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इधर बंधुदत्त की दृष्टि तिलकसुंदरी पर मैली हो चुकी थी। भविष्यदत्त के जाते ही उसने जहाजों को आगे बढ़ने का आदेश दे दिया। एक स्वर से सभी ने बंधुदत्त को उसकी दुष्टता के लिए धिक्कारा, पर इसका कोई असर बंधुदत्त पर नहीं पड़ा।
भविष्यदत्त लौटकर बन्दरगाह पर आया तो उसे वहां जहाज नहीं मिले। बंधुदत्त के भ्रातृद्रोह पर उसे बहुत क्रोध आया। परन्तु उसने अपने भावों पर नियंत्रण पा लिया और अपने नगर कैसे पहुंचा जाए, इस पर चिंतन-मनन करने लगा।
मार्ग में बंधुदत्त ने तिलकसुंदरी को अपनी ओर आकर्षित करने के अनेक उपाय किए। पर सिंहनी भला सियार को अपने प्रियतम के रूप में कब चुन सकती है? तिलकसुंदरी ने बंधुदत्त को कठोर शब्दों में सावधान कर दिया कि वह स्वप्न में भी उसके विषय में विचार करना बन्द कर दे। पर भला वह दुष्ट ही क्या जो सज्जन के समझाने से समझ जाए? बंधुदत्त नहीं समझा और शक्ति के सहारे वह तिलकसुंदरी को प्रताड़ित करने लगा। तिलकसुंदरी ने शील सहायक देवी का आह्वान किया। मां चक्रेश्वरी देवी प्रकट हुई और उसने बंधुदत्त को ललकारा। कामी कायर भी होता है। वह मां चक्रेश्वरी के चरणों में नत हो गया। उसने देवी से क्षमा मांगी और किसी भी नारी पर शक्ति प्रदर्शन न करने का प्रण किया।
जहाज हस्तिनापुर पहुंचे। बंधुदत्त सहित सभी व्यापारियों का नागरिकों ने स्वागत किया। बंधुदत्त ने कपटकथा सुनाकर भविष्यदत्त को ही दोषी ठहरा दिया। उसने अपनी प्रशंसा में कई कल्पित कथाएं सुनाईं
और तिलकसुंदरी को रत्नद्वीप की राजकुमारी बताया। उसने तिलकसुंदरी से विवाह के लिए विशाल महोत्सव का आयोजन कराया। विवाह तिथि के ठीक एक दिन पहले भविष्यदत्त अशनिवेग देव के सहयोग से हस्तिनापुर पहुंच गया। उसने राजा के समक्ष पांच सौ ही व्यापारियों को बुलाकर बंधुदत्त की दुष्टकथा को कहा। बंधुदत्त की दुष्टता की कथा सुनकर राजा-प्रजा सिहर उठे। राजा ने उसे अपने देश से निकाल दिया। भविष्यदत्त का सम्मान समस्त दिशाओं में वृद्धिंगत हुआ। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह भी भविष्यदत्त के साथ कर दिया और उसे राजपद देकर वह प्रव्रजित हो गया। धनसार ने कमलश्री को उसका स्नेहपद पुनः प्रदान किया। भविष्यदत्त ने अंतिम समय में संयमाराधना द्वारा स्वर्ग प्राप्त किया। वहां से च्यव कर मनुष्य भव में जन्म लेकर उसने सिद्धि प्राप्त की।
-भविस्सयत्त कथा (क) भागचंद (कवि)
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध तथा बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध के कविवर भागचंद जी का जन्म ईसागढ़ (ग्वालियर) में हुआ। आप ओसवाल जाति के जैन श्रावक थे। ___ संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषाओं के भागचंद जी अधिकारी विद्वान और कविहृदय श्रावक थे। उक्त तीनों ही भाषाओं में आपने काव्यों की रचनाएं की। आपकी सात रचनाएं उपलब्ध हैं, जिनकी नामावलि निम्नोक्त है
(1) श्री महावीराष्टक स्तोत्र (2) अमितगतिश्रावकाचार वचनिका (3) उपदेश सिद्धान्तरत्नमाला वचनिका (4) प्रमाणपरीक्षा वचनिका (5) नमिनाथ पुराण (6) ज्ञान सूर्योदय नाटक वचनिका (7) पद संग्रह।
आपकी रचनाएं प्रौढ़, भक्तिपरक एवं बौद्धिक हैं। -तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (ख) भागचंद्र (सेठ)
पोलासपुर नगर का एक धनकुबेर श्रमणोपासक । देव, गुरु और धर्म पर उसकी अगाध आस्था थी। ... 386 ..
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