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दामनक एक धनी सेठ का पुत्र था। उसके परिवार में कई सदस्य थे। एक बार सेठ के परिवार में महामारी फैल गई। पड़ोसियों ने इस विचार से कि इस परिवार की बीमारी उनके परिवारों तक न पहुंच जाए, रात्रि में सेठ के घर के चारों ओर इस विधि से कांटों की बाड़ लगा दी कि घर से न कोई बाहर आ सकता था और न कोई अन्दर जा सकता था। शीघ्र ही दामनक को छोड़कर उसका पूरा परिवार महामारी की चपेट में आ गया और एक-एक कर सभी सदस्य मर गए। पर पूर्व पुण्य के कारण दामनक घर से निकल भागने में सफल हो गया । अनाथ अष्टवर्षीय बालक जहां-तहां टुकड़ा पा जाता, उसे पेट में डालकर जहां-तहां सोकर रात बिता लेता। एक बार उसे देखकर सागरदत्त नामक सेठ को उस पर दया आ गई । वह उसे अपने घर ले गया। दामनक की विनम्रता, सेवा और ईमानदारी से सेठ अत्यन्त प्रसन्न हुआ ।
किसी समय दो मुनि सेठ के घर भिक्षा के लिए आए। दामनक को देखकर वृद्ध मुनि ने युवा मुनि से कहा, इस किशोर का भाग्य जल्दी ही खुलने वाला है। एक समय आएगा, यह इस घर का स्वामी बन जाएगा। यह बात सेठ ने भी सुन ली। इससे वह दामनक को मारने के लिए उतारू हो गया। उसने एक चाण्डाल को पर्याप्त धन देकर दामनक की हत्या के लिए तैयार कर लिया । चाण्डाल मिथ्या बात बनाकर दामनक को जंगल में ले गया। पर जैसे ही उसे मारने को तत्पर हुआ, भोले-भाले युवक पर उसे करुणा आ गई। चाण्डाल ने उससे कहा कि वह कहीं दूर भाग जाए और पुनः इस नगर में न आए।
दामनक भाग गया। एक गांव में एक ग्वाले से उसकी मित्रता हो गई। वहां रहकर वह ग्वाले की गाय चराने लगा। खाने-पीने को उसे पर्याप्त घृत- दुग्ध मिलने लगा। वह कुछ ही दिनों में हृष्ट-पुष्ट और बलवान बन गया। सभी ग्रामीण उससे प्रेम करने लगे। किसी समय सागरदत्त सेठ उस गांव में आया। दामनक को देखते ही वह उसे पहचान गया। सेठ ने पुनः उसकी हत्या का षड्यन्त्र रचा। उसने एक पत्र लिखकर गांव वालों से कहा कि वे इस युवक के हाथ से यह पत्र उसके घर तक पहुंचवा दें। दामनक गांव वालों की बात मानकर सेठ का पत्र लेकर नगर में पहुंचा। वह चलते-चलते बहुत थक गया था। नगर के बाहर उद्यान में एक वृक्ष के नीचे लेटकर वह विश्राम करने लगा। कुछ ही देर में उसे निद्रा आ गई।
उधर संयोग से सेठ सागरदत्त की पुत्री, जिसका नाम विषा था, उद्यान में स्थित मंदिर में देवपूजा के लिए आई । उसकी दृष्टि दामनक पर पड़ी तो वह उसके रूप पर मोहित हो गई । एकटक उसे देखने लगी । उसकी दृष्टि उस पत्र पर पड़ी, जो निद्रा के कारण दामनकं के हाथ से छिटककर उसके पास ही गिर पड़ा था। पत्र पर अपने पिता के हस्ताक्षर देखकर विषा ने कौतूहलवश उस पत्र को उठाया और पढ़ने लगी । पत्र सेठ ने अपने बेटे को लिखा था - पत्रवाहक का खूब स्वागत करो और इसे विष दे दो! इस कार्य में तनिक भी विलम्ब न किया जाए !
विषा तो दामनक की दीवानी बन चुकी थी । उसने विष शब्द के समक्ष आकार जोड़ दिया जिससे विष का विषा बन गया । पत्र को दामनक के पास छोड़कर वह अपने घर लौट आई। दामनक जगा और सेठ घर पहुंचकर पत्र सेठ के पुत्र को थमा दिया। सेठ के पुत्र ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उसी दिन दामनक का विवाह अपनी बहन से कर दिया ।
सेठ घर लौटा तो वस्तुस्थिति को जानकर सर धुनने लगा। पर तब भी उसने दामनक की हत्या का संकल्प नहीं बदला। उसने अपने विश्वस्त सेवकों को प्रभूत धन देकर दामनक की हत्या के लिए नियुक्त कर दिया। सेवक उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। एक दिन दामनक और श्रेष्ठी पुत्र किसी मित्र के घर आयोजित नाटक देखने गए। देर रात में दामनक घर लौटा और घर के बाहर पड़ी चारपाई पर लेट गया । ••• जैन चरित्र कोश
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