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और संयम में ही धर्म रहा हुआ है। मुनि के वचन चोर के हृदय में पैठ गए। उसने तत्क्षण संयम धारण कर लिया। - प्रभात खिलने पर आस-पास फैले सैनिक संयमव्रती चोर के पास आए। चूंकि चोर मुनि बन चुका था, इसलिए सैनिक उसे गिरफ्तार करने का साहस न कर सके। नगर में जाकर सैनिकों ने राजा देवकुमार को सूचना दी। वस्तुस्थिति से परिचित बनकर राजा वन में गया। उसने नवदीक्षित मुनि को भावभरे हृदय से वन्दन किया और उसके हृदय-परिवर्तन की स्तुति की।
- एक बार राजा देवकुमार पौषध की आराधना करते हुए धर्म जागरिका कर रहा था। उसका चिन्तन चोर द्वारा संयम की साधना पर केन्द्रित हो गया। उसने सोचा, धन्य है उस पुण्यात्मा को जिसने क्षणिक भय से विह्वल बन सांसारिक ममत्वों का विच्छेद कर परम कल्याणकारी संयम को ग्रहण कर लिया। एक मैं हूं जो धर्म के मर्म को जानते हुए भी मोह-ममत्वों का विच्छेद नहीं कर पा रहा हूं। वह क्षण धन्य होगा जब मैं समस्त ममत्व का विच्छेद कर अणगार धर्म की आराधना करूंगा। राजा देवकुमार के भाव निर्मल और सुनिर्मल बनते गए। उसके भावों में ऐसा ऊर्ध्वारोहण जगा कि पौषधावस्था में ही उसे केवलज्ञान हो गया। देव दुंदुभियां बजने लगीं। देवों ने बड़ी संख्या में उपस्थित होकर देवकुमार केवली का कैवल्य महोत्सव मनाया। मुनि देवकुमार केवली ने धर्मोपदेश दिया। हजारों नागरिक प्रबुद्ध हुए। अनेक ने संयम व्रत धारण किए।
अनेक वर्षों तक जगतितल पर विचरण कर और असंख्य भव्य-जीवों के लिए कल्याण का द्वार बनकर देवकुमार केवली मोक्ष पधारे। -जैन कथा रत्न कोष, भाग 4 / श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र, - (रत्नशेखर सूरि कृत) (क) देवदत्ता
राजगृह नगर की एक गणिका। (देखिए-कृतपुण्य) (ख) देवदत्ता
प्राचीनकालीन चम्पानगरी की एक गणिका। (दखिए-नागश्री) (ग) देवदत्ता
देवदत्ता का पूर्व, वर्तमान और भविष्य सम्बन्धी समग्र जीवन वृत्तान्त निम्नोक्त है
अत्यन्त प्राचीन काल में भारतवर्ष में सुप्रतिष्ठ नाम का एक नगर था। वहां पर महाराज महासेन राज्य करते थे। धारिणी प्रमुख उनकी एक हजार रानियां थीं। धारिणी का एक पुत्र था, जिसका नाम सिंहसेन था। युवावस्था में सिंहसेन का पांच सौ राजकन्याओं से पाणिग्रहण कराया गया। उनमें श्यामादेवी नामक राजकुमारी प्रमुख थी।
पिता के स्वर्गवास के पश्चात् सिंहसेन सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। अपनी पटरानी श्यामादेवी पर उसका सघन अनुराग था। उसके प्रेमपाश में बंधकर उसने शेष चार सौ निन्यानवे रानियों को उपेक्षित छोड़ दिया। इससे उन राजकुमारियों की माताएं चिन्तित हो गईं। इसके लिए उन्होंने श्यामा देवी को उत्तरदायी माना। श्यामादेवी उनकी आंखों का कांटा बन गई। श्यामादेवी की हत्या करने के लिए वे उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगीं।
___ अपनी हत्या के षड्यन्त्र से श्यामादेवी भी अवगत हो गई। उसने सिंहसेन को शिकायत कर दी। इससे सिंहसेन क्रोधित हो गया। उसने अपनी चार सौ निन्यानवे पत्नी-माताओं को दण्डित करने के लिए एक षड्यन्त्र की रचना की। ... जैन चरित्र कोश ..
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