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तीन प्रहारों में चार हत्याएं कर डाली दृढ़प्रहारी ने । कटे हुए शवों को वह देख रहा था। वह देख रहा था उस अकाल जात बछड़े को जो मृत्यु के क्षण में तड़प रहा था। जीवन में हजारों प्राणियों की हत्या करने वाला दृढ़प्रहारी आज तक कम्पित न बना था, पर आज उस अजात बछड़े की तड़प ने उसे कंपा दिया। हाथ में रक्तरंजित तलवार लिए खड़े दृढ़प्रहारी के भीतर चिन्तन चला - एक गाय में भी इतना विवेक है कि वह अपने स्वामी की रक्षा के लिए अपने प्राण दे देती है। एक मैं हूं जो मनुष्य कहलाकर निर्दोषों के रक्त से
करता हूं । धिक्कार है मेरे मनुष्य होने पर !
विचारधारा निर्वेद रस से सिक्त हो गई। वहीं खड़े-खड़े दृढ़प्रहारी ने समता की दीक्षा का भीष्म महाव्रत ले लिया। उसने विचार किया, इसी नगर के हजारों लोगों का वध कर मैंने हिंसा का भारी बोझ संचित किया है, इसी नगर में रहकर उस बोझ से मुक्त होना होगा। जिन कर्मों का संचय विषमता से किया है उन्हीं कर्मों को समता की साधना से निर्बीज करना होगा ।
दृढ़प्रहारीमुनि ने नगर के चारों द्वारों पर डेढ़-डेढ़ मास ध्यानस्थ रहकर नगरवासियों में उमड़े क्रोध के, प्रतिशोध के दावानल को शान्त - प्रशान्त बना दिया। पूर्ण समता की साधना से सकल कर्मों को निर्बीज बनाकर दृढ़प्रहारी मुनि केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चले गए।
- आवश्यक कथा
(ख) दृढ़प्रहारी
अगड़दत्त के पिता का मित्र और सहपाठी । ( देखिए-अगड़दत्त)
दृढ़रथ
भद्दिलपुर नरेश और भगवान शीतलनाथ के पिता ।
देवकी माता
महाराज वसुदेव की रानी और त्रिखण्डाधिपति वासुदेव श्रीकृष्ण व गजसुकुमाल की जननी । अंतगडसूत्र में देवकी का श्रद्धा और भक्ति की देवी के रूप में सुन्दर चरित्र चित्रण हुआ है। देवकी कंस की चचेरी बहन थी। जब वसुदेव के साथ उसका विवाह हो रहा था तब कंस की रानी जीवयशा ने अपने देवर मुनि अतिमुक्तक से आपत्तिजनक उपहास किया। मुनि ने रोष में भरकर भविष्य उघाड़ दिया और कहा, जिस ननद के विवाह के अवसर पर तुम अपना विवेक विस्मृत कर बैठी हो, उसी की सातवीं संतान तुम्हारे वैधव्य का कारण होगी ।
मुनि के वचनों ने जीवयशा का नशा उतार दिया। कंस ने भी यह बात सुनी। उसने छल से देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया । कारागार में ही देवकी ने एक-एक कर छह पुत्रों को जन्म दिया। हरिणगमेषी देव की माया शक्ति ने देवकी के पुत्रों को सुलसा गाथापत्नी के मृत पुत्रों से बदल दिया। कंस ने यही माना कि देवकी ने मृत पुत्रों को ही जन्म दिया है।
सातवीं संतान के रूप में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया। श्रीकृष्ण के प्रबल पुण्य प्रभाव से उनके . जन्म लेते ही कारागृह के रक्षक निद्राधीन बन गए। वसुदेव अपने नवजात शिशु को गोकुलवासी अपने मित्र नन्द को सौंप आए । नन्द की पत्नी यशोदा ने श्रीकृष्ण का लालन-पालन किया । आखिर बड़ा होने पर श्रीकृष्ण कंस का प्राणान्त कर अपने माता और पिता को कारागृह से मुक्त कराया।
देवकी एक भक्तिमती सन्नारी थी। अपने हाथों से वह श्रमणों को भिक्षा बहराकर मन में महान प्रसन्नता अनुभव करती थी। वह भगवान अरिष्टनेमि की अनन्य उपासिका थी । अधेड़ उम्र में देवकी ने गजसुकुमाल ••• जैन चरित्र कोश
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