोड़ चुके हैं, उसे पुनः प्राप्त करने की चाह क्या वमन को पुनः चाटने के समान नहीं है ? सुनो मुनिवर ! मैं ही नागला हूं! और एक मुनि के रूप में तो मैं आपका स्वागत कर सकती हूं, एक पति के रूप में नहीं !
उपयुक्त भूमिका के साथ कही गई बात ने मुनि भावदेव के विवेकचक्षु खोल दिए । वे पुनः संयम में सुदृढ़ बन गए। स्वच्छ संयम का पालन कर सद्गति के अधिकारी बने ।
भावन
मनोरमपुर नरेश रिपुमर्दन की पुत्री । उसे बाल्यकाल में ही यह पता चल गया था कि उसका विवाह निर्धन वणिक - पुत्र कर्मरेख से होगा। वह निर्धन व्यक्ति से विवाह नहीं करना चाहती थी । उसने अपने पिता से जिद्द कर कर्मरेख को मृत्युदण्ड दिलवा दिया। परन्तु कर्म की रेखाएं तो अटल होती हैं। कर्मरेख बच गया और राजा बना। अंततः भाविनी का विवाह उसी के साथ हुआ। (देखिए कर्मरेख)
भिक्षु (आचार्य)
तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक ।
आचार्य भिक्षु का जन्म जोधपुर के कंटालिया ग्राम में वी. नि. 2253 (वि. 1783) में हुआ। उनके पिता का नाम बल्लू जी और माता का नाम दीपांबाई था। वी. नि. 2278 (वि. 1808) में उन्होंने स्थानकवासी परम्परा के आचार्य रघुनाथ जी के पास दीक्षा धारण की। उन्होंने जैनागमों एवं टीका ग्रन्थों का अध्ययन किया। दीक्षा के कुछ वर्षों के पश्चात् गुरु से मतभेद हो जाने के कारण भिक्षु मुनि ने अपने लिए नवीन पथ चुन लिया। चार अन्य साथी मुनियों के साथ वे स्थानकवासी मुनि परम्परा से विलग हो गए। उन्होंने 'तेरापंथ' नामक धर्मसंघ की स्थापना की और उसके लिए नवीन सामाचारी घोषित की।
आचार्य भिक्षु व्याख्याता और लेखक भी थे। उनकी काव्यमयी रचनाएं राजस्थानी भाषा में हैं ।
'एक आचार्य, एक सामाचारी और एक विचार' यह त्रिपदी रूप बहुमूल्य अवदान आचार्य भिक्षु का है । इसी विचार सूत्र के कारण तेरापंथ धर्मसंघ ने काफी उन्नति की है।
वी.नि. 2330 (वि. 1860) में आचार्य भिक्षु का सिरियारी ( राजस्थान) में अनशनपूर्वक स्वर्गवास हुआ। भीदा जी
सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जब लोंकाशाह क्रियोद्धार का अभियान चला रहे थे, उस समय श्रीयुत् भीदा जी उनके सम्पर्क में आए। वि.सं. 1540 में उन्होंने पैंतालीस अन्य व्यक्तियों के साथ लोंकागच्छ के मुनि श्री भाणाजी ऋषि से दीक्षा अंगीकार की और क्रियोद्धार में अपना जीवन अर्पित किया । (क) भीम
जैन महाभारत के अनुसार एक अपरिमित बलशाली पुरुष । भीम पाण्डु और कुन्ती के पुत्र तथा युधिष्ठिर और अर्जुन के सहोदर थे। जैनेतर महाभारत अथवा पाण्डवचरित्रों में भी उसे असाधारण बली बताया गया है । कहीं कहा गया है कि उसमें दस सहस्र हाथियों का बल था । महाभारत के कई प्रसंग भीम के इस अपरिमित बल का चित्रण भी करते हैं । महाभारत के भीषण युद्ध में भीम ने अपने बल पर युद्ध विजय में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। भीम के अनेक पुत्रों में एक का नाम घटोत्कच था, जो हिडिम्बा का पुत्र था और अपने पिता के समान ही भीषण बलशाली था । वनवास के दिनों में भीम माता कुन्ती को अपने कन्धे • जैन चरित्र कोश •••
**** 3908