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गया। पर्याप्त चिन्तन-मनन के पश्चात् पुत्र के हृदय में भोगों का आकर्षण जगाने के लिए सुरेन्द्रदत्त ने धम्मिल को ललित गोष्ठी का सदस्य बना दिया । ललित गोष्ठी कई युवक मित्रों का एक दल था, जिसके सदस्य कला-संगीत आदि में निपुण थे । 'ललित गोष्ठी' की संगति में रहने से धम्मिल का परिचय गणिका वसन्तसेना की पुत्री वसन्ततिलका से हो गया । वसन्ततिलका के रूप और गुणों ने धम्मिल के हृदय में अनुराग भाव को जागृत कर दिया । धम्मिल परिवार और परिजनों को भूलकर गणिका-पुत्री के साथ उसी के घर में रहने लगा। वसन्तसेना चतुर थी। वह निरन्तर धम्मिल के घर से धन प्राप्त करती रही । सुरेन्द्रदत्त प्रतिदिन - पांच सौ स्वर्णमुद्राएं गणिका को देता था। इस क्रम से कुछ ही वर्षों में सुरेन्द्रदत्त का सारा धन गणिका ने हरण कर लिया। माता- पिता ने धम्मिल को घर लौटाने के कई प्रयास किए, पर उन्हें सफलता नहीं मिली । निर्धनता और पुत्र-विरह के कारण सुरेन्द्रदत्त और उसकी पत्नी अकाल काल कवलित बन गए। यशोमती भी अपने पिता के घर चली गई और पति के लौटने की प्रतीक्षा में धर्म-ध्यानपूर्वक जीवन यापन करने लगी।
धम्मिल के घर से धन का स्रोत रुक गया तो वसन्तसेना ने उसे अपने घर से अपमानित कर निकाल दिया। गणिका-गृह से निकल कर ही बाहर के यथार्थ का ज्ञान धम्मिल को हुआ । उसे ज्ञात हुआ कि उ के कारण उसके माता-पिता अकाल मरण को प्राप्त हो गए हैं और उसकी पत्नी पितृ-गृह में रहकर जीवन-यापन कर रही है । यथार्थबोध ने धम्मिल को आत्मग्लानि से भर दिया। उसने आत्महत्या का निश्चय कर लिया । आत्महत्या के लिए उसने कई प्रयास किए पर दैवयोग से प्रत्येक बार वह बच गया। उसी प्रसंग में अगड़दत्त नामक एक मुनि से धम्मिल की भेंट हुई। मुनि के उपदेश से धम्मिल ने आत्महत्या का विचार त्याग दिया । उसने आयंबिल तप कर अशुभ कर्मों को निजीर्ण कर दिया। उसके शुभ कर्मों का उदय हुआ और उसने सांसारिक सफलताओं के उच्च शिखरों पर आरोहण किया। कई राजपुत्रियों, विद्याधर- कन्याओं और श्रेष्ठि-सुताओं से उसने पाणिग्रहण किया । जीवन के उत्तर पक्ष में उसने संयम की आराधना कर अच्युत देवलोक में इन्द्र का सामानिक पद प्राप्त किया। कालक्रम से वह मोक्षपद प्राप्त करेगा ।
- धम्मिल हिंडी, (रचनाकार-संघदास गणी)
धर
कौशाम्बी नरेश एवं भगवान पद्मप्रभ के पिता । (देखिए - पद्मप्रभ तीर्थंकर)
धरणकुमार
समग्र परिचय गौतम के समान है। अन्तर इतना है कि इन्होंने सोलह वर्ष पर्यंत चारित्र का पालन किया । ( देखिए- गौतम)
धरणेन्द्र (पद्मावती)
भवनपति देवों में नागकुमार जाति के देवों का इन्द्र ।
धरणेन्द्र की पट्टमहिषी का नाम पद्मावती है।
अपने पूर्वजन्म में - लगभग 3000 वर्ष पूर्व धरणेन्द्र और पद्मावती नागयुगल - नाग और नागिन के शरीर में थे। वाराणसी नगरी में कमठ नामक तापस पंचाग्नि तप तप रहा था। उसने अपने चारों ओर बड़े-बड़े लक्कड़ रखवा कर उनमें अग्नि प्रज्ज्वलित कराई और मध्य के स्थान में बैठकर वह अग्नि के ताप को अपने शरीर पर सह रहा था। अग्नि में जल रहे एक बड़े लक्कड़ के भीतर नागयुगल बैठा हुआ था ।
उस समय वाराणसी नगरी के राजकुमार और भावी तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वकुमार वहां आए। उन्होंने ••• जैन चरित्र कोश •
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