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ने 'राजकुमार को एक काष्ठ का ऐसा अद्भुत हंस दिया, जो आकाश में उड़ सकता था। भ्रमण के शौकीन राजकुमार को मन की मुराद मिल गई। एक बार वह हंस पर सवार होकर अपने नगर से हजारों कोस दूर लक्ष्मीपुर नगर पहुंचा। वहां के राजा की इकलौती पुत्री नरद्वेषिणी थी। यह बात जानकर पुष्पसेन राजकुमारी
प्रति विशेष आकर्षित हुआ । राजकुमारी को फूल अति प्रिय थे और उसे प्रतिदिन फूलों से तोला जाता था । इसीलिए उसे फूलों की रानी कहा जाता था। पुष्पसेन ने अपनी बुद्धिमत्ता और मधुर व्यवहार से राजकुमारी का नरद्वेष दूर कर दिया और उससे विवाह कर उसे लेकर चल दिया। दोनों कई मास तक देश - विदेश का भ्रमण करते रहे। उसी यात्रा में फूलों की रानी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया। दुर्दैववश पति-पत्नी का विछोह भी हुआ । चन्द्रावती नगरी में पुष्पसेन का हंस चुरा लिया गया। वहां वह राज जामाता भी बना।
फूलों की रानी पर एक योगी की दृष्टि मैली हो गई । उससे भाग कर उसने एक जहाज पर आश्रय लिया तो जहाज का स्वामी भी उसके रूप पर मुग्ध हो गया। कहीं फटकार और कहीं बुद्धिमत्ता से अपने शील का रक्षण करती हुई फूलों की रानी चन्द्रावती नगरी पहुंच गई, जहां पति से उसकी भेंट हुई।
आखिर पुष्पसेन को उसका हंस भी मिल गया, जिस पर सवार होकर वह अपनी दोनों पत्नियों के साथ अपने नगर में पहुंच गया ! पिता के पश्चात् पुष्पसेन राजा बना और उसने सुदीर्घ काल तक शासन किया । जीवन के उत्तरार्ध भाग में एक मुनि से प्रतिबोधित हो उसने दीक्षा धारण की। विशुद्ध चारित्र की आराधना करते हुए उसने परमपद प्राप्त किया ।
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पुष्पकेतु
महासती पुष्पचूला के पिता । (देखिए - पुष्पचूला)
(क) पुष्पचूल (देखिए- पुष्पचूला)
(ख) पुष्पचूल
चम्पानगरी का राजा । (देखिए - ब्रह्मराजा)
(क) पुष्पचूला
प्रभु पार्श्वनाथ की शिष्या श्रमणी ।
- समवायांग
(ख) पुष्पचूला
जैन परम्परा में विश्रुत सोलह महासतियों में से एक। पुष्पभद्र नगर के महाराज पुष्पकेतु और महारानी पुष्पवती उसके जनक और जननी थे। उसका एक सहोदर था, जिसका नाम था पुष्पचूल । भाई और बहन का प्रेम स्वाभाविक होता ही है परन्तु पुष्पचूल और पुष्पचूला का पारस्परिक प्रेमभाव अपूर्व और अनन्य था । बाल्यकाल से ही वे दोनों एक दूसरे को देखे बिना एक पल न रह सकते थे । साथ-साथ खेलना, खाना, घूमना और सोना उनके स्नेह की कथा को आख्यायित करता था। इसी क्रम में वे दोनों युवा हो गए। पुष्पचूला को उसके विवाह के लिए उसके पिता-माता द्वारा पूछा गया तो उसने स्पष्ट अस्वीकार करते हुए कहा कि वह अपने भाई से एक पल भी अलग नहीं रह सकती है, इसलिए वह विवाह नहीं करेगी। ऐसा ही उत्तर पुष्पल का भी था। माता-पिता द्वारा गहन विमर्श किया गया। कोई विकल्प न सूझा तो महाराज पुष्पकेतु ने यौगलिक युग का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र और परिवार को सन्तुष्ट किया और पुष्पचूला और पुष्पचूल -- -... जैन चरित्र कोश
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