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बप्पभट्टि (आचार्य)
वादि-कुञ्जर-केशरी की उपाधि से अलंकृत जैन परम्परा के एक अतिशय प्रभावशाली आचार्य । अपने युग के वे समर्थ विद्वान, काव्यकार और प्रभावी व्यक्तित्व के धनी पुरुषरत्न थे।
आचार्य बप्पभट्टि का जन्म क्षत्रिय कुल में वी.नि.1270 में अधि गांव (गुजरात) में हुआ। उनके पिता का नाम बप्प और माता का नाम भट्टि था। माता-पिता के संयुक्त नाम-बप्पभट्टि से ही वे विश्वविश्रुत हुए। उनका जन्म-नाम सूरपाल था। 6 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गृहत्याग किया और वे आचार्य सिद्धसेन (ये आचार्य सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न थे) के सान्निध्य में चले गए। आचार्य श्री के सान्निध्य में उनका शिक्षण हुआ। बालक सूरपाल अद्भुत मेधा सम्पन्न थे। एक बार एक ही दिन में एक हजार श्लोक कण्ठस्थ कर उन्होंने सभी को चमत्कृत कर दिया था।
माता-पिता ने पुत्र को घर लौटने के लिए बाध्य किया, पर सूरपाल ने लौटना स्वीकार नहीं किया। आखिर वी.नि. 1277 में सूरपाल का दीक्षा संस्कार सम्पन्न हुआ। सूरपाल के माता-पिता के आग्रह पर आचार्य श्री ने शिष्य का नाम बप्पभट्टि स्वीकार किया।
बाल्यावस्था में ही बप्पभट्टि ने कान्यकुब्ज के राजकुमार आम को आत्यन्तिक रूप से प्रभावित किया। दोनों के मध्य में अंतरंग मैत्री स्थापित हुई। उधर आम राजा बना, इधर आचार्य श्री ने मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में बप्पभट्टि को आचार्य पद पर आसीन कर दिया। कान्यकुब्ज नरेश आम आचार्य बप्पभट्टि का आजीवन भक्त बना रहा। ___ बप्पभट्टि अपने युग के अतिशय प्रभावशाली आचार्य थे। उन्होंने कई राजाओं को अपनी विद्वत्ता और चारित्रबल से प्रभावित किया। गौड़ देश का राजा धर्मराज भी आचार्य बप्पभट्टि से प्रभावित हुआ। कान्यकुब्ज और गौड़ राज्यों के मध्य पुरानी शत्रुता थी। आचार्य बप्पभट्टि ने अपने उपदेशों द्वारा दोनों नरेशों को मित्र बना दिया। एक बार राजा आम ने आचार्य बप्पभट्टि के चारित्र की गहराई नापने के लिए एक गणिका को रात्रि में पुरुष वेश पहनाकर उपाश्रय में भेजा। परन्तु गणिका आचार्य श्री के मन-मेरु पर कोई कम्पन न जगा पाई। इससे राजा की निष्ठा आचार्य श्री के प्रति और भी दृढ़ हो गई।
आचार्य बप्पभट्टि ने अपने जीवन काल में कई बहुमूल्य ग्रन्थों की रचना भी की। 95 वर्ष की अवस्था में वी.नि. 1365 में आचार्य बप्पभट्टि दो दिन के संथारे के साथ स्वर्गवासी हुए।
कान्यकुब्ज नरेश आम ने अंतिम अवस्था में आचार्य बप्पभट्टि से दीक्षा अंगीकार की। जिनदेवों की आराधना करते हुए राजर्षि आम का वी.नि. 1360 में स्वर्गवास हुआ। राजा आम के दीक्षा लेने के पश्चात् उसका पुत्र दुन्दुक कान्यकुब्ज के सिंहासन पर आसीन हुआ। उसका शासन काल अल्प रहा। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र भोज राजा बना। राजा भोज ने जैन धर्म की प्रभावना के कई महनीय कार्य किए।
-प्रभावक चरित्र
बल ब्राह्मण
भगवान महावीर के धर्म संघ के ग्यारहवें गणधर प्रभास के पिता और राजगृह के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण। (क) बलभद्र ___सुग्रीव नगर नरेश, मृगापुत्र के पिता और एक तत्त्वज्ञ राजा। (देखिए-मृगापुत्र) -उत्तराध्ययन ... जैन चरित्र कोश ..
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