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रुदन अरण्यरोदन ही सिद्ध हुआ। उसने एक पर्वत गुफा में शरण ली और धर्माराधनापूर्वक कष्ट का समय व्यतीत करने लगी।
वीरदास सहदेव का सहोदर और नर्मदासुंदरी का चाचा था। वह व्यापार के लिए उधर से गुजरा तो उसे नर्मदासुंदरी मिल गई। वह भ्रातृसुता के साथ म्लेच्छनगर में व्यापार के लिए पहुंचा। वहां पर हरिणी - नामक गणिका ने नर्मदासुंदरी को अपने कपटजाल में फंसा लिया। परन्तु काजल की कोठरी में रहकर भी
नर्मदासुंदरी ने अपने तन पर कालिख न लगने दी। मार और मनुहार दोनों विधियों से वह नर्मदासुंदरी को कुशील सेवन के लिए राजी नहीं कर पाई। पराजित होकर उसने उसे एक अन्धेरी कोठरी में बन्दिनी बना दिया। गणिका के बन्धनों में बंधी नर्मदासुंदरी नवकार मंत्र का पाठ करते हुए कटु समय को व्यतीत करने लगी।
वीरदास ने नर्मदासुंदरी को बहुत खोजा, पर असफल रहा। वह निराश होकर अपने नगर लौट आया। गणिका ने अपनी दाल गलते न देखकर नर्मदासुंदरी को पर्याप्त धन लेकर राजा को भेंट कर दिया। नर्मदासुंदरी ने राजा से आत्मरक्षा के लिए पागलपन का अभिनय करना शुरू कर दिया। राजा ने उसे अपने महलों से निकाल दिया। राजा का क्रोध गणिका पर उतरा, उसने उसे कारागृह में डाल दिया।
नर्मदापुर के जिनदास श्रेष्ठी आखिर नर्मदासुंदरी को खोजने में सफल हो गए। उसे लेकर वे नगर में आ गए। नर्मदासुंदरी माता-पिता से मिली। अपनी उत्तर क्रिया आदि की बात जानकर नर्मदासुंदरी का हृदय वैराग्य से पूर्ण हो गया। उसने आर्हती दीक्षा धारण कर ली।विहारक्रम में एक बार साध्वी नर्मदासुंदरी महेश्वरदत्त के नगर में पहुंची। उसके संसारपक्षीय पति, सास और श्वसुर उसके दर्शनों के लिए गए। पूरे परिवार ने नर्मदासुंदरी को पहचान लिया। सास के प्रश्न पर नर्मदासुंदरी ने पति विरह के कारण और बाद के घटनाक्रम को संक्षेप में कहा, जिसे सुनकर महेश्वरदत्त पानी-पानी हो गया। पूरा परिवार विरक्त होकर प्रव्रजित हो गया।
साध्वी नर्मदासुंदरी ने निरतिचार संयम की आराधना करते हुए सिद्ध पद प्राप्त किया। मुनि महेश्वरदत्त और उसके माता-पिता ने भी उग्र संयम का पालन कर समस्त कर्मों को अशेष कर मोक्ष प्राप्त किया।
-मूलशुद्धि प्रकरण टीका (देवचन्दसूरि)/ नर्मदासुंदरी कथा (महेन्द्र सूरि, 11वीं शती) नल (राजा)
जैन और जैनेतर वाङ्मय में नल का चरित्र प्राप्त होता है। वे अयोध्यापति महाराज नैषध के पुत्र थे। पिता के पश्चात् वे राजगद्दी पर बैठे। विदर्भ नरेश भीम ने अपनी पुत्री दमयन्ती का स्वयंवर रचा। दमयन्ती ने नल को पति रूप में चुना। नल और दमयन्ती सुखपूर्वक जीवन यापन करने लगे। नल का एक छोटा भाई था कुबेर । वह छलिया और वंचक था। किसी समय नल और कुबेर द्यूतक्रीड़ा खेल रहे थे। दुर्दैववश नल अपना सर्वस्व हार गए। उन्हें अपनी रानी दमयन्ती के साथ वनवास भोगना पड़ा। नल नहीं चाहते थे कि दमयन्ती उनके साथ कष्ट भोगे। इसी विचार से वे वन में सोई हुई दमयन्ती के उत्तरीय पर उसके पीहर चले जाने का निर्देश लिखकर एक दिशा में प्रस्थित हो गए। दमयन्ती अचलपुर में कुछ समय रहकर अपने पिता.. के पास चली गई।
उधर नल ने जंगल में भड़के दावानल में एक नाग को जलते देखा। उसने नागराज को अग्नि से बाहर निकाला। नाग ने नल को डॅस लिया, जिससे वह विद्रूप और कुब्ज हो गया। उपकार के बदले में अपकार ... जैन चरित्र कोश.
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