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पोटिल्ला
कलाद नामक सोनी की पुत्री और तेतलीपुत्र प्रधान की भार्या । पति के विमुख होने पर उसने संयम ग्रहण किया तथा स्वर्ग प्राप्त किया। देवलोक से धरती पर आकर उसने अपने पति को प्रतिबोध दिया जिसके • फलस्वरूप उसके पति ने न केवल संयम ग्रहण किया अपितु केवलज्ञान पाकर मोक्षपद भी पाया। स्वर्ग में
वह पोट्टिल्ल देव कहलाई। (दखिए-तेतलीपुत्र) प्रचण्डा
___ कंचनपुर के हरिबल नामक धीवर युवक की यथानाम-तथागुण सम्पन्न पत्नी। (देखिए-हरिबल) प्रजापति - अचल बलदेव के जनक। (देखिए-अचल बलदेव) प्रजापाल
उज्जयिनी नगरी का एक दंभी राजा, जो स्वयं को सबका भाग्य विधाता मानता था। (दखिए-श्रीपाल) प्रतिबुद्धि राजा
उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ के काल में साकेत नगरी का राजा, मल्लि के महाबल के भव का अनन्य मित्र। किसी समय उसकी पत्नी ने नागयज्ञ किया। प्रतिबुद्धि उसमें सम्मिलित हुआ। उसने वहां सुन्दर माला देखी, जिसे देखकर वह चमत्कृत और प्रसन्न हुआ। उसने अपने मंत्री से पूछा कि क्या उसने वैसी माला पहले कहीं देखी है। मंत्री ने कहा, उसने विदेह राजकुमारी मल्लि के पास जैसी अद्भुत माला देखी है, वैसी माला अन्यत्र कहीं हो ही नहीं सकती। इस प्रसंग से प्रतिबुद्धि मल्लि के प्रति आकर्षित हो गया। उसने दूत भेजकर महाराज कुम्भ से मल्लि का हाथ मांगा। कुंभ के अस्वीकार से प्रतिबुद्धि ने मिथिला पर आक्रमण की तैयारी की और फिर मल्लि के रचनात्मक उपदेश से प्रतिबुद्धि प्रतिबुद्ध बना और दीक्षित होकर मोक्ष में गया। प्रतिष्ठ
वाराणसी नरेश। भगवान सुपार्श्व के जनक। प्रदेशी राजा
श्वेताम्बिका नगरी का राजा, जो अपने जीवन के अन्तिम कुछ दिनों को छोड़कर घोर हिंसक और नास्तिक था। वह शरीर को ही जीव मानता था। शरीर से भिन्न जीव की सत्ता उसे स्वीकार न थी। उसने कई अपराधियों और चोरों को दण्डित करते हुए यह शोध करने का यत्न भी किया था कि शरीर से भिन्न कोई जीव है या नहीं। इस शोध में अत्यन्त क्रूरतापूर्वक उसने कई अपराधियों के शरीरों को खण्ड-खण्ड कर डाला था, कई को लौह कुंभियों में रोककर मार डाला था। पर वह जीव को कहीं न देख पाया। इससे उसकी नास्तिकता और प्रगाढ़ बन गई थी। वह मानता था कि शरीर के साथ ही जीव भी मर जाता है। स्वर्ग, नरक, मोक्ष, धर्म, कर्म आदि को वह कपोल-कल्पित वस्तुएं मानता था। प्रजा उसके कुशासन से संत्रस्त थी। चित्त प्रदेशी राजा का महामात्य था, जो जीवाजीव का ज्ञाता, दयालु और व्यवहारकुशल था। अंततः चित्त के ही एक गुप्त प्रयास से राजा प्रदेशी के जीवन में रूपान्तरण आया। चित्त एक बार श्रावस्ती नगरी गया था। ... जैन चरित्र कोश ...
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