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पुरुषपुण्डरीक (वासुदेव)
षष्ठम् वासुदेव, चक्रपुर नरेश महाशिर और उनकी रानी लक्ष्मीवती का पुण्यशाली और पराक्रमी पुत्र । लक्ष्मीवती ने इस पुत्र के गर्भ में आने पर सात शुभ स्वप्न देखे थे, जो इस बात के संसूचक थे कि वह एक ऐसे पराक्रमी पुत्र को जन्म देगी जो त्रिखण्ड का शासक होगा। राजा की एक अन्य रानी ने भी चार शुभ स्वप्न देखकर एक शालीन और सुकुमार पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम आनंद रखा गया । यही आनंद छठा बलदेव कहलाया ।
यौवनवय में पुरुषपुण्डरीक का विवाह उस युग की अनिंद्य सुंदरी राजकुमारी पद्मावती से हुआ, जो राजेन्द्रपुर नगर के महाराज उपेन्द्रसेन की पुत्री थी ।
उस युग में अरिंजय नगर का स्वामी बलि एक पराक्रमी राजा था। उसने अपने पराक्रम से पृथ्वी के एक बड़े भूभाग पर अपना राज्य स्थापित कर लिया था। हजारों बड़े-बड़े सम्राट् उसकी आज्ञा का सर झुका कर पालन करते थे । वह प्रतिवासुदेव था । पद्मावती के रूप की ख्याति उसके कानों तक भी पहुंची। वह शक्तिशाली तो था ही, साथ ही यह भी मानता था कि जगत की सर्वश्रेष्ठ भोग्य वस्तुओं को भोगने का उसे अधिकार प्राप्त है। अर्थात् अपने बल का उसे पूरा-पूरा घमण्ड था। उसने पुरुषपुंडरीक को आदेश प्रेषित किया कि वह पद्मावती को उसके पास भेज दे।
पुरुषपुण्डरीक ने बलि के आदेश की कड़े और निंदनीय शब्दों में भर्त्सना कर दी और उसके पराक्रम को सीधी चुनौती दे दी। आखिर दोनों के मध्य महायुद्ध हुआ जिसमें चढ़ते सूर्य पुरुषपुंडरीक ने डूबते सूर्य बलि को पराजित किया। देवताओं ने इस विजय के साथ ही घोषणा की कि पुरुषपुंडरीक छठे वासुदेव हैं। तीन खण्ड पर पुरुषपुण्डरीक ने सुदीर्घ काल तक शासन किया। पैंसठ हजार वर्ष की कुल आयु भोगकर उनका देहान्त हुआ। - त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र
(क) पुरुषसिंह
कुंतीनगर का राजा। (देखिए-खंधक मुनि) (ख) पुरुषसिंह (वासुदेव)
इस अवसर्पिणी काल का पंचम् वासुदेव, जो तत्कालीन प्रतिवासुदेव निशुम्भ को मारकर वासुदेव बना । पुरुषसिंह और निशुम्भ का शत्रुताभाव पूर्वजन्म से ही चला आ रहा था । पूर्वजन्म में पुरुषसिंह का जीव पोतनपुर नगर का राजा विकट था और निशुंभ का जीव राजसिंह नाम से एक अन्य देश का राजा था। राजसिंह राज्यलिप्सु था, सो उसने अपनी राज्यलिप्सा के वश बनकर पोतनपुर पर आक्रमण कर दिया। विकट पराजित हो गया और वनों में जाकर मुनि बन तप करने लगा। मृत्यु से पूर्व उसने राजसिंह से बदला लेने का निदान कर लिया। विकट मरकर स्वर्ग में गया और वहां से च्यव कर अश्वपुर के राजा शिव की रानी अंभका
गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। राजा की एक अन्य रानी विजया ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम सुदर्शन रखा गया । यही सुदर्शन पंचम् बलदेव कहलाए।
उधर राजसिंह राजा भी अनेक गतियों में जन्म-मरण करता हुआ हरिपुर नगर के राजा के पुत्र रूप में जन्मा और निशुंभ नाम से प्रसिद्ध हुआ । निशुंभ ने अपने पराक्रम से तीन खण्ड के बृहद् भाग पर आधिपत्य जमा लिया। उधर अश्वपुर नरेश शिव की मृत्यु के बाद निशुंभ ने अश्वपुर पर आधिपत्य जमाना चाहत पुरुषसिंह और सुदर्शन ने उसका पुरजोर प्रतिरोध किया और परिणामस्वरूप भयंकर युद्ध हुआ । पुरुषसिंह ••• जैन चरित्र कोश
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